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यादगार रहा है 15 सालों का सफर : अभिषेक बच्चन

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-अजय ब्रह्मात्मज अभिनेता अभिषेक बच्चन ने हाल ही में फिल्म इंडस्ट्री में 15 साल पूरे किए हैं। 30 जून 2000 को उनकी पहली फिल्म जेपी दत्ता निर्देशित ‘रिफ्यूजी’ रिलीज हुई थी। उनकी उमेश शुक्ला निर्देशित ‘ऑल इज वेल’ 21 अगस्त को रिलीज होगी।         15 सालों के सफर यादगार और रोलरकोस्टर राइड रहा। उस राइड की खासियत यह होती है कि सफर के दरम्यान ढेर सारे उतार-चढ़ाव, उठा-पटक आते हैं, पर आखिर में जब आप उन मुश्किलों को पार कर उतरते हैं तो आप के चेहरे पर लंबी मुस्कान होती है। मेरा भी ऐसा ही मामला रहा है। मुझे बतौर अभिनेता व इंसान परिपक्व बनाने में ढेर सारे लोगों का योगदान रहा है। आज मैं जो कुछ भी हूं, उसमें बहुत लोगों की भूमिका है।     शुरुआत रिफ्यूजी और जे.पी.दत्ता साहब से करना चाहूंगा। पिछले 15 सालों के सफर में सबसे यादगार लम्हे रिफ्यूजी की स्क्रीनिंग के पल के थे। मुझे याद है मैं जून के आखिरी दिनों में मनाली में ‘शरारत’ की शूटिंग कर रहा था। मुझे ‘रिफ्यूजी’ की स्क्रीनिंग के लिए आना था, पर ‘शरारत’ में भी बड़ी स्टारकास्ट थी। हमारे डायरेक्टर गुरुदेव भल्ला ने मुझसे कहा कि यार तुम्हारे बिना तो हम कोई स

छोड़ दी है कंफर्ट जोन : अभिषेक बच्चन

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-अजय ब्रह्मात्मज ‘हैप्पी न्यू ईयर’ की शूटिंग, प्रोमोशन और रिलीज की व्यस्तता के बाद मैं कबड्ड़ी और फुटबॉल जैसे खेलों में लीन हो गया था। काफी व्यस्त रहा। खेलों को लेकर कुछ करने का सपना था, वह पूरा हुआ। कबड्डी और फुटबॉल दोनों खेलों के सफल आयोजन से बहुत खुशी मिली। ‘हैप्पी न्यू ईयर’ भी लोगों को पसंद आई। फिल्म में अपना काम सराहा जाता है तो बहुत अच्छा लगता है। कोई शिकायत नहीं है मुझे। हां, भूख बढ़ गई है।     भूख एक्टिंग की बढ़ी है। इन दिनों ‘हेरा फेरी 3’ और ‘हाउसफुल 3’ की शूटिंग कर रहा हूं। मेरे लिए दोनों ही फिल्में चुनौतीपूर्ण हैं। दोनों सफल रही हैं। उनकी अपनी एक प्रतिष्ठा है। चुनौती यह है कि मुझे उस प्रतिष्ठा के अनुकूल होना है। ‘हेरा फेरी 3’ में जॉन अब्राहम, परेश रावल और सुनील शेट्टी के साथ हाव-भाव मिलाना है तो ‘हाउसफुल 3’ में अक्षय कुमार, रितेश देशमुख और बोमन ईरानी के साथ खड़ा होना है। ये सभी कलाकार इन फिल्मों से वाकिफ हैं। दर्शक भी उन्हें देख चुके हैं। मैं दोनों फिल्मों में नया हूं। गौर करें तो दोनों फ्रेंचाइजी फिल्मों के प्रशंसक और दर्शक हैं। मुझे उन्हें संतुष्ट करना है। सचमुच मैं अपने

