फिल्म समीक्षा : मौसम
कठिन समय में प्रेम -अजय ब्रह्मात्मज पंकज कपूर की मौसम मिलन और वियोग की रोमांटिक कहानी है। हिंदी फिल्मों की प्रेमकहानी में आम तौर पर सामाजिक-राजनीतिक घटनाओं की पृष्ठभूमि नहीं रहती। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के स्नातक और गंभीर अभिनेता जब निर्देशक की कुर्सी पर बैठते हैं तो वे अपनी सोच और पक्षधरता से प्रेरित होकर अपनी सृजनात्मक संतुष्टि के साथ महत्वपूर्ण फिल्म बनाने की कोशिश करते हैं। हिंदी फिल्मों के लोकप्रिय ढांचे और उनकी सोच में सही तालमेल बैठ पाना मुश्किल ही होता है। अनुपम खेर और नसीरुद्दीन शाह के बाद अब पंकज कपूर अपने निर्देशकीय प्रयास में मौसम ले आए हैं। पंकज कपूर ने इस प्रेमकहानी के लिए 1992 से 2002 के बीच की अवधि चुनी है। इन दस-ग्यारह सालों में हरेन्द्र उर्फ हैरी और आयत तीन बार मिलते और बिछुड़ते हैं। उनका मिलना एक संयोग होता है, लेकिन बिछुड़ने के पीछे कोई न कोई सामाजिक-राजनीतिक घटना होती है। फिल्म में पंकज कपूर ने बाबरी मस्जिद, कारगिल युद्ध और अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के आतंकी हमले का जिक्र किया है। पहली घटना में दोनों में से कोई भी शरीक नहीं है। दूसरी घटना में हैरी