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मदारी का गीत डम डमा डमडमडम

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आलोक धन्‍वा कहते हैं कि अगर हिंदी फिल्‍मों के गीतों को सुनने के साथ पढ़ा भी जाए तो उनके नए अर्थ निकलेंगे। मदारी का यह गीत पाठकों और दर्शकों से पढ़ने की मांग करता है। आप निजी भाष्‍य,व्‍याख्‍या और अभिप्रेत के लिए स्‍वतंत्र है।  फिल्‍म - मदारी गीतकार - इरशाद कामिल निर्देशक - निशिकांत कामत कलाकार - इरफान खान डमा डमा डम 
 डमडम डमडम 
 डमा डमा डम 
 डमडम डमडम 
 डमा डमा डम 
 डमडम डमडम डू टी वी पे ये ख़बर भी आनी करके जनहित में क़ुर्बानी गये मंत्री जंगल पानी रे … डमा डमा डम 
 डमडम डमडम 
 डमा डमा डम 
 डमडम डमडम 
 डमा डमा डम 
 डमडम डमडम डू ... फटा फटाफट गुस्सा करके मिला मिलावट मन में भरके बना बनावट करके बैरी तू … औसत बन्दा भूखा मर गया तेरा चमचा खेती चर गया संसद बैठा खाये चैरी तू … जैसे पहले लगी पड़ी थी वैसे अब भी लगी पड़ी है ये राजा भी निरा लोमड़ी है लाल क़िले का हाल वही है कोई पैजामा पहन खड़ा या

इरशाद कामिल : विभाग के बदले बॉलीवुड जाने का मतलब

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चवन्‍न्‍ाी के पाठकों के लिए विनीत कुमार का विशेष आलेख। इसे रचना सिंह के संपादन में निकली दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय की हस्‍तलिखित पत्रिका हस्‍ताक्षर से लिया गया है।                                             -विनीत कुमार  “ ये , ये sss     हो तुम , जिसकी लिखी चीजें छापने से संपादक मना कर दिया करते हैं. असल में तुम यही हो , वह इरशाद कामिल नहीं जिसकी तारीफ लोग करते हैं.   मेरी पत्नी ,   पत्रिकाओं से अस्वीकृत रचनाएं खासकर पहल और उस पर ज्ञानरंजन की चिठ्ठियां दिखाते हुए अक्सर कहती है. ऐसा करके खास हो जाने के गुरुर में जीने से रोकती है. वो तो फिल्मफेयर और रेडियो मिर्ची से मिले अवार्ड से कहीं ज्यादा इन अस्वीकृत रचनाओं और न छापने के पीछे की वजह से लिखी ज्ञानरंजन और दूसरे संपादकों के खत ज्यादा संभालकर रखती है. उनका बस चले तो ड्राइंगरुम में अवार्ड की जगह इन्हें ही सजाकर रक्खे ताकि दुनिया जान सके कि असल में इरशाद कामिल है क्या और उसकी हैसियत क्या है   ?   ” तब इरशाद के गिलास का रंग बदला नहीं था. हम गिलास के आर-पार सबकुछ साफ देख पा रहे थे और साथ ही उन्हें भी. उत्साह और मुस्कराहट के