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सिनेमालोक : कार्तिक आर्यन

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सिनेमालोक कार्तिक आर्यन -अजय ब्रह्मात्मज इस महीने के हर मंगलवार को 2018 के ऐसे अचीवर को यह कॉलम समर्पित होगा , जो हिंदी फिल्मों में बहार से आए.जिन्होंने अपनी मेहनत और प्रतिभा के दम पर पहचान हासिल की.2018 में आई उनकी फिल्मों ने उन्हें खास मुकाम दिया. दस महीने पहले 23 फ़रवरी को ‘सोनू के टीटू की स्वीटी’ रिलीज हुई थी. लव रंजन की इसी फिल्म के शीर्षक से ही प्रॉब्लम थी. कुछ को यह टंग ट्विस्टर लग रहा था तो अधिकांश का यही कहना था कि यह भी कोई नाम हुआ? फिल्म रिलीज हुई और सभी को पसंद आई. इस तरह के विषय की फिल्मों पर रीझ रहे दर्शक टूट पड़े तो वहीँ खीझ रहे समीक्षक इसे दरकिनार नहीं कर सके.समीक्षकों ने फिल्म के विषय की स्वाभाविक आलोचना की, लेकिन उसके मनोरंजक प्रभाव को स्वीकार किया.नतीजा यह हुआ कि खरामा-खरामा यह फिल्म 100 करोड़ के क्लब में पहुंची. फिल्म के कलाकारों में सोनू यानि कार्तिक आर्यन को शुद्ध लाभ हुआ. छह सालों से अभिनय की दुनिया में ठोस ज़मीन तलाश रहे कार्तिक आर्यन को देखते ही देखते दर्शकों और फिल्म इंडस्ट्री ने कंधे पर बिठा लिया. उन्हें फ़िल्में मिलीं,एनडोर्समेंट मिले और कार्तिक ग्लैमर

फिल्‍म समीक्षा : सोनू के टीटू की स्‍वीटी

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फिल्‍म समीक्षा : सोनू के टीटू की स्‍वीटी -अजय ब्रह्मात्‍मज हिंदी फिल्‍मों में निर्देशक और अभिनेता की जोड़ी ने कमाल किए हैं। परस्‍पर भरोसे से कुछ बेहतरीन फिल्‍में आई हैं। लव रंजन और कार्तिक आर्यन की जोड़ी ने ‘प्‍यार का पंचनामा’(1-2),आकाशवाणी और अब ‘सोनू के टीटू की स्‍वीटी’ जैसी फिल्‍में दी हैं। इन फिल्‍मों को क्‍लासिक के दर्जे में नहीं डाल सकते,लेकिन ये कल्‍ट ब्रांड की फिल्‍में हैं। अकेले लव रंजन ही ऐसी फिल्‍में बना रहे हैं। दरअसल,इस तरह की फिल्‍मों के लिए बात और स्‍वभाव में देसी होना जरूरी है। अगर आप अपने समय और समाज में पगे होंगे,तभी ऐसी फिल्‍में लेकर आ सकते हैं। इन फिल्‍मों में कोई बड़ी बात नही कही गई है। रोजमर्रा की बातों का ही ऐसे नजरिए और एटीट्यूड के साथ पेश किया गया है कि किरदारों में आज के युवक दिखते हैं। लव रंजन की फिल्‍में मुख्‍य रूप से लड़कों के नजरिए से पेश की जाती हैं। उनकी लड़कियां कतई कमजोर नहीं होतीं,लेकिन लड़कों के ज्‍यादा दृश्‍यों और प्रसंगों की वजह से दरकिनार होती नजर आती हैं। गौर करें तो लव रंजन के किरदार शहरी और महानगरीय दिखते हैं,लेकिन उनकी मानसिकता उत

फिल्‍म समीक्षा : प्‍यार का पंचनामा 2

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प्रेम का महानगरीय प्रहसन प्‍यार का पंचनामा 2 -अजय ब्रह्मात्‍मज      ‘ प्‍यार का पंचनामा ’ देख रखी है तो ‘ प्‍यार का पंचनामा 2 ’ में अधिक नयापन नहीं महसूस होगा। वैसे ही किरदार हैं। तीन लड़के है और तीन लड़कियां भी इनके अलावा कुछ दोस्‍त हैं और कुछ सहेलियां। तीनों लड़कों की जिंदगी में अभी लड़कियां नहीं हैं। ऐसा संयोग होता है कि उन तीनों लड़कों की जिंदगी में एक साथ प्रेम टपकता है। और फिर पहली फिल्‍म की तरह ही रोमांस, झगड़े, गलतफहमी और फिर अलगाव का नाटक रचा जाता है। निश्चित रूप से पूरी फिल्‍म लड़कों के दृष्टिकोण से है, इसलिए उनका मेल शॉविनिज्‍म से भरपूर रवैया दिखाई पड़ता है। अगर नारीवादी नजरिए से सोचें तो यह फिल्‍म घोर पुरुषवादी और नारी विरोधी है। दरअसल, ‘ प्‍यार का पंचनामा 2 ’ स्‍त्री-पुरुष संबंधों का महानगरीय प्रहसन है। कॉलेज से निकले और नौकरी पाने के पहले के बेराजगार शहरी लड़कों की कहानी लगभग एक सी होती है। उपभोक्‍ता संस्‍कृति के विकास के बाद प्रेम की तलाश में भटकते लड़के और लड़कियों की रुचियों, पसंद और प्राथमिकताओं में काफी बदलाव आ गया है। नजरिया बदला है और संबंध भी