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फिल्‍म समीक्षा : परमाणु

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फिल्‍म समीक्षा फ़िल्मी राष्‍ट्रवाद का नवाचार परमाणु -अजंय ब्रह्मात्‍मज हिंदी फिल्‍मों में राष्‍ट्रवाद का नवाचार चल रहा है। इन दिनों ऐसी फिल्‍मों में किसी घटना,ऐतिहासिक व्‍यक्ति,खिलाड़ी या प्रसंग पर फिल्‍में बनती है। तिरंगा झंडा,वतन या देश शब्‍द पिरोए गाने,राष्‍ट्र गर्व के कुछ संवाद और भाजपाई नेता के पुराने फुटेज दिखा कर नवाचार पूरा किया जाता है। अभिषेक शर्मा की नई फिल्‍म ‘परमाणु’ यह विधान विपन्‍नता में पूरी करती है। कल्‍पना और निर्माण की विपन्‍नता साफ झलकती है। राष्‍ट्र गौरव की इस घटना को कॉमिक बुक की तरह प्रस्‍तुत किया गया है। फिल्‍म देखते समय लेखक और निर्देशक के बचकानेपन पर हंसी आती है। कहीं फिल्‍म यूनिट यह नहीं समझ रही हो कि दर्शकों की ‘लाफ्टर’ उनकी सोच को एंडोर्स कर रही है। राष्‍ट्रवाद की ऐसी फिल्‍मों की गहरी आलोचना करने पर राष्‍ट्रद्रोही हो जाने का खतरा है। हो सकता है कि यह फिल्‍म वर्तमान सरकार और भगवा भक्‍तों को बेहद पसंद आए। इसे करमुक्‍त करने और हर स्‍कूल में दिखाए जाने के निर्देश जारी किए जाएं। इे राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार से सम्‍मनित किया जाए और फिर जॉन अब्राहम को

फिल्‍म समीक्षा : फोर्स 2

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चुस्‍त और फास्‍ट फोर्स 2 -अजय ब्रह्मात्‍मज अभिनय देव की ‘ फोर्स 2 ’ की कहानी पिछली फिल्‍म से बिल्‍कुल अलग दिशा में आगे बढ़ती है। पिछली फिल्‍म में पुलिस अधिकारी यशवर्द्धन की बीवी का देहांत हो गया था। फिल्‍म का अंत जहां हुआ था,उससे लगा था कि अगर भविष्‍य में सीक्‍वल आया तो फिर से मुंबई और पुलिस महकमे की कहानी होगी। हालांकि यशवर्द्धन अभी तक पुलिस महकमे में ही है,लेकिन अपने दोस्‍त हरीश की हत्‍या का सुराग मिलने के बाद वह देश के रॉ डिपाटमेंट के लिए काम करना चाहता है। चूंकि वह सुराग लेकर आया है और उसका इरादा दुष्‍चक्र की जड़ तक पहुंचना है,इसलिए उसे अनुमति मिल जाती है। रॉ की अधिकारी केके(सोनाक्षी सिन्‍हा) के नेतृत्‍व में सुराग के मुताबिक वह बुदापेस्‍ट के लिए रवाना होता है। फिल्‍म की कहानी चीन के शांगहाए शहर से शुरू होती है। फिर क्‍वांगचओ शहर भी दिखता है। पेइचिंग का जिक्र आता है। हाल-फिलहाल में किसी फिल्‍म में पहली बार इतने विस्‍तार से चीन का रेफरेंस आया है। बदलाव के लिए चीन की झलकी अच्‍छी लगती है। फिल्‍म में बताया जाता है कि चीन में भारत के 20 रॉ ऑफिसर काम में लगे

