फिल्म समीक्षा : फोबिया
डर का रोमांच -अजय ब्रह्मात्मज अवधि-113 मिनट स्टार- तीन स्टार डर कहां रहता है ? दिमाग में,आंखों में या साउंड में ? फिल्मों में यह साउंड के जरिए ही जाहिर होता है। बाकी इमोशन के लिए भी फिल्मकार साउंड का इस्तेमाल करते हैं। कोई भी नई फिल्म या अनदेखी फिल्म आप म्यूट कर के दखें तो आप पाएंगे कि किरदारों की मनोदशा को आप ढंग से समझ ही नहीं पाए। हॉरर फिल्मों में संगीत की खास भूमिका होती है। पवन कृपलानी ने ‘ फोबिया ’ में संगीत का सटीक इस्तेमाल किया है। हालांकि उन्हें राधिका आप्टे जैसी समर्थ अभिनेत्री का सहयोग मिला है,लेकिन उनकी तकनीकी टीम को भी उचित श्रेय मिलना चाहिए। म्यूजिक डायरेक्टर डेनियल बी जार्ज,एडिटर पूजा लाढा सूरती और सिनेमैटोग्राफर जयकृष्ण गुम्मडी के सहयोग से पवन कृपलानी ने रोमांचक तरीके से डर की यह कहानी रची है। महक पेंटर है। वह अपनी दुनिया में खुश है। एक रात एग्जीबिशन से लौटते समय टैक्सी ड्रायवर उसे अकेला और थका पाकर नाजायज फायदा उठाने की कोशिश करता है। वह उस हादसे को भूल नहीं पाती और एक मनोरोग का शिकार हो जाती है। बहन अनु और दोस्त