कैरेमल पॉपकॉर्न पसंद है आशुतोष को

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बर्थडे स्पेशल आशुतोष गोवारिकर के बर्थडे पर अभिषेक बच्चन बता रहे हैं उनके बारे में ... प्रस्तुति-अजय ब्रह्मात्मज आशुतोष गोवारिकर मेरे घनिष्ठ मित्र हैं। उनसे पहली मुलाकात अच्छी तरह याद है। उनके गले में चाकू घोंपा हुआ था। चाकू गले को आर-पार कर रहा था। उनके गले से खून निकल रहा था। वे सेट पर चहलकदमी करते हुए अपने शॉट का इंतजार कर रहे थे। उन्होंने यह गेटअप ‘इंद्रजीत’ फिल्म के लिए लिया था। उस फिल्म में मेरे डैड अमिताभ बच्चन थे। उस फिल्म को रोज मूवीज ने प्रोड्यूस किया था। गोल्डी के पिता का तभी देहांत हुआ था तो वे अपनी बहन सृष्टि के साथ सेट पर आते थे। एक दिन मैं भी गया था तो मैंने आशुतोष को इस अवस्था में देखा। वे इस फिल्म में कैरेक्टर आर्टिस्ट का रोल प्ले कर रहे थे।     उसके बाद मैं जिन दिनों असिस्टैंट डायरेक्टर और अपनी कंपनी का प्रोडक्शन का काम देख रहा था तो उन्होंने मुझे ‘लगान’ की स्क्रिप्ट सुनाई थी। मुझे वह फिल्म बेहद पसंद आई थी। मैंने कहा था कि यह फिल्म जरूर बननी चाहिए। उसके बाद हम पार्टियों और बैठकों में सामाजिक तौर पर मिलते रहे। हमारे संबंध हमेशा मधुर रहे। ऐश्वर्या ने उनके साथ ‘जोधा अ

कमी नहीं है काम की-अभिषेक बच्‍चन

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-अजय ब्रह्मात्मज     इन दिनों अभिषेक बच्चन फराह खान की ‘हैप्पी न्यू ईयर’ और उमेश शुक्ला की ‘आल इज वेल’ की शूटिंग कर रहे हैं। इन दोनों फिल्मों की शूटिंग समाप्ति तक कबड्डी का सीजन आ जाएगा। कबड्डी लीग की एक टीम उनके पास है। जुलाई में आरंभ होने वाले इस लीग के मैचों में पूरा समय देने की उनकी कोशिश रहेगी। इस साल के अंत में अमित शर्मा के साथ उनकी अगली फिल्म आरंभ होगी। लगातार व्यस्त अभिषेक बच्चन के बारे में कहीं खबर आई कि उनके पास फिल्में नहीं हैं, इसलिए वे कबड्डी पर ध्यान दे रहे हैं।     थोड़े नाराज स्वर में वे स्पष्ट शब्दों में अपनी बात कहते हैं, ‘अभी कुछ महीने पहले ही ‘धूम 3’ रिलीज हुई थी। कैसे कोई कह सकता है कि मेरी फिल्मों को रिलीज हुए काफी समय हो गए। इस साल के अंत तक ‘हैप्पी न्यू ईयर’ और ‘आल इज वेल’ भी रिलीज आ जाएगी। ये फिल्में कम हैं क्या? मुझे लगता है कि मैं कुछ पत्रकारों के निगाहों में खटकता हूं। वे निराधार फब्तियां कसते रहते हैं।’  शाहरुख खान के होम प्रोडक्शन और फराह खान के निर्देशन में बन रही ‘हैप्पी न्यू ईयर’ के बारे में पूछने पर वे कहते हैं, ‘वह फराह खान की शैली की फिल्म है। फुल

ऑन स्‍क्रीन ऑफ स्‍क्रीन : कामयाबी के साथ अभिषेक बच्चन की कदमताल नहीं बैठ पाई है

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-अजय ब्रह्मात्‍मज रोहन सिप्पी की फिल्म दम मारो दम की सीमित कामयाबी ने अभिषेक बच्चन की लोकप्रियता का दम उखडने से बचा लिया। फिल्म ट्रेड में कहा जा रहा था कि यदि फिल्म न चली तो अभिषेक का करियर ग्राफ गिरेगा। हर शुक्रवार को फिल्म रिलीज होने के साथ ही सितारों के लिए जरूरी होता है कि वे लगातार या थोडे-थोडे अंतराल पर अपनी सफलता से साबित करते रहें कि वे दर्शकों की पसंद पर अभी बने हुए हैं। दर्शकों की पसंद मापने का कोई अचूक पैमाना नहीं है। लेकिन माना जाता है कि जब किसी सितारे की मांग घटती है तो उसकी फिल्मों व विज्ञापनों की संख्या भी कम होने लगती है। इस लिहाज से अभिषेक अभी बाजार के पॉपुलर उत्पाद हैं। आए दिन उनके विज्ञापनों के नए संस्करण टीवी पर नजर आते हैं। पत्र-पत्रिकाओं के कवर पर उनकी तस्वीरें छपती हैं। अभी वे प्लेयर्स की शूटिंग के लिए रूस गए हैं। वहां से लौटने के बाद रोहित शेट्टी के निर्देशन में बन रही फिल्म बोल बचन शुरू होगी। इसमें उनके साथ अजय देवगन होंगे। फिर धूम-3 की अभी से चर्चा है, क्योंकि एसीपी जय दीक्षित को इस बार धूम-3 में आमिर खान को पकडना है। मुमकिन है कि अभिषेक के करियर की श्रद्धांज

