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सेंसर बोर्ड की चिंताएं

-अजय ब्रह्मात्‍मज पिछले दिनों शर्मिला टैगोर ने मुंबई में फिल्म निर्माताओं के साथ लंबी बैठक की। अनौपचारिक बातचीत में उन्होंने अपने विचार शेयर किए और निर्माताओं की दिक्कतों को भी समझने की कोशिश की। मोटे तौर पर सेंसर बोर्ड से संबंधित विवादों की वजहों का खुलासा किया। उन्होंने निर्माताओं को उकसाया कि उन्हें सरकार पर दबाव डालना चाहिए ताकि बदलते समय की जरूरत के हिसाब से 1952 के सिनेमेटोग्राफ एक्ट में सुधार किया जा सके। उन्होंने बताया कि उनकी टीम ने विशेषज्ञों की सलाह के आधार पर दो साल पहले ही कुछ सुझाव दिए थे, किंतु सांसदों के पास इतना वक्त नहीं है कि वे उन सुझावों पर विचार-विमर्श कर सकें। उनके इस कथन पर निर्माताओं को हंसी आ गई। केंद्र के स्वास्थ्य मंत्रालय ने सीबीएफसी (सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन) को हिदायत दी थी कि किसी भी फिल्म में धूम्रपान के दृश्य हों, तो उसे ए सर्टिफिकेट दिया जाए। सीबीएफसी ने अभी तक इस पर अमल नहीं किया है, क्योंकि सीबीएफसी सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीन आता है और उसने ऐसी कोई सिफारिश नहीं की है। शर्मिला टैगोर ने उड़ान और नो वन किल्ड जेसिका के उदाहरण देकर समझा