फिल्म समीक्षा : वीरप्पन
लौटे हैं रामू -अजय ब्रह्मात्मज एक अंतराल के बाद रामगोपाल वर्मा हिंदी फिल्मों में लौटे हैं। उन्होंने अपनी ही कन्नड़ फिल्म ‘ किंलिंग वीरप्पन ’ को थोड़े फेरबदल के साथ हिंदी में प्रस्तुत किया है। रामगोपाल वर्मा की फिल्मोग्राफी पर गौर करें तो अपराधियों और अपराध जगत पर उन्होंने अनेक फिल्में निर्देशित की हैं। अंडरवर्ल्ड और क्रिमिनल किरदारों पर फिल्में बनाते समय जब रामगोपाल वर्मा अपराधियों के मानस को टटोलते हैं तो अच्छी और रोचक कहानी कह जाते हैं। और जब वे अपराधियों के कुक्त्यों और क्रिया-कलापों में रमते हैं तो उनकी फिल्में साधारण रह जाती हैं। ‘ वीरप्पन ’ इन दोनों के बीच अटकी है। ‘ वीरप्पन ’ कर्नाटक और तमिलनाडु के सीमावर्ती जंगलों में उत्पात मचा रखा था। हत्या,लूट,अपहरण,हाथीदांत और चंदन की तस्करी आदि से उसने आतंक फैला रखा था। कर्नाटक और तमिलनाडु के एकजुट अभियान के पहले वह चकमा देकर दूसरे राज्य में प्रवेश कर जाता था। दोनों राज्यों के संयुक्त अभियान के बाद ही उसकी गतिविधियों पर अंकुश लग सका। आखिरकार आपरेशन कोकुन के तहत 2004 में उसे मारा जा