फिल्‍म समीक्षा : दम मारो दम

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पुराना कंटेंट, नया क्राफ्ट -अजय ब्रह्मात्‍मज निर्देशक और अभिनेता की दोस्ती और समझदारी से अच्छी फिल्में बनती हैं। दम मारो दम भी अच्छी है, अगर अभिषेक बच्चन की पिछली फिल्मों की पृष्ठभूमि में देखें तो दम मारो दम अपेक्षाकृत अच्छी फिल्म है। रोहन सिप्पी ने अभिषेक बच्चन का बेहतर इस्तेमाल किया है। अन्य फिल्मों की तरह यहां वे बंधे, सिकुड़े, सिमटे और सकुचाए नहीं दिखते। स्क्रिप्ट की अपनी सीमा में उन्होंने निखरा प्रदर्शन किया है। उन्हें सहयोगी कलाकारों का अच्छा साथ मिला है। इसके बावजूद यह फिल्म कई स्तरों पर निराश करती है। दम मारो दम माडर्न मसाला फिल्म है, जिसमें पुराने फार्मूले की छौंक भर है। फिल्म में तीन मुख्य किरदार हैं, जो वास्तव में एक ही कहानी के हिस्से हैं। तीन कहानियों को एक कहानी में समेटने की संरचना अलग होती है। इस फिल्म में एक ही कहानी को टुकड़ों में बांट कर फिर से बुना गया है। लेखक और निर्देशक की कोशिश इसी बहाने क्राफ्ट में कमाल दिखाने की हो सकती है, लेकिन अगर यह विष्णु कामथ की सीधी कहानी के तौर पर पेश की जाती तो प्रभावशाली होती। विष्णु कामथ अपनी जिंदगी में सब कुछ खो चुका

एक्शन फिल्म है दम मारो दम

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-अजय ब्रह्मात्‍मज रोहन सिप्पी और अभिषेक बच्चन का साथ पुराना है। 'कुछ न कहो', 'ब्लफ मास्टर' के बाद 'दम मारो दम' उनकी तीसरी फिल्म है। 'दम मारो दम' के बारे में बता रहे हैं रोहन सिप्पी दम मारो दम एक सस्पेंस थ्रिलर है, जिसमें अभिषेक बच्चन पुलिस अधिकारी की भूमिका निभा रहे हैं। उनके साथ प्रतीक बब्बर और राणा दगुबटी भी हैं। फिल्म में बिपाशा बसु की खास भूमिका है, जबकि दीपिका पादुकोण सिर्फ एक गाने में दिल धड़काती दिखेंगी। 'दम मारो दम' को कॉप स्टोरी कह सकते हैं, लेकिन यह एक सस्पेंस थ्रिलर है। हमने एक नई कोशिश की है। फिल्म में तीन कहानिया हैं, जो एक दूसरे से गुंथी हुई हैं। पहली कहानी प्रतीक की है। वह स्टुडेंट है। एक खास मोड़ पर लालच में वह गलत फैसला ले लेता है। उसकी भिड़ंत एसीपी कामत से होती है। फिर अभिषेक की कहानी आती है। वह एक इंवेस्टीगेशन के सिलसिले में बाकी किरदारों से टकराता है। तीसरी कहानी में राणा और बिपाशा की लव स्टोरी है। राणा भी अभिषेक के रास्ते में आता है। हमारी कहानी पूरी तरह से फिक्शनल है। खूबसूरती की वजह से हमने गोवा की पृष्ठभूमि रखी। गोवा की छव

