फिल्‍म समीक्षा: लंदन ड्रीम्‍स

ईर्ष्‍या और दोस्‍ती के बीच
-अजय ब्रह्मात्‍मज

विपुल शाह ने पंजाब और लंदन को एक बार फिर जोड़ा है। इस बार भी पंजाब का एक सीधा-सादा मुंडा लंदन पहुंचता है और वहां सभी का चहेता बन जाता है। अनजाने में वह अपने दोस्त के लिए ही बाधा बन जाता है। ईष्र्या जन्म लेती है और फिर एक दोस्त अपनी आकांक्षाओं के लिए दूसरे का दुश्मन बन जाता है।

अर्जुन और मन्नू बचपन के दोस्त हैं। अर्जुन मेहनती और लगनशील है। वह संगीत की दुनिया में अपना नाम रोशन करना चाहता है। परिवार में हुए एक हादसे की वजह से कोई नहीं चाहता कि अर्जुन संगीत का अभ्यास करे। दूसरी तरफ मन्नू हुनरमंद है। उसमें जन्मजात प्रतिभा है। बड़ा होने पर अर्जुन लंदन पहुंच जाता है और मन्नू पंजाब में ही रह जाता है। वह स्थानीय राजा-रानी बैंड में म्यूजिसियन बन गया है। उधर अर्जुन लंदन में धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है। उसने अपने बैंड का नाम लंदन ड्रीम्स रखा है। लंबे समय बाद दोनों दोस्त मिलते हैं। मन्नू भी लंदन पहुंचता है। वह अपने बेपरवाह अंदाज से सभी का प्रिय बन जाता है। यहां तक कि वह दोस्त की प्रेमिका का भी दिल जीत लेता है। यहीं से अर्जुन के मन में कसक पैदा होती है। वह मन्नू का दुश्मन बन जाता है। विपुल शाह ने दोस्तों के बीच की ईष्र्या के भाव पर फिल्म केंद्रित की है, लेकिन उसे पूरी तरह उभार नहीं पाए हैं। लंदन ड्रीम्स में चुस्त पटकथा की कमी महसूस होती है। आरंभ में पात्रों के संबंध विकसित होने और द्वंद्व स्थापित करने की कडि़यां मजबूत नहीं बन पाई हैं। इंटरवल के पास जब फिल्म पूरी तरह से लंदन पहुंच जाती है, तो दर्शकों को बांधती है। मन्नू के रूप में सलमान खान अपने बेफिक्राना अंदाज से फिल्म के दूसरे चरित्रों के साथ दर्शकों का भी दिल जीतते हैं। उनकी अदाएं अच्छी लगती हैं, लेकिन वह थोड़ा ध्यान दें और अपने दृश्यों को संवादों से भरें तो ये अदाएं गहरी भी हो जाएंगी। सलमान खान अपने किरदारों को निजी एटीट्यूड के करीब ले आते हैं। यह कई बार भाता है, लेकिन उसका प्रभाव लंबे समय तक नहीं रहता। अजय देवगन ने ईष्र्यालु दोस्त की भूमिका अच्छी तरह निभायी है। पूरी फिल्म में वे लूजर और कमजोर दिखते हैं। अंतिम दृश्य में मन्नू से माफी मांग कर उनका चरित्र उदात्त बनता है।

चूंकि फिल्म में अजय देवगन और सलमान खान हैं। फिल्म की कहानी दोस्ती, ईष्र्या और द्वंद्व है, इसलिए अपेक्षा रहती है कि दोस्तों की टकराहट के नाटकीय दृश्य होंगे। फार्मूला फिल्म में ऐसे ड्रामा कारगर होते हैं। टकराहट और मनौव्वल के दृश्यों में अधिक दम नहीं है। उन्हें संवाद अदायगी और प्रसंगों से अधिक नाटकीय करने की जरूरत थी। फिल्म की नायिका की खास भूमिका नहीं थी। वह एक पर्स की तरह हैं, जिन्हें सलमान खान ने अजय देवगन की जेब से निकाल कर अपनी जेब में डाल लिया। कृपा कर, महिला किरदारों को सिर्फ नाचने-गाने और आंसू बहाने के लिए या पर्स की तरह न रखें।

लंदन ड्रीम्स म्यूजिकल फिल्म है, किंतु इसका संगीत अधिक प्रभावशाली नहीं है। रॉक स्टार किरदारों की फिल्म का संगीत राकिंग होना चाहिए था। प्रसून जोशी के बोल में अप्रचलित शब्दों का प्रयोग अच्छा लगता है, किंतु वह प्रयोग संगीत की चाशनी में घुल जाए तो सार्थक होता है।



Comments

Popular posts from this blog

तो शुरू करें

फिल्म समीक्षा: 3 इडियट

फिल्‍म समीक्षा : आई एम कलाम