किरदारों के साथ जीना चाहता हूं -जॉन अब्राहम

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-अजय ब्रह्मात्‍मज जॉन अब्राहम की ‘ फोर्स 2 ’ एसीपी यशवर्द्धन की कहानी है। यह फिल्‍म पिछली ’ फोर्स ’ से आगे बढ़ती है। एसीपी यशवर्द्धन की मुश्किलें बढ़ चुकी है। समय के साथ वे नई चुनौतियों के समक्ष हैं। इस फिल्‍म में एक्‍शन भी ज्‍यादा है। ’ फोर्स 2 ’ के बारे में जॉन अब्राहम की बातें... फिल्‍म में देशभक्ति की झलक डेढ़ साल पहले जब हम ने ‘ फोर्स 2 ’ के बारे में सोचा तो मैा कैप्‍टन कालिया की स्‍टोरी से काफी प्रेरित हुआ था। वे भारतीय जासूस थे। मैंने यही कहा कि ऐसी और भी कहानियां होंगी। तब यही विचार बना था कि ऐसी कहानियों से ‘ फोर्स 2 ’ का विस्‍तार करें। इस बार वह देश को बचाने की कोशिश में लगा है। हमारी फिल्‍म सच्‍ची घटनाओं से प्रेरित है। पिछली फिल्‍म से ज्‍यादा बड़ी और विश्‍वसनीय फिल्‍म है। अभी हाल में उरी अटैक में हमारे जवान शहीद हुए। अचानक ‘ फोर्स2 ’ प्रासंगिक फिल्‍म बन गई है। कोई कल्‍पना ही नहीं कर सकता था कि ऐसा कुछ होगा। हम ने देशभक्ति की भावना के साथ यह फिल्‍म बनाई है। हम इधर-उधर की  बातें नहीं कर रहे हैं। देश की रक्षा में सेना और सरकार की भूमिका भी दिखेगी।

फिल्‍म समीक्षा : रॉकी हैंडसम

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एक्‍शन से भरपूर -अजय ब्रह्मात्‍मज निशिकांत कामत निर्देशित ‘ रॉकी हैंडसम ’ 2010 में आई दक्षिण कोरिया की फिल्‍म ‘ द मैन फ्रॉम नोह्वेयर ’ की हिंदी रीमेक है। निशिकांत कामत के लिए रितेश शाह ने इसका हिंदीकरण किया है। उन्‍होंने इसे गोवा की पृष्‍ठभूमि दी है। ड्रग्‍स,चाइल्‍ड ट्रैफिकिंग,आर्गन ट्रेड और अन्‍य अपराधों के लिए हिंदी फिल्‍म निर्देशकों को गोवा मु‍फीद लगता है। ‘ रॉकी हैंडसम ’ में गोवा सिर्फ नाम भर का है। वहां के समुद्र और वादियों के दर्शन नहीं होते। पूरी भागदौड़ और चेज भी वहां की नहीं लगती। हां,किरदारों के कोंकण और गोवन नामों से लगता है कि कहानी गोवा की है। बाकी सारे कार्य व्‍यापार में गोवा नहीं दिखता। बहरहाल, यह कहानी रॉकी की है। वह गोवा में एक पॉन शॉप चलाता है। उसके पड़ोस में नावोमी नाम की सात-आठ साल की बच्‍ची रहती है। उसे रॉकी के अतीत या वर्त्‍तमान की कोई जानकारी नहीं है। वह उसे अच्‍छा लग्ता है। वह रॉकी से घुल-मिल गई है। उसे हैंडसम बुलाती है। नावोमी की मां ड्रग एडिक्‍ट है। किस्‍सा कुछ यों आगे बढ़ता है कि ड्रग ट्रैफिक और आर्गन ट्रेड में शामिल अपराधी नावोमी का अपहरण कर

दिल से बनना चाहता हूं हैंडसम - जॉन अब्राहम

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अजय ब्रह्मात्मज  जॉन अब्राहम की एक अलग पहचान है। अपनी फिल्‍मों से धीरे-धीरे उन्‍होंने यह खाय पहचान हासिल ीि है। उनकी 'रॉकी हैंडसम' अगले हफ्ते रिलीज हो रही है। उसी मौके पर यह खास बातचीत हुई।  - आपकी होम प्रोडक्शन फिल्मों का चुनाव अलग तरीके का रहता है। आप बाहरी बैनर की फिल्में अलग तरह की करते हैं। यह कैसे संभव हुआ ?  0 मैं बहुत क्लियर था। मैं जैसी फिल्में देखने की चाहत रखता था वह भारत में नहीं बनती थी। मैं निर्माता इस वजह से ही बना कि जैसी फिल्में देखने की तमन्ना रखता हूं उन्हें खुद बना सकूं। वही कोशिश की। मैंने अलहदा फिल्मों को तरजीह दी। मैंने कॅामर्स और कंटेंट का भी ध्यान रखा। कंटेंट का अर्थ सिफ फिल्म में संदेश देना नहीं है। मद्रास कैफे यूथ के लिए थी। राजनीति संबंधित थी। आज की युवा पीढ़ी राजीव गांधी से परिचित नहीं है। मैं चाहता था कि लोग उनके बारे में जाने। हालांकि विकी डोनर में संदेश था। बतौर निर्माता चाहूंगा कि मेरी फिल्मों को लोग सराहें। एक्टर होने के नाते मैंने काफी गलतियां की हैं। निर्माता के तौर पर मैं वह गलतियां नहीं करना चाहता हूं। एक्टर होने क