दम मारने की फुर्सत नहीं-अभिषेक बच्चन

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- अजय ब्रह्मात्मज अभिषेक बच्चन की फिल्म गेम रिलीज हो चुकी है और बमुश्किल दो सप्ताह के भीतर दम मारो दम दर्शकों के बीच होगी। किसी भी अभिनेता की फिल्मों के लिए यह मुश्किल स्थिति होती है, क्योंकि माना जाता है कि दो फिल्मों की रिलीज के बीच सुरक्षित अंतर रहना चाहिए। यह भी एक संयोग है कि उनकी पहली फिल्म गेम व‌र्ल्ड कप के फाइनल के एक दिन पहले रिलीज हुई और दूसरी दम मारो दम आईपीएल के मध्य रिलीज हो रही है। दर्शकों और ट्रेड पंडितों के बीच ऐसे संयोगों को लेकर भले ही चर्चा चल रही है, लेकिन अभिषेक बच्चन इनसे बेफिक्र हैं। वे स्पष्ट करते हैं, ''मैंने गेम के निर्माता रितेश से कहा था कि ऐसे वक्त फिल्म रिलीज न करें, लेकिन उन्होंने अपनी मजबूरी बताई। दूसरी फिल्म दम मारो दम 22 अप्रैल को रिलीज हो रही है। फिल्मों की रिलीज पर हमारा वश नहीं होता। फिल्म की डबिंग के बाद हमारा डिसीजन कोई मानी नहीं रखता।'' गेम के प्रति दर्शकों की प्रतिक्रिया को स्वीकार करते हुए अभिषेक बच्चन कहते हैं, ''सभी फिल्मों में हमारी मेहनत एक जैसी होती है। कुछ फिल्में दर्शकों को पसंद नहीं आतीं।'' वे बात बदल कर

फिल्‍म समीक्षा : पा

-अजय ब्रह्मात्‍मज आर बाल्की ने निश्चित ही निजी मुलाकातों में अमिताभ बच्चन के अंदर मौजूद बच्चे को महसूस करने के बाद ही पा की कल्पना की होगी। यह एक बुजुर्ग अभिनेता के अंदर जिंदा बच्चे की बानगी है। अमिताभ बच्चन की सुपरिचित छवि को उन्होंने मेकअप से हटा दिया है। फिल्म देखते समय हम वृद्ध शरीर के बच्चे को देखते हैं, जो हर तरह से तेरह साल की उम्र का है। पा हिंदी फिल्मों में इन दिनों चल रहे प्रयोग में सफल कोशिश है। एकदम नयी कहानी है और उसे सभी कलाकारों ने पूरी संजीदगी से पर्दे पर उतारा है। फिल्म थोड़ी देर के लिए ऑरो की मां की जिंदगी में लौटती है और उतने ही समय के लिए पिता की जिंदगी में भी झांकती है। फिल्म की स्क्रिप्ट केलिए आवश्यक इन प्रसंगों के अलावा कहानी पूरी तरह से ऑरो पर केंद्रित रहती है। ऑरो प्रोजेरिया बीमारी से ग्रस्त बालक है, लेकिन फिल्म में उसके प्रति करुणा या दुख का भाव नहीं रखा गया है। ऑरो अपनी उम्र के किसी सामान्य बच्चे की तरह है। मां, नानी, दोस्त और स्कूल केइर्द-गिर्द सिमटी उसकी जिंदगी में खुशी, खेल और मासूमियत है। स्कूल में आयोजित एक प्रतियोगिता का पुरस्कार लेने क

भारत का पर्याय बन चुकी हैं ऐश्वर्या राय

-हरि सिंह ऐश्वर्या राय के बारे में कुछ भी नया लिख पाना मुश्किल है। जितने लिंक्स,उतनी जानकारियां। लिहाजा हमने कुछ नया और खास करने के लिए उनके बिजनेस मैनेजर हरि सिंह से बात की। वे उनके साथ मिस व‌र्ल्ड चुने जाने के पहले से हैं। हरि सिंह बता रहे हैं ऐश के बारे में॥ मुझे ठीक-ठीक याद नहीं कि मैंने कब उनके साथ काम करना आरंभ किया। फिर भी उनके मिस व‌र्ल्ड चुने जाने के पहले की बात है। उन्होंने मॉडलिंग शुरू कर दी थी। मिस इंडिया का फॉर्म भर चुकी थीं। आरंभिक मुलाकातों में ही मुझे लगा था कि ऐश्वर्या राय में कुछ खास है। मुझे उनकी दैवीय प्रतिभा का तभी एहसास हो गया था। आज पूरी दुनिया जिसे देख और सराह रही है, उसके लक्षण मुझे तभी दिखे थे। मॉडलिंग और फिल्मी दुनिया में शामिल होने के लिए बेताब हर लड़की में सघन आत्मविश्वास होता है, लेकिन हमलोग समझ जाते हैं कि उस आत्मविश्वास में कितना बल है। सबसे जरूरी है परिवार का सहयोग और संबल। अगर आरंभ से अभिभावक का उचित मार्गदर्शन मिले और उनका अपनी बेटी पर भरोसा हो, तो कामयाबी की डगर आसान हो जाती है। ऐश के साथ यही हुआ। उन्हें अपने परिवार का पूरा समर्थन मिला। मां-बाप ने उ

