फिर असफल रहे रामू

-अजय ब्रह्मात्मज
क्लोज अप, फुसफुसाहट, साजिश, हत्या..सरकार की काली लुंगी, बगैर कालर की काली शर्ट, माथे पर लाल टीका, रीमलेस चश्मा और पूरे माहौल में धुआं-धुआं ़ ़ ़यह सब कुछ हम सभी ने राम गोपाल वर्मा की पिछली फिल्म सरकार में देखा था। इन सब के साथ इस बार थोड़ा बदलाव है। सरकार यानी सुभाष नागरे के बेटे शंकर ने शूट पहन लिया है और विदेश से एक लड़की अनीता राज आ गई है। कहानी मुंबई से पसर कर ठाकुरवाड़ी तक गई और हमने राव साहब के भी दर्शन किए। एक नया किरदार सोम भी आया। कुछ नए खलनायक दिखे- काजी, वोरा, कांगा और पाला बदलता वफादार चंदर ़ ़ ़
रामू ने सरकार की तकनीक ही रखी। उन्होंने अमिताभ, अभिषेक और ऐश्वर्या को भावपूर्ण दृश्य दिए ताकि वे चेहरे और आंखों से अभिनय की बारीकियां प्रदर्शित करें। इस संदर्भ में कई क्लोजअप में बुरे लगने के बावजूद अमिताभ तो भाव प्रदर्शन में सफल रहे, लेकिन अभिषेक और ऐश्वर्या में अपेक्षित ठहराव नहीं दिखा। हां, कैमरे के आगे छोटे कलाकार अवश्य टिके रहे और उन्होंने ही इस फिल्म की नाटकीयता बनाए रखने में मदद की।
फिल्म की कहानी राजनीति, विदेशी निवेश, औद्योगिकीकरण की समस्याओं को इंटरवल के पहले छूती है। ऐसा आभास हुआ कि कहानी गैंगस्टर परिवार से निकलकर व्यापक संदर्भ ले रही है और शायद हम अपराध और राजनीति के पहलुओं से बाहर निकल कर वर्तमान महाराष्ट्र की समस्याओं को समेटती कोई फिल्म देखने जा रहे हैं। लेकिन राजनीतिक समझ के अभाव के कारण कहानी फिर से सिमटकर परिवार में आ गई और हत्या, बदला और साजिश की साधारण फिल्म बन कर रह गई।
वैसे भी यह परिवार की ही कहानी है, क्योंकि शंकर की हत्या के बाद सुभाष नागरे अपने मृत बेटे विष्णु के बेटे चीकू को नागपुर से मुंबई बुलाने का आदेश देता है।
रामू फिर से असफल रहे, लेकिन इस बार उनकी फिसलन ़ ़ ़ आग जैसी नहीं है। उनके पास अमिताभ जैसा समर्थ अभिनेता है और कई नाटकीय दृश्य हैं। रामू की टेकिंग और दृश्य संयोजन में दोहराव दिखने लगा है। अब उन्हें अपने फिल्मों की भावभूमि बदलनी चाहिए या फिर कुछ नए प्रयोगों और लेखकों का सहारा लेना चाहिए।
सरकार राज आरंभिक आधे घंटे में अपेक्षाएं बढ़ा देती है, लेकिन इंटरवल के तुरंत बाद से कहानी का आधार दरकने लगता है। फिल्म के कथानक का सबसे कमजोर पक्ष यह है कि सुभाष नागरे को आखिरकार हत्या और साजिश के कारण बताने पड़ते हैं। किसी भी फिल्ममेकर की तब कमजोरी ही दिखाई देती है जब उसका किरदार कहानी के पेंचों को सुनाने या बताने लगे। अनीता राज और शंकर नागरे के चरित्र निर्वाह पर निर्देशक ने अधिक ध्यान नहीं दिया है।
तकनीकी दृष्टि से सरकार की श्रेणी की फिल्म है सरकार राज। बस पटकथा और दृश्य संयोजन में तालमेल नहीं दिखाई पड़ता। फिल्म में वन लाइनर अच्छे बन पड़े हैं, लेकिन वैसे दृश्य स्पष्ट रूप से रेखांकित किए जान पड़ते हैं।

Comments

Udan Tashtari said…
आपकी समीक्षा पढ़ ली फिर भी देखने की इच्छा है.
Ghost Buster said…
रामू बार बार एक ही गलती कर रहे हैं. कालजयी फिल्मों का अच्छा रीमेक बनाना सम्भव नहीं होता. जिसने एक बार शोले या गौड़फादर देख ली वो कभी इन फिल्मों को पसंद नहीं कर सकता.

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