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मां, बहन और बीवी

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-अजय ब्रह्मात्‍मज शीर्षक से यह न समझें कि मैं गाली-गलौच की बात करने जा रहा हूं। मां-बहन का नाम आते ही गालियों का खयाल आ जाता है। मैं मां-बहन और बीवी का उल्लेख महिला दिवस के संदर्भ में कर रहा हूं। एक रूटीन है। महिला दिवस आते ही समाज के अन्य क्षेत्रों की तरह हिंदी फिल्मों में भी महिलाओं की स्थिति पर विचार चलने लगता है। साल भर महिलाओं यानी अभिनेत्रियों के बारे में गॉसिप छाप-छाप कर अघा चुके पत्रकार भी महिलाओं के अधिकार और महत्व की बातें करने लगते हैं। बताया जाने लगता है कि कैसे महिलाओं को समानता हासिल हो रही है। सच्चाई यह है कि हिंदी फिल्मों में समाज की तरह ही महिलाएं दोयम दर्जे की हैं। उन्हें पारिश्रमिक, सम्मान और बराबर अधिकार नहीं मिलते। दुखद है कि इसके लिए अभिनेत्रियों के मन में कोई दंश नहीं है। उन्होंने अपनी स्थिति से समझौता कर लिया है। मां, बहन और बीवी की बात मैंने किसी और बात के लिए शुरू की थी। प्रचलित परंपरा के मुताबिकइस अवसर पर फिल्म स्टारों और अन्य सेलिब्रिटी से उनकी आदर्श महिलाओं के बारे में पूछा जाता है। यह सवाल-जवाब इतना घिस चुका है कि पेशेवर फिल्म पत्रकार और फ्रीलांसर इसके पैक