रेड कार्पेट पर मटकते चहकते सितारे

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-अजय ब्रह्मात्मज आए दिन पत्र-पत्रिका और टीवी चैनलों पर स्टारों के रेड कार्पेट पर चलने की खबर और तस्वीरें आती रहती हैं। कान फिल्म समारोह में पहले सोनम कपूर के रेड कार्पेट पर चलने की खबर आई। फिर इंटरनेशनल सौंदर्य प्रसाधन कंपनी ने स्पष्टीकरण दिया कि रेड कार्पेट पर ऐश्वर्या राय ही चलेंगी। अंदरूनी कानाफूसी यह हुई कि ऐश्वर्या ने सोनम का पत्ता कटवा दिया। समझ सकते हैं कि रेड कार्पेट का क्या महत्व है? ऑस्कर के रेड कार्पेट पर स्लमडॉग मिलेनियर के लिए भारतीय एक्टर अनिल कपूर और इरफान खान चले। साथ में फिल्म के बाल कलाकार भी थे। भारत में ऑस्कर रेड कार्पेट की तस्वीरें प्रमुखता से छपीं। उन्हें पुरस्कार समारोह के समान ही महत्व दिया गया। कान फिल्म समारोह में काइट्स की जोड़ी रितिक रोशन और बारबरा मोरी ने रेड कार्पेट पर तस्वीरें खिंचवाई। देखें तो रेड कार्पेट पिछले कुछ सालों में प्रकाश में आया है। पहले विदेश से आए प्रमुख राजनयिक मेहमानों के लिए रेड कार्पेट वेलकम का चलन था। बाद में विदेश के पुरस्कार समारोह और कार्यक्रमों की तर्ज पर भारत मेंभी रेड कार्पेट का चलन बढ़ा। मुख्य कार्यक्रम से पहले स्टार और सेलिब्रिट

एक तस्वीर:दिल्ली ६,अभिषेक बच्चन और...

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इस तस्वीर के बारे में आप की टिप्पणी,राय,विचार,प्रतिक्रिया का स्वागत है.यह तस्वीर पीवीआर,जुहू,मुंबई में २२ फरवरी को एक खास अवसर पर ली गई है.बीच में घड़ी के साथ मैं हूँ आप सभी का अजय ब्रह्मात्मज.

फ़िल्म समीक्षा:दिल्ली ६

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हम सब के अन्दर है काला बन्दर -अजय ब्रह्मात्मज ममदू, जलेबी, बाबा बंदरमार, गोबर, हाजी सुलेमान, इंस्पेक्टर रणविजय, पागल फकीर, कुमार, राजेश, रज्जो और कुमार आदि 'दिल्ली ६' के जीवंत और सक्रिय किरदार हैं। उनकी भागीदारी से रोशन मेहरा (अभिषेक बच्चन) और बिट्टू (सोनम कपूर) की अनोखी प्रेम कहानी परवान चढ़ती है। इस प्रेमकहानी के सामाजिक और सामयिक संदर्भ हैं। रोशन और बिट्टू हिंदी फिल्मों के आम प्रेमी नही हैं। उनके प्रेम में नकली आकुलता नहीं है। परिस्थितियां दोनों को करीब लाती हैं, जहां दोनों के बीच प्यार पनपता है। राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने बिल्कुल नयी शैली और मुहावरे में यह प्रेमकहानी रची है। न्यूयार्क में दादी (वहीदा रहमान) की बीमारी के बाद डाक्टर उनके बेटे राजन मेहरा और बहू फातिमा को सलाह देता है कि वे दादी को खुश रखने की कोशिश करें, क्योंकि अब उनके दिन गिनती के बचे हैं। दादी इच्छा जाहिर करती हैं कि वह दिल्ली लौट जाएंगी। वह दिल्ली में ही मरना चाहती हैं। बेटा उनके इस फैसले पर नाराजगी जाहिर करता है तो पोता रोशन उन्हें दिल्ली पहुंचाने की जिम्मेदारी लेता है। भारत और दिल्ली-6 यानी चांदनी चौक प

