सामाजिक मुद्दे मुझे छूते हैं: सुभाष घई


-अजय ब्रह्मात्मज
चर्चा है कि शोमैन सुभाष घई एक छोटी फिल्म ब्लैक एंड ह्वाइट लेकर आ रहे हैं?
मैं छोटी नहीं, एक भिन्न फिल्म लेकर आ रहा हूं। वैसे, फिल्म छोटी या बड़ी रिलीज के बाद होती है। तारे जमीं पर को लोग छोटी फिल्म समझ रहे थे, लेकिन आज वह सबसे बड़ी हिट है। दर्शकों की स्वीकृति से फिल्म छोटी या बड़ी होती है।
दरअसल, जब हम किसी फिल्म को छोटी फिल्म कहते हैं, तो उसका मतलब होता है रिअल लाइफ जैसी फिल्म, जिसमें आम जिंदगी के तनाव, संघर्ष और द्वंद्व रहते हैं। मेरी ज्यादातर फिल्में लार्जर दैन लाइफ थीं। उनमें ग्लैमर रहा, बड़े-बड़े स्टार रहे और बड़ी फिल्में रहीं।

फिर इस बदलाव की वजह?
जब मैंने इस फिल्म की कहानी सुनी, तो मुझसे कहानी ने कहा कि अगर आप रिअल में शूट करोगे, तो मैं चलूंगा। दरअसल, एक सच्चाई यह भी है कि हर फिल्म की कहानी ही भाषा, शैली, बजट, विस्तार, गहराई और भव्यता तय करती है। कुछ फिल्में भव्य होती हैं और कुछ गहरी होती हैं। ब्लैक ऐंड ह्वाइट गहरी फिल्म है। गहरी फिल्म को अगर आप छोटी कहेंगे, तो मुझे ऐतराज होगा। यह गहरी और विचारधारा की फिल्म है। इसे देखकर लोग कहेंगे कि घई ने ऐसी फिल्म क्यों बनाई और इतनी अच्छी कैसे बनाई?

ब्लैक ऐंड ह्वाइट में क्या दिखा रहे हैं आप?
कहानी इस बात पर है कि क्या हम आज भी ब्लैक ऐंड ह्वाइट नजरिए से ही सोचें या कुछ ग्रे भी होता है। ये जो सांप्रदायिक झगड़े हैं, मुद्दे हैं। छोटी-छोटी बातों पर बवाल हो जाता है। आखिर क्यों हम सभी केवल ब्लैक ऐंड ह्वाइट में ही सोचते हैं। हम बीच के रास्ते के बारे में सोचते ही नहीं। हर बार कहेंगे -मार दो, उड़ा दो॥। अपने ही देश की प्रॉपर्टी नष्ट करेंगे! आखिर सांप्रदायिक सौहार्द के रास्ते तो हमें ही खोजने होंगे! लोग सांप्रदायिक नहीं होना चाहते। हिंदू-मुसलिम मुद्दे पर बेवजह हम डर कर लड़ते रहते हैं।

फिल्म की कहानी के बारे में कुछ बताएं?
इस फिल्म में अनिल कपूर उर्दू के एक प्रोफेसर हैं। नाम है राजन माथुर। शायरी करते हैं। उन्होंने एक जटिल और बेहतरीन किरदार निभाया है। वे इस फिल्म में ह्वाइट के प्रतीक हैं और दूसरी ओर फिल्म इंस्टीट्यूट से आए नवोदित अनुराग सिन्हा ब्लैक के प्रतीक हैं। वे एक ही सोच पर चलते हैं। दूसरे की विचारधारा में यकीन नहीं करते। उनकी विचारधारा में आप यकीन नहीं करेंगे, तो वे जान से मार देंगे। वे इतने क्रूर हैं। एक फंडामेंटलिस्ट और मॉडर्न स्कॉलर के फर्क की कहानी है ब्लैक ऐंड ह्वाइट। अनिल कपूर की पत्नी शेफाली शाह एक सामाजिक कार्यकर्ता के रोल में हैं।

फिल्म को दिल्ली में शूट करने की खास वजह?
फिल्म की शूटिंग वास्तविक लोकेशन पर हुई है। चांदनी चौक के आसपास की फिल्म है। गौरतलब है कि चांदनी चौक सेक्यूलरिज्म का सबसे बड़ा सिंबल है। यह फिल्म दर्शकों को जगाने का काम करेगी। इसके हर सीन में ऐसी खासियत है। वास्तविक लोकेशन से फिल्म में जान आ गई है। आप चांदनी चौक, लाल किला और जामा मस्जिद के सेट कहां लगा सकते हैं? दिल्ली अपने खास रंग में दिखेगी, इस फिल्म में।

क्या जिंदगी की कठोर सच्चाइयां घई को प्रभावित करती हैं?
बिल्कुल करती हैं। मैं फिल्में चाहे जैसी भी बनाऊं, लेकिन विचारक भी हूं। अपनी सारी संपत्ति लगा कर आज स्कूल खोला है। यहां फिल्मों की पढ़ाई होती है। कुछ सालों बाद यहां से निकले युवा लड़के-लड़कियां फिल्में बनाएंगे। ब्लैक ऐंड ह्वाइट की प्रेरणा अखबारों से मिली। बम ब्लॉस्ट की रिपोर्ट से मिली। सब्जी लेने जा रही मां बम ब्लॉस्ट में मारी गई। स्कूल जाता बच्चा मारा गया। उनका क्या कसूर था? उन्हें कुछ मालूम भी नहीं था! उन्हें क्यों उड़ा दिया गया? सामाजिक मुद्दे मुझे छूते हैं। मैं दूसरों की तरह उसमें भाग नहीं लेता। मैं दिखाता नहीं कि कार्यकर्ता हूं। न ही राजनीति में मेरी कोई रुचि है। बस, मैं अपनी बातें फिल्मों के जरिए कह देता हूं।

Comments

Asha Joglekar said…
आपके लेख से फिल्म देखने की इच्छा जाग गई ।

Popular posts from this blog

तो शुरू करें

फिल्म समीक्षा: 3 इडियट

सिनेमालोक : साहित्य से परहेज है हिंदी फिल्मों को