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फ़िल्म समीक्षा:दोस्ताना

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भारतीय परिवेश की कहानी नहीं है -अजय ब्रह्मात्मज कल हो न हो में कांता बेन के मजाक की लोकप्रियता को करण जौहर ने गंभीरता से ले लिया है। अबकि उन्होंने इस मजाक को ही फिल्म की कहानी बना दिया। दोस्ताना दो दोस्तों की कहानी है, जो किराए के मकान के लिए खुद को समलैंगिक घोषित कर देते हैं। उन्हें इस झूठ के नतीजे भी भुगतने पड़ते हैं। संबंधों की इस विषम स्थिति-परिस्थिति में फिल्म के हास्य दृश्य रचे गए हैं। आशचर्य नहीं की इसे शहरों के युवा दर्शक पसंद करें। देश के स्वस्थ्य मंत्री ने भी सुझाव दिया है कि समलैंगिक संबंधों को कानूनी स्वीकृति मिल जानी चाहिए। सम्भव है कि कारन कि अगली फ़िल्म समलैंगिक संबंधो पर हो। करण की दूसरी फिल्मों की तरह इस फिल्म की शूटिंग भी विदेश में हुई है। इस बार अमेरिका का मियामी शहर है। वहां भारतीय मूल के दो युवकों को मकान नहीं मिल पा रहा है। एक मकान मिलता भी है तो मकान मालकिन अपनी भतीजी की सुरक्षा के लिए उसे लड़कों को किराए पर नहीं देना चाहती। मकान लेने के लिए दोनों खुद को समलैंगिक घोषित कर देते हैं। फिल्म को देखते समय याद रखना होगा कि यह भारतीय परिवेश की कहानी नहीं है। यह एक ऐसे