विश्वास और भावनाओं से मैं भारतीय हूं: अभिषेक बच्चन

-अजय ब्रह्मात्मज अभिषेक बच्चन की फिल्म 'दिल्ली 6' शुक्रवार को रिलीज हो रही है। यह फिल्म दिल्ली 6 के नाम से मशहूर चांदनी चौक इलाके के जरिए उन मूल्यों और आदर्शो और सपनों की बात करती है, जो कहीं न कहीं भारतीयता की पहचान है। अभिषेक बच्चन से इसी भारतीयता के संदर्भ में हुई बात के कुछ अंश- आप भारतीयता को कैसे डिफाइन करेंगे? हमारा देश इतना विशाल और विविध है कि सिर्फ शारीरिक संरचना के आधार पर किसी भारतीय की पहचान नहीं की जा सकती। विश्वास और भावनाओं से हम भारतीय होते हैं। भारतीय अत्यंत भावुक होते हैं। उन्हें अपने राष्ट्र पर गर्व होता है। मुझमें भी ये बातें हैं। क्या 'दिल्ली 6' के रोशन मेहरा और अभिषेक बच्चन में कोई समानता है? रोशन मेहरा न्यूयार्क में पला-बढ़ा है। वह कभी भारत नहीं आया। इस फिल्म में वह पहली बार भारत आता है, तो किसी पर्यटक की नजर से ही भारत को देखता है। यहां बहुत सी चीजें वह समझ नहीं पाता, जो शायद आप्रवासी भारतीय या विदेशियों के साथ होता होगा। मैं अपने जीवन के आरंभिक सालों में विदेशों में रहा, इसलिए राकेश मेहरा ने मेरे परसेप्शन को भी फिल्म में डाला। इससे भारत को अलग

दिल्ली ६ के बारे में राकेश ओमप्रकश मेहरा

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अभिषेक बच्चन और सोनम कपूर के साथ दिल्ली 6 में दिल्ली के चांदनी चौक इलाके की खास भूमिका है। चांदनी चौक का इलाका दिल्ली-6 के नाम से भी मशहूर है। राकेश कहते हैं, मुझे फिल्मों के कारण मुंबई में रहना पड़ता है। चूंकि मैं दिल्ली का रहने वाला हूं, इसलिए मुंबई में भी दिल्ली खोजता रहता हूं। नहीं मिलने पर क्रिएट करता हूं। आज भी लगता है कि घर तो जमीन पर ही होना चाहिए। अपार्टमेंट थोड़ा अजीब एहसास देते हैं। क्या दिल्ली 6 दिल्ली को खोजने और पाने की कोशिश है? हां, पुरानी दिल्ली को लोग प्यार से दिल्ली-6 बोलते हैं। मेरे नाना-नानी और दादा दादी वहीं के हैं। मां-पिता जी का भी घर वहीं है। मैं वहीं बड़ा हुआ। बाद में हमलोग नयी दिल्ली आ गए। मेरा ज्यादा समय वहीं बीता। बचपन की सारी यादें वहीं की हैं। उन यादों से ही दिल्ली-6 बनी है। बचपन की यादों के सहारे फिल्म बुनने में कितनी आसानी या चुनौती रही? दिल्ली 6 आज की कहानी है। आहिस्ता-आहिस्ता यह स्पष्ट हो रहा है कि मैं अपने अनुभवों को ही फिल्मों में ढाल सकता हूं। रंग दे बसंती आज की कहानी थी, लेकिन उसमें मेरे कालेज के दिनों के अनुभव थे। बचपन की यादों का मतलब यह कतई न लें

