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बदलना चाहता है हिंदुस्‍तान-आमिर खान

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स्‍वतंत्रता दिवस विशेष चवन्‍नी के पाठकों के लिए  ‘सत्यमेव जयते’ के 13 एपीसोड के अनुभव ने फिल्मस्टार आमिर खान को देश के करीब ला दिया है। वे समाज के सच्चाइयों से वाकिफ हुए हैं और एक नागरिक के तौर पर ज्यादा सजग और जिम्मेदारी महसूस कर रहे हैं। उन्होंने अजय ब्रह्मात्‍मज से यहां अपने अनुभव बांटे। ‘सत्यमेव जयते’ का ढाई साल का अनुभव मुझे समृद्ध कर गया है। टीम के शोध ने मुझे नई जानकारियां दी। इन सब चीजों के बारे में इतनी गहराई और विस्तार से मैं नहीं जानता था। सभी खास मुद्दों पर मेरी खुद की जानकारी बढ़ी। इसके अलावा इस शो में देश के कोने-कोने से आए लोगों को मैंने करीब से सुना और देखा। हर एपीसोड में 15-20 गेस्ट रहते थे। वे बड़े शहरों से लेकर दूर-दराज के देहातों तक से आए थे। सब की भाषा अलग थी। लहजा अलग था। मैंने उन सभी से गहरी और अंतरंग बात की है। हर एपीसोड की शूटिंग में पूरा दिन लग जाता था। शो के विषयों के अलावा भी उनसे बातें होती थी। उनकी जिंदगी के आइने में मैंने देश को देखा। टीवी पर भले ही बातचीत दो-चार मिनट की दिखाई पड़ती हो, लेकिन वास्तव में हमने घंटे-घंटे भर बात की है। मैं उन्हें तफसील

जमीन का टुकड़ा मात्र नहीं है देश-महेश भट्ट

देशभक्ति क्या है? अपनी जन्मभूमि, बचपन की उम्मीदों, आकांक्षाओं और सपनों का प्रेम है या उस भूमि से प्रेम है, जहां अपनी मां के घुटनों के पास बैठ कर हमने देश के लिए स्वतंत्रता की लडाई लडने वाले महान नेताओं गांधी, नेहरू और तिलक के महान कार्यो के किस्से सुने या झांसी की रानी और मंगल पांडे के साहसी कारनामे सुने, जिन्होंने 1857 की क्रांति में अंग्रेजों को आडे हाथों लिया था? संक्षेप में, क्या देशभक्ति एक खास जगह से प्रेम है, जहां की हर इंच जमीन आनंद और खुशी से भरपूर बचपन की प्रिय और कीमती यादों से भरी होती है? मां सुनाओ मुझे वो कहानी अगर यही देशभक्ति है तो ग्लोबलाइजेशन और शहरीकरण के इस दौर में चंद भारतीयों को ही यह तमगा मिलेगा, क्योंकि उनके खेल के मैदान अब हाइवे, फैक्ट्री और शॉपिंग मॉल में तब्दील हो गए हैं। चिडियों की चहचहाहट को गाडियों और मशीनों के शोर ने दबा दिया है। अब हमें महान कार्यो के किस्से भी नहीं सुनाए जाते। आज की मां अगर किस्से सुनाने बैठे तो उसे अमीर और गरीब के बीच की बढती खाई, शहरी और ग्रामीण इलाकों के बीच न पटने वाली दूरी और गांधी की भूमि में भडकी सांप्रदायिक हिंसा के न सुनाने लाय