फिल्‍म समीक्षा : मद्रास कैफे

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-अजय ब्रह्मात्‍मज          हमारी आदत ही नहीं है। हम सच को करीब से नहीं देखते। कतराते हैं या नजरें फेर लेते हैं। यही वजह है कि हम फिल्मों में भी सम्मोहक झूठ रचते हैं। और फिर उसी झूठ को एंज्वॉय करते हैं। सालों से हिंदी सिनेमा में हम नाच-गाने और प्रेम से संतुष्ट और आनंदित होते रहे हैं। सच और समाज को करीब से दिखाने की एक धारा फिल्मों में रही है, लेकिन मेनस्ट्रीम सिनेमा और उसके दर्शक ऐसी फिल्मों से परहेज ही करते रहे हैं। इस परिदृश्य में शूजीत सरकार की 'मद्रास कैफे' एक नया प्रस्थान है। हिंदी सिनेमा के आम दर्शकों ने ऐसी फिल्म पहले नहीं देखी है।         पड़ोसी देश श्रीलंका के गृह युद्ध में भारत एक कारक बन गया था। मध्यस्थता और शांति के प्रयासों के विफल होने के बावजूद इस गृह युद्ध में भारत शामिल रहा। श्रीलंका के सेना की औपचारिक सलामी लेते समय हुए आक्रमण से लेकर जानलेवा मानव बम विस्फोट तक भूतपूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी इसके एक कोण रहे। 'मद्रास कैफे' उन्हीं घटनाओं को पर्दे पर रचती है। हम थोड़ा पीछे लौटते हैं और पाते हैं कि फैसले बदल गए होते तो हालात और नतीजे भी बद

फिल्‍म समीक्षा : विक्‍की डोनर

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दर्शनीय है विक्की डोनर -अजय ब्रह्मात्‍मज  अपनी शोहरत और दौलत का इस्तेमाल कर अनेक स्टार खुद की प्रोडक्शन कंपनी की फिल्मों में स्वयं को ही अलग-अलग अंदाज में पेश कर रहे हैं। इस दौर और माहौल में जॉन अब्राहम की प्रोडक्शन कंपनी जेए एंटरटेनमेंट की पहली फिल्म विक्की डोनर खूबसूरत साहस और प्रयास है। निर्देशक शूजित सरकार ने रोचक और रसीले तरीके से पंजाबी मुंडा और बंगाली लड़की के प्रेमकहानी के बैकड्रॉप में स्वमे डोनेशन (वीर्यदान) का परिप्रेक्ष्य रखा है। फिल्म की लेखिका जूही चतुर्वेदी ने नए विषय और विचार की फिल्म को सरस रखा है। फिल्म के मुख्य कलाकारों अन्नू कपूर, आयुष्मान खुराना, डोली आहलूवालिया, कमलेश गिल, जयंत दास ने लेखक-निर्देशक की संकल्पना को पर्दे पर बखूबी उतारा है। दिल्ली के परिवेश में ताजपत नगर का मध्यवर्गीय पंजाबी परिवार के बेरोजगार विक्की और चित्तरंजन पार्क में रह रही बैंकस्टाफ आसिमा के बीच प्यार दिखाने के लिए लेखक-निर्देशक ने हीरो-हीरोइन से न तो गाने गवाए हैं और न जबरदस्ती के रोमांटिक सीन गढ़े हैं। विक्की और आवसिमा का प्रेम महानगरीय भागदौड़ में बैंक, बस स्टॉप, स