फ़िल्म समीक्षा:दोस्ताना

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भारतीय परिवेश की कहानी नहीं है -अजय ब्रह्मात्मज कल हो न हो में कांता बेन के मजाक की लोकप्रियता को करण जौहर ने गंभीरता से ले लिया है। अबकि उन्होंने इस मजाक को ही फिल्म की कहानी बना दिया। दोस्ताना दो दोस्तों की कहानी है, जो किराए के मकान के लिए खुद को समलैंगिक घोषित कर देते हैं। उन्हें इस झूठ के नतीजे भी भुगतने पड़ते हैं। संबंधों की इस विषम स्थिति-परिस्थिति में फिल्म के हास्य दृश्य रचे गए हैं। आशचर्य नहीं की इसे शहरों के युवा दर्शक पसंद करें। देश के स्वस्थ्य मंत्री ने भी सुझाव दिया है कि समलैंगिक संबंधों को कानूनी स्वीकृति मिल जानी चाहिए। सम्भव है कि कारन कि अगली फ़िल्म समलैंगिक संबंधो पर हो। करण की दूसरी फिल्मों की तरह इस फिल्म की शूटिंग भी विदेश में हुई है। इस बार अमेरिका का मियामी शहर है। वहां भारतीय मूल के दो युवकों को मकान नहीं मिल पा रहा है। एक मकान मिलता भी है तो मकान मालकिन अपनी भतीजी की सुरक्षा के लिए उसे लड़कों को किराए पर नहीं देना चाहती। मकान लेने के लिए दोनों खुद को समलैंगिक घोषित कर देते हैं। फिल्म को देखते समय याद रखना होगा कि यह भारतीय परिवेश की कहानी नहीं है। यह एक ऐसे

दोस्ती का मतलब वफादारी है: अभिषेक बच्चन

अभिषेक बच्चन की नई फिल्म दोस्ताना दोस्ती पर आधारित है। आज रिलीज हो रही इस फिल्म के बारे में पेश है अभिषेक बच्चन से खास बातचीत- दोस्ती क्या है आप के लिए? मेरे लिए दोस्ती का मतलब वफादारी है। दोस्त आसपास हों, तो हम सुरक्षा और संबल महसूस करते हैं। क्या दोस्त अपने पेशे के ही होते हैं? दोस्त तो दोस्त होते हैं। जरूरी नहीं है कि वे आप के पेशे में ही हों। मेरे कई दोस्त ऐसे हैं,जिनका फिल्मों से कोई नाता नहीं है। दोस्त बनते हैं या बनाए जाते है? दोस्त बनाए जाते हैं। दोस्ती खुद-ब-खुद नहीं होती। दोस्ती की जाती है। उसके लिए कोशिश करनी पड़ती है। कौन सा रिश्ता ज्यादा मजबूत होता है? दोस्ती या खून का रिश्ता? यह व्यक्ति पर निर्भर करता है। मेरे और आपके या किसी और के अनुभव में फर्क हो सकता है। मैं रिश्तों को अलग-अलग करके नहीं देखता। दोस्त और दोस्ती को लेकर आप के अनुभव कैसे रहे हैं? मेरे ज्यादातर दोस्त बचपन के ही हैं। गोल्डी बहल,सिकंदर खेर,उदय चोपड़ा और रितिक रोशन सभी मेरे बचपन के दोस्त हैं। हम सभी एक ही स्कूल में पढ़ते थे। मैंने दोस्ती निभाई है और वे सभी दोस्त बने रहे हैं। कोई गैरफिल्मी दोस्त भी है? बिल्कुल।

'द्रोण' में मेरा लुक और कैरेक्टर एकदम नया है-अभिषेक बच्चन

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-अजय ब्रह्मात्मज कह सकते हैं कि अभिषेक बच्चन के करिअर पर थ्री डी इफेक्ट का आरंभ 'द्रोण' से होगा। यह संयोग ही है कि उनकी आगामी तीनों फिल्मों के टाइटल 'डी' से आरंभ होते हैं। 'द्रोण', 'दोस्ताना' और 'दिल्ली-६' में विभिन्न किरदारों में दिखेंगे। 'द्रोण' उनके बचपन के दोस्त गोल्डी बहल की फिल्म है। इस फंतासी और एडवेंचर फिल्म में अभिषेक बच्चन 'द्रोण' की शीर्षक भूमिका निभा रहे हैं। पिछले दिनों मुंबई में उनके ऑफिस 'जनक' में उनसे मुलाकात हुई तो 'द्रोण' के साथ ही 'अनफारगेटेबल' और बाकी बातों पर भी चर्चा हुई। फिलहाल प्रस्तुत हैं 'द्रोण' से संबंधित अंश ... - सबसे पहले 'द्रोण' की अवधारणा के बारे में बताएं। यह रेगुलर फिल्म नहीं लग रही है। 0 'द्रोण' अच्छे और बुरे के सतत संघर्ष की फिल्म है। सागर मंथन के बाद देवताओं ने एक साधु को अमृत सौंपा था। जब साधु को लगा कि असुर करीब आ रहे हैं और वे उससे अमृत छीन लेंगे तो उसने अमृत घट का राज प्रतापगढ़ के राजा वीरभद्र सिंह को बताया और उनसे सौगंध ली कि वे अमृत की रक्षा

