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फिल्‍म समीक्षा : नौटंकी साला

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  फूहड़ और फार्मूला कामेडी की हमें आदत पड़ चुकी है। फिल्मों में हंसने की स्थितियां बनाने के बजाए लतीफेबाजी और मसखरी पर जोर रहता है। सुने-सुनाए लतीफों को लेकर सीन लिखे जाते हैं और उन्हें ही संवादों में बोल दिया जाता है। ऐसी फिल्में हम देखते हैं और हंसते हैं। इनसे अलग कोई कोशिश होती है तो वह हमें नीरस और फीकी लगने लगती है। 'नौटंकी साला' प्रचलित कामेडी फिल्मों से अलग है। नए स्वाद की तरह भाने में देरी हो सकती है या फिर रोचक न लगे। थोड़ा धैर्य रखें तो थिएटर से निकलते समय एहसास होगा कि स्वस्थ कामेडी देख कर निकल रहे हैं, लेकिन 'जंकफूड' के इस दौर में 'हेल्दी फूड' की मांग और स्वीकृति थोड़ी कम होती है। रोहन सिप्पी ने एक फ्रांसीसी फिल्म की कहानी का भारतीयकरण किया है। अधिकांश हिंदी दर्शकों ने वह फिल्म नहीं देखी है, इसलिए उसका उल्लेख भी बेमानी है। यहां राम परमार (आयुष्मान खुराना) है। वह थिएटर में एक्टर और डायरेक्टर है। एक रात शो समाप्त होने के बाद अपनी प्रेमिका के साथ डिनर पर जाने की जल्दबाजी में उसके सामने आत्महत्या करता मंदार लेले (कुणाल र

फिल्‍म समीक्षा : दम मारो दम

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पुराना कंटेंट, नया क्राफ्ट -अजय ब्रह्मात्‍मज निर्देशक और अभिनेता की दोस्ती और समझदारी से अच्छी फिल्में बनती हैं। दम मारो दम भी अच्छी है, अगर अभिषेक बच्चन की पिछली फिल्मों की पृष्ठभूमि में देखें तो दम मारो दम अपेक्षाकृत अच्छी फिल्म है। रोहन सिप्पी ने अभिषेक बच्चन का बेहतर इस्तेमाल किया है। अन्य फिल्मों की तरह यहां वे बंधे, सिकुड़े, सिमटे और सकुचाए नहीं दिखते। स्क्रिप्ट की अपनी सीमा में उन्होंने निखरा प्रदर्शन किया है। उन्हें सहयोगी कलाकारों का अच्छा साथ मिला है। इसके बावजूद यह फिल्म कई स्तरों पर निराश करती है। दम मारो दम माडर्न मसाला फिल्म है, जिसमें पुराने फार्मूले की छौंक भर है। फिल्म में तीन मुख्य किरदार हैं, जो वास्तव में एक ही कहानी के हिस्से हैं। तीन कहानियों को एक कहानी में समेटने की संरचना अलग होती है। इस फिल्म में एक ही कहानी को टुकड़ों में बांट कर फिर से बुना गया है। लेखक और निर्देशक की कोशिश इसी बहाने क्राफ्ट में कमाल दिखाने की हो सकती है, लेकिन अगर यह विष्णु कामथ की सीधी कहानी के तौर पर पेश की जाती तो प्रभावशाली होती। विष्णु कामथ अपनी जिंदगी में सब कुछ खो चुका

एक्शन फिल्म है दम मारो दम

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-अजय ब्रह्मात्‍मज रोहन सिप्पी और अभिषेक बच्चन का साथ पुराना है। 'कुछ न कहो', 'ब्लफ मास्टर' के बाद 'दम मारो दम' उनकी तीसरी फिल्म है। 'दम मारो दम' के बारे में बता रहे हैं रोहन सिप्पी दम मारो दम एक सस्पेंस थ्रिलर है, जिसमें अभिषेक बच्चन पुलिस अधिकारी की भूमिका निभा रहे हैं। उनके साथ प्रतीक बब्बर और राणा दगुबटी भी हैं। फिल्म में बिपाशा बसु की खास भूमिका है, जबकि दीपिका पादुकोण सिर्फ एक गाने में दिल धड़काती दिखेंगी। 'दम मारो दम' को कॉप स्टोरी कह सकते हैं, लेकिन यह एक सस्पेंस थ्रिलर है। हमने एक नई कोशिश की है। फिल्म में तीन कहानिया हैं, जो एक दूसरे से गुंथी हुई हैं। पहली कहानी प्रतीक की है। वह स्टुडेंट है। एक खास मोड़ पर लालच में वह गलत फैसला ले लेता है। उसकी भिड़ंत एसीपी कामत से होती है। फिर अभिषेक की कहानी आती है। वह एक इंवेस्टीगेशन के सिलसिले में बाकी किरदारों से टकराता है। तीसरी कहानी में राणा और बिपाशा की लव स्टोरी है। राणा भी अभिषेक के रास्ते में आता है। हमारी कहानी पूरी तरह से फिक्शनल है। खूबसूरती की वजह से हमने गोवा की पृष्ठभूमि रखी। गोवा की छव

ऐक्शन-कॉमेडी दोनों हैं चांदनी चौक टू चाइना में : रोहन सिप्पी

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कई फिल्में बना चुके रोहन सिप्पी की नई फिल्म है चांदनी चौक टू चाइना। अक्षय कुमार और दीपिका पादुकोण अभिनीत इस फिल्म को लेकर उनसे बातचीत हुई। प्रस्तुत हैं उसके अंश.. फिल्म का आइडिया कैसे आया? श्रीधर राघवन ने यह फिल्म लिखी है। कहानी अक्षय कुमार को पसंद आ गई। दोनों उस पर काम कर रहे थे। पहले इसे श्रीराम राघवन डायरेक्ट करने वाले थे, लेकिन वे किसी और प्रोजेक्ट में व्यस्त हो गए। इस बीच सलाम-ए-इश्क रिलीज हुई। मेरी निखिल से बात हुई। उन्हें भी फिल्म की स्क्रिप्ट पसंद आई। इस तरह फिल्म शुरू हो गई। अक्षय की निजी जिंदगी और फिल्म की कहानी में समानता है? श्रीधर ने उनके साथ खाकी में काम किया था। उस फिल्म के समय ही इसका आइडिया आया था। फिल्म और उनकी निजी जिंदगी में कुछ बातें एक जैसी जरूर हैं, लेकिन दोनों में काफी अंतर भी है। सबसे बड़ा अंतर यही है कि फिल्म का अंत है, लेकिन अक्षय का करियर तो लगातार आगे बढ़ता जा रहा है! फिल्म में कुछ ऐसे तत्व हैं, जिनमें उनकी जिंदगी की झलक मिल सकती है। हम सभी जानते हैं कि वे इस फिल्म के पहले चीन नहीं गए थे। हमारी कहानी का एक हिस्सा चीन में ही है। यह एक आम लड़के की कहानी है, ज