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संवाद और संवेदना की रेसिपी और लंचबॉक्स :सुदीप्ति

यह सिर्फ 'लंचबॉक्स ' फिल्म की समीक्षा नहीं है. उसके बहाने समकालीन मनुष्य के एकांत को समझने का एक प्रयास भी है. युवा लेखिका सुदीप्ति ने इस फिल्म की संवेदना को समकालीन जीवन के उलझे हुए तारों से जोड़ने का बहुत सुन्दर प्रयास किया है. आपके लिए- जानकी पुल.से साभार और साधिकार =========================================== पहली बात: इसे‘लंचबॉक्स’ की समीक्षा कतई न समझें. यह तो बस उतनी भर बात है जो फिल्म देखने के बाद मेरे मन में आई. अंतिमबात यानी कि महानगरीय आपाधापी में फंसे लोगों से निवेदन: इससे पहले कि ज़िंदगी उस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दे, जहाँ खुशियों का टिकट वाया भूटान लेना पड़े, कम-से-कम ‘लंचबॉक्स’ देख आईये. अंदर की बात: दरअसल कोई भी फिल्म मेरे लिए मुख्यत: दृश्यों में पिरोयी गई एक कथा की तरह है.माध्यम और तकनीक की जानकारी रखते हुए किसी फिल्म का सूक्ष्म विश्लेषण एक अलग और विशिष्ट क्षेत्र है,जानती हूँ. फिर भी कुछ फ़िल्में ऐसी होती हैं,जिन्हें देख आप जो महसूस करते हैं उसे ज़ाहिर करने को बेताब रहते है. ऐसी ही एक फिल्म है ‘लंचबॉक्स’. ‘लंचबॉक्स’ में तीन मुख्य किरदा

फिल्‍म समीक्षा : द लंचबाक्‍स

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मर्मस्‍पर्शी और स्‍वादिष्‍ट -अजय ब्रह्माात्‍मज  रितेश बत्रा की 'द लंचबॉक्स' सुंदर, मर्मस्पर्शी, संवेदनशील, रियलिस्टिक और मोहक फिल्म है। हिंदी फिल्मों में मनोरंजन की आक्रामक धूप से तिलमिलाए दर्शकों के लिए यह ठंडी छांव और बार की तरह है। तपतपाते बाजारू मौसम में यह सुकून देती है। 'द लंचबॉक्स' मुंबई के दो एकाकी व्यक्तियों की अनोखी प्रेमकहानी है। यह अशरीरी प्रेम है। दोनों मिलते तक नहीं, लेकिन उनके पत्राचार में प्रेम से अधिक अकेलेपन और समझदारी का एहसास है। यह मुंबई की कहानी है। किसी और शहर में 'द लंचबॉक्स' की कल्पना नहीं की जा सकती थी। 'द लंचबॉक्स' आज की कहानी हे। मुंबई की भागदौड़ और व्यस्त जिंदगी में खुद तक सिमट रहे व्यक्तियों की परतें खोलती यह फिल्म भावना और अनुभूति के स्तर पर उन्हें और दर्शकों को जोड़ती है। संयोग से पति राजीव के पास जा रहा इला का टिफिन साजन के पास पहुंच जाता हे। पत्‍‌नी के निधन के बाद अकेली जिंदगी जी रहे साजन घरेलू स्वाद और प्यार भूल चुके हैं। दोपहर में टिफिन का लंच और रात में प्लास्टिक थैलियों में लाया डिनर ही उनका भोजन

अभिनय से पहले किरदार की गूंज सुनता हूं- इरफान

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- दुर्गेश सिंह बीस से अधिक निर्माता और कान के साथ ही संडैंस फिल्म समारोहों में ख्याति बटोर चुकी फिल्म द लंच बॉक्स 20 सितंबर को सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है। इरफान मुख्य भूमिका में हंै और पहली बार किसी फिल्म के प्रोड्यूसर भी। जिस तरह का सिनेमा वो कर चुके हैं चाहते तो इस फिल्म में अभिनय नहीं करते क्योंकि निर्देशक रितेश बत्रा उनके दोस्त नहीं थे। अब करण जौहर और यूटीवी फिल्म की इंडिया रिलीज की तैयारियों में व्यस्त हैं। आइए जानते हैं इरफान की कथनी कैसे तब्दील हुई करनी में: - द लंचबॉक्स का साजन फर्नांडीस कहां मिला? इतना जीवंत अभिनय किसी अनुभव के बिना संभव नहीं होगा? मैं मुंबई आया था तो मेरे अंकल यहीं एसिक नगर में रहते थे। मैं उन्हें सुबह उठकर अंधेरी स्टेशन के लिए बस पकड़ते हुए देखता था फिर वह अंधेरी से ट्रेन पकडक़र चर्चगेट जाते थे। चर्चगेट से फिर उन्हें बस पकडक़र अपने दफतर तक पहुंचना पड़ता था। यह प्रक्रिया वे बार-बार दुहराते थे। मैं सोचता कि एक आदमी पूरी जिंदगी इस अभ्यास को कैसे दुहरा सकता है। सुबह जब वह जाता है तो फ्रेश रहता है, शाम को लोकल ट्रेन से लौटने वाला हर चेहरा कैसा भयावह दिखता

दरअसल ... हिंदी की इंटरनेशनल फिल्म ‘द लंचबॉक्स’