मेरी बीवी का जवाब नहीं: अभिषेक बच्चन

-अजय ब्रह्मात्मज वे भारत ही नहीं, एशिया के सर्वाधिक ग्लैमरस परिवार के युवा सदस्य हैं, लेकिन घर जाने से पहले अभिषेक बच्चन शूटिंग स्पॉट के मेकअप रूम में पैनकेक की परतों के साथ ही अपनी हाई-फाई प्रोफाइल भी उतार आते हैं। ऐश्वर्या राय के साथ उनकी शादी का कार्ड पाना पूरे मुल्क की हसरत थी, तो अब देश इस इंतजार में है कि उनके आंगन में बच्चे की किलकारी कब गूंजेगी? एक लंबी बातचीत में जूनियर बच्चन ने खोला अपनी निजी जिंदगी के कई पन्नों को- ऐश्वर्या राय में ऐसी क्या खास बात है कि आपने उनसे शादी की? वह मेरी सबसे अच्छी दोस्त थीं। वह ऐसी हैं, जिनके साथ मैं अपनी जिंदगी गुजार सकता हूं। वह ऐसी हैं, जो सिर्फ मेरी ही चिंता नहीं करतीं, बल्कि पूरे परिवार का ख्याल रखती हैं। वह जैसी इंसान हैं, उनके बारे में कुछ भी कहना कम होगा। वह अत्यंत दयालु और सुंदर हैं। बचपन से मुझे मां-पिताजी ने यही शिक्षा दी कि जिंदगी का उद्देश्य बेहतर इंसान बनना होना चाहिए। ऐश्वर्या वाकई बेहतर इंसान हैं। शादी के बाद आपका जीवन कितना बदला है? फर्क यह आया है कि परिवार में अब एक नया सदस्य आ गया है। शादी के बाद सभी का जीवन बदलता है, जिम्मेदारी

अभिषेक बच्चन से अजय ब्रह्मात्मज की बातचीत

अभिषेक बच्चन की पहली फिल्म से लेकर आज तक जितनी भी फिल्में आयीं है सभी में उनका अलग अंदाज देखने को मिला। प्रस्तुत है अभिषेक से बातचीत- अभिषेक इन दिनों क्या कर रहे हैं? शूटिंग कर रहा हूं। दिल्ली-6 की शूटिंग कर रहा था। उसके बाद करण जौहर की फिल्म कर रहा हूं, जो तरूण मनसुखानी निर्देशित कर रहे हैं। फिर रोहन सिप्पी की फिल्म शुरू करूंगा। काम तो है और आप लोगों के आर्शीवाद से काफी काम है। सरकार राज आ रही है। उसके बारे में कुछ बताएं? सरकार राज, सरकार की सीक्वल है। इसमें फिर से नागरे परिवार को देखेंगे। सरकार जहां खत्म हुई थी, उससे आगे की कहानी है इसमें। नयी कहानी है और नयी समस्या है। इसमें ऐश्वर्या राय भी हैं। मैं तो बहुत एक्साइटेड हूं। ऐश्वर्या इस फिल्म में बिजनेस वीमैन का रोल निभा रही हैं। वह नागरे परिवार के सामने एक प्रस्ताव रखती हैं और बाद में उस परिवार के साथ काम करती हैं। द्रोण के बारे में क्या कहेंगे? सुपरहीरो फिल्म है? सब लोग द्रोण को सुपरहीरो फिल्म समझ रहे हैं। वह सुपरहीरो फिल्म नहीं है। हां, मैं फिल्म का हीरो हूं, लेकिन सुपरहीरो नहीं हूं। द्रोण एक फैंटेसी फिल्म है। उस फिल्म का थोड़ा सा का