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बढ़ेंगी सेंसर सर्टिफिकेट की श्रेणियां,भाषा,नग्‍नता,हिंसा और विषय होंगे आधार

-अजय ब्रह्मात्‍मज  दर्शकों की अभिरुचि की वजह से तेजी से बदल रहे भारतीय सिनेमा के मद्देनजर देश के सिनेमैटोग्राफ एक्ट में आवश्यक बदलाव लाने की जरूरत सभी महसूस कर रहे हैं। इसी दबाव में लंबे समय से अटके इस एक्ट में आवश्यक बदलाव के लिए इस बार सिनेमैटोग्राफ बिल पेश किया जा रहा है। बिल में केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड की कार्यप्रणाली और गठन में भी कुछ सुधार किए जाएंगे। आम दर्शकों के हित में सबसे जरूरी सुधार सेंसर की श्रेणियों को बढ़ा कर किया जा रहा है। पिछले कुछ सालों से फिल्मकार और दर्शक महसूस कर रहे थे कि सेंसर बोर्ड की तीन प्रचलित श्रेणियां भारतीय फिल्मों के वर्गीकरण के लिए पर्याप्त नहीं हैं। अभी तक भारत में यू (यूनिवर्सल- सभी के योग्य), यूए और ए श्रेणियों के अंतर्गत ही फिल्में श्रेणीकृत की जाती हैं। कई निर्देशक सालो पुरानी इस परिपाटी को आज के संदर्भ में अप्रासंगिक और अर्थहीन मानते हैं। उनकी नजर में हमें फिल्मों के श्रेणीकरण में विदेशों के अनुभव से लाभ उठाकर इनकी संख्या बढ़ानी चाहिए ताकि किशोर उम्र के दर्शकों के देखने योग्य फिल्मों का स्पष्ट वर्गीकरण हो सके। आम दर्शक नहीं जानते कि फिल्मों