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कहानी की खोज सबसे बड़ी चुनौती होगी : कमलेश पांडे

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कमलेश पांडे का यह लेख अनुप्रिया वर्मा के ब्‍लॉग अनुख्‍यान से लिया गया है।  मैं सीधे तौर पर मानता हूं कि आनेवाले सालों में बल्कि यूं कहें आने वाले कई सालों में हिंदी सिनेमा व टेलीविजन दोनों ही जगत में कहानी की खोज ही एक बड़ी चुनौती होगी. मेरा मानना है और मेरी समझ है कि हां, हमने अपने तकनीक में सिनेमा को हॉलीवुड के समकक्ष लाकर खड़ा कर दिया है. हमारी फिल्मों की एडिटिंग अच्छी हो गयी है. सिनेमेटोग्राफी अच्छी हो गयी है. हम तकनीक रूप से काफी आगे बढ़ चुके हैं. लेकिन हमने कहानी को फिल्म की आखिरी जरूरत बना दी है. आज फिल्मों में खूबसूरत चेहरा है. खूबसूरत आवाज है. चमक है. धमक है. कुछ नहीं है तो बस कहानी नहीं है. जो हमारी पहली जरूरत होती थी. अब आखिरी हो चुकी है. फिल्मों का शरीर खूबसूरत हो गया है लेकिन आत्मा खो चुकी है. आपने बाजारों में देखा होगा जिस तरह दुकानों में औरतों और मर्दों के पुतले खड़े होते हैं. खूबसूरत से कपड़े पहन कर और उन डम्मी क ो देख कर आप किसी दुकान में प्रवेश करते हैं. लेकिन उनमें जान नहीं होती. फिल्मों की भी यही स्थिति हो गयी है. अभी हाल ही में मैं बंगलुरु में था