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दरअसल : चाहिए नई कहानियां

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दरअसल.. चाहिए नई कहानियां -अजय ब्रह्मात्‍मज हिंदी फिल्‍म इंडस्‍ट्री में नई कहानियों की कमी है। गौर करें तो पायेंगे कि जब भी किसी नए विषय पर ठीक-ठाक फिल्‍म आती है तो दर्शक उसे पसंद करते हैं। वे ऐसी फिल्‍मों को समर्थन देते हैं। हम ने धारणा बना ली है कि दर्शक तो एक ही प्रकार की फिल्‍में पसंद करते हैं। उन्‍हें केवल मसाला फिल्‍में चाहिए। यह प्रयोग से बचने का आसान तरीका है। इसकी आड़ में निर्माता-निर्देशक अपनी मीडियोक्रिटी छिपाते हैं। देखते ही देखते कल के अनेक मशहूर निर्देशक अप्रासंगिक हो गए है। उन्‍होंने खुद को नही बदला। कुछ नया करना चाहा तो भी अपनी सहज शैली से बाहर नहीं निकल सके। उनके लिए सबसे मुश्किल है कि नए विषय के महत्‍व और प्रभाव को समझ पाना। उन्‍हें लगता रहता है कि अगर दृश्‍य संरचना और चरित्र चित्रण में अपनी शैली छोड़ दी तो हस्‍ताक्षर मिट जाएगा। फिल्‍म इंडस्‍ट्री के स्‍थापित और मशहूर लेखक भी एक-दो फिल्‍मों के बाद अपने लेखन के फार्मूले में फंस जाते हैं। उनसे यही उम्‍मीद की जाती है कि वे पिछली सफलता दोहराते रहें। अगर उनके बीच से कोई नया प्रयोग करना चाहे या नई कथाभूमि की