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-अजय ब्रह्मात्मज     रितेश बत्रा निर्देशित ‘द लंचबॉक्स’ 20 सितंबर को पूरे भारत में रिलीज होगी। देश-विदेश के फिल्म समारोहों में प्रशंसित हो चुकी ‘द लंचबॉक्स’ के संयुक्त निर्माता गुनीत मोंगा, अनुराग कश्यप और अरुण रंगाचारी हैं। यह हिंदी में बनी पहली इंटरनेश्नल फिल्म है। इसके निर्माण में अनेक देशों के निर्माताओं और कंपनियों ने सहयोग दिया है। सबसे पहले सिख्सा एंटरटेनमेंट और आर्टे फ्रांस सिनेमा ने पहल की। भारत और फ्रांस के बीच 1984 में संयुक्त फिल्म निर्माण का समझौता हुआ था, लेकिन पिछले तीस सालों में दोनों देशों के सहयोग से बनी पहली फिल्म ‘द लंचबॉक्स’ है। इस फिल्म के निर्माण में भारत, फ्रांस, जर्मनी और अमेरिका की कंपनियों ने सहयोग किया है। इस साल कान फिल्म फेस्टिवल में श्रेष्ठ निर्देशक अवार्ड भी ले चुकी है। ऐसी उपलब्धियों के बावजूद यह माना जा रहा था कि भारत में इसे रिलीज करना मुमकिन नहीं होगा।     भारत के निर्माता, वितरक और प्रदर्शक की तिगड़ी ने महाजाल विकसित कर लिया है। इस महाजाल को छोटी और सार्थक फिल्में भेद नहीं पातीं। उन्हें सही ढंग से प्रदर्शित नहीं किया जाता। अधिकाधिक कमाई में

मुश्किल था इला को जीना- निम्रत कौर

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-अजय ब्रह्मात्मज  रितेश बत्रा की फिल्म ‘लंचबॉक्स’ के ट्रेलर आने के साथ निम्रत कौर के प्रति रूचि और जिज्ञासा बढ़ी है। इस फिल्म में वह इरफान खान और नवाजुद्दीन सिद्दिकी के साथ हैं। प्यार, अलगाव, अजनबियत और दांपत्य के महीन तारों से बुनी इस संवेदनशील फिल्म को करण जौहर पेश कर रहे हैं। सीमित बजट की ‘लंचबॉक्स’ अब रेगुलर थिएटर में रिलीज होकर दर्शकों के बीच पहुंचेगी। निम्रत कौर को दर्शक विज्ञापनों के माध्यम से जानते हैं। फिल्म में पहली बार उन्हें ऐसी बड़ी पहचान मिल रही है।     निम्रत के पिता फौज में थे, इसलिए वह किसी भी शहर में तीन साल से ज्यादा नहीं टिक सकीं। उनका ननिहाल पंजाब में है और ददिहाल राजस्थान में। उनकी पढ़ाई के आखिरी साल दिल्ली में गुजरे। वहां से मुंबई आना हुआ। लगभग नौ साल पहले निम्रत मुंबई आ गई थीं। -नौ साल से आप मुंबई में हैं। क्या करती रहीं? मैंने ढेर सारे काम किए। यहां सबसे पहले विज्ञापन किए मैंने। फिर म्यूजिक वीडियो और रीमिक्स वीडियो में कुछ काम मिला। मैंने 80 के आसपास टीवीसी भी किए हैं। मुंबई में विज्ञापन बहुत बड़ा सहारा होता है। 6 साल पहले मैंने सक्रिय रूप से रंगमंच के लिए

डायरेक्‍टर ही बनना था-रितेश बत्रा

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गजेन्‍द्र सिंह भाटी के फिलम सिनेमा से साभार  इस साल कान अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव- 2013 में इस फ़िल्म को बड़ी सराहना मिली है। वहां इसे क्रिटिक्स वीक में दिखाया गया। रॉटरडैम अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव के सिनेमार्ट- 2012 में इसे ऑनरेबल जूरी मेंशन दिया गया। मुंबई और न्यू यॉर्क में रहने वाले फ़िल्म लेखक और निर्देशक रितेश बत्रा की ये पहली फीचर फ़िल्म है। उन्होंने इससे पहले तीन पुरस्कृत लघु फ़िल्में बनाईं हैं। ये हैं ‘ द मॉर्निंग रिचुअल ’, ‘ ग़रीब नवाज की टैक्सी ’ और ‘ कैफे रेग्युलर , कायरो ’ । दो को साक्षात्कार के अंत में देख सकते हैं। 2009 में उनकी फ़िल्म पटकथा ‘ द स्टोरी ऑफ राम ’ को सनडांस राइटर्स एंड डायरेक्टर्स लैब में चुना गया। उन्हें सनडांस टाइम वॉर्नर स्टोरीटेलिंग फैलो और एननबर्ग फैलो बनने का गौरव हासिल हुआ। अब तक दुनिया की 27 टैरेटरी में प्रदर्शन के लिए खरीदी जा चुकी ‘ डब्बा ’ का निर्माण 15 भारतीय और विदेशी निर्माणकर्ताओं ने मिलकर किया है। भारत से सिख्या एंटरटेनमेंट , डीएआर मोशन पिक्चर्स और नेशनल फ़िल्म डिवेलपमेंट कॉरपोरेशन (एनएफडीसी) और बाहर एएसएपी फिल्म्स