आमिर लाइव!

अभिनेता, निर्माता और निर्देशक की त्रिमूर्ति आमिर खान अभी निर्माता के रूप में मुखर हैं। वे इन दिनों अपनी फिल्म पीपली लाइव के प्रमोशन को देश-विदेश की यात्राएं कर रहे हैं। अपने स्पर्श से उन्होंने अनुषा रिजवी निर्देशित इस फिल्म के प्रति उम्मीदें बहुत बढ़ा दी हैं। फिल्म के एक गीत 'महंगाई डायन' ने दर्शकों को राजनीतिक और भावनात्मक दोनों स्तरों पर छुआ है। आमिर खान से यह खास बातचीत उनके दफ्तर में हुई। बातचीत करते समय वे एक साथ सचेत और अनौपचारिक रहते हैं। कुछ जवाब तो रेडीमेड होते हैं, लेकिन कुछ सवालों में वे जिज्ञासाओं को एक्सप्लोर करते हैं। कोई नई बात सूझने-समझने पर कृतज्ञता भी जाहिर करते हैं और उनका प्रिय एक्सपेशन है 'अरे हां!'
[लगभग नौ महीनों के बाद मुलाकात हो रही है आपसे। नया क्या सीखा इस बीच?]
मराठी सीख रहा हूं। हम चारों मराठी सीख रहे हैं। स्कूल में मराठी नहीं सीख पाया। तब मैं लैंग्वेज का वैल्यू नहीं समझ पाया था। भाषा के रूट्स में ही हमारा फ्यूचर है। मेरी पहली भाषा अंग्रेजी हो गई है। अब समझ में आया तो सुधार ला रहा हूं। बच्चों से कहता हूं कि मैंने अम्मी की बात पर ध्यान नहीं दिया। आप तो ध्यान दो। अभी तक वे मेरी बात मान रहे हैं। अपनी मातृभाषा और स्टेट की भाषा समझ में आनी चाहिए। हर भाषा को मूल लिपि में पढ़ें तो मजा आता है। मैं आज भी अपने संवाद हिंदी में मंगवाता हूं। अगर वह रोमन में लिखा होता है तो उसे हिंदी में लिख लेता हूं। पियानो सीख रहा हूं। बच्चों के साथ थोड़ा-बहुत बजा लेता हूं। अम्मी से मुझे कुकिंग सीखनी है। सिंगिंग भी सीखना है।
[आप सुर में हैं क्या?]
मैं सुर में नहीं हूं, लेकिन इतना बुरा भी नहीं हूं। बीच में कहीं हूं, सिंगर के लेवल का नहीं हूं।
[पीपली लाइव का एक्सपीरिएंस कैसा रहा?]
बहुत उम्दा। अनुषा ने बहुत अच्छी स्क्रिप्ट लिखी है। उनकी रायटिंग में लेयर्ड अंदाज है। फिल्म के अंत में कुछ चीजें महसूस होती हैं। कैरेक्टर्स बहुत अच्छे लिखे हैं। आम तौर पर लेखक अलग-अलग किरदारों को अपने रंग में ढाल देते हैं, लेकिन अच्छे लेखक में काबिलियत होती है कि वह अलग-अलग कैरेक्टर में अलग-अलग रंग चढ़ाता है। उनके बोलने के ढंग अलग होते हैं। इस फिल्म का फ‌र्स्टकट देख कर मैं खुश हुआ। खास बात यह है कि अनुषा न तो फिल्म स्कूल गई है और न किसी को असिस्ट किया है। अभी तक जर्नलिस्ट थी।
[जिस फिल्म में आप स्वयं अभिनय नहीं कर रहे हैं, उसके प्रमोशन के लिए कोई अलग स्ट्रैटजी और इनवाल्वमेंट रहती है क्या?]
पीपली लाइव के रेफरेंस में बात करें तो इसमें कोई जाना-पहचाना स्टार नहीं है। जब आर्टिस्ट और डायरेक्टर नए होते हैं तो मार्केटिंग और अवेयरनेस में थोड़ी दिक्कत जरूर होती है। मैं निर्माता के तौर पर पूरी तरह इन्वॉल्व हूं तो उसका असर होता है। मेरे होने से लोग तवज्जो देते हैं। फिल्म काफी फनी और हार्टब्रेकिंग है। फिल्म के ह्यूमर के बारे में अभी लोगों को पता नहीं है। हमलोग फिल्म के मैटेरियल और कैरेक्टर को ही प्रोमोज में इस्तेमाल कर रहे हैं।
[खुद होने पर अपना कॅरिअर भी दांव पर रहता है। क्या औरों की फिल्म के प्रति भी वही लगाव रहता है?]
पीपली लाइव मेरी उतनी ही फिल्म है, जितनी 3 इडियट या तारे जमीन पर थी। काम करने का फाउंडेशन एक ही रहता है। जिस तरह मैंने 3 इडियट चुनी, वैसे ही मैंने पीपली लाइव चुनी। मेरी क्रिएटिव इंस्टिक्ट वही है। इमोशनल लगाव उतना ही है। फर्क यही है कि मेरा कंट्रीब्यूशन एक्टर के तौर पर न होकर प्रोड्यूसर के तौर पर है। यह आमिर खान प्रोडक्शन की फिल्म है। अपने नाम की वजह से जिम्मेदारी ज्यादा हो जाती है।
[शायद इस साल किसी फिल्म में अभिनय नहीं करने का फैसला भी आप को समय दे रहा है कि आप अपने प्रोडक्शन की फिल्मों पर पूरा ध्यान दे सके?]
तीनों मेरी ही फिल्में हैं। 3 इडियट पूरी होने के बाद मैंने पीपली लाइव पर ध्यान दिया। इसके बाद धोबी घाट और फिर देहली बेली होगी। मैं एक समय में एक ही काम कर पाता हूं। अगर मैं ट्रेडिशनल प्रोडयूसर होता तो तीन और फिल्में बनाता। ऐसी फिल्में तो कतई नहीं बनाता। मैं प्रॉफिट के लिए फिल्में नहीं बनाता। लगान से लेकर अभी तक रिस्क लेता रहा हूं।
[अभी जो दर्शकों का बंटवारा शहरों-देहातों, मल्टीप्लेक्स और सिंगल थिएटर में हुआ है, उसे हिंदी फिल्मों के विकास के लिए आप कितना उचित मानते हैं?]
यह अच्छा नहीं है। हमारी फिल्म इसी के बारे में है। शहर और देहात के इस बंटवारे पर ही है पीपली लाइव। जो सुविधाओं में हैं, वे गांव पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। गांव में अनेक दिक्कतें हैं। वहां बुनियादी सुविधाएं तक नहीं हैं। सेहत, शिक्षा, पानी, हर तरह की मुश्किलें हैं।
[पिछले दिनों मैं एक सेमिनार में गया था। वहां बहस चली कि हिंदी फिल्मों के नायक दलित और मुसलमान नहीं होते। लगान का भुवन गांव का था, लेकिन वह अलग जमीन का था। इस संबंध में क्या कहेंगे?]
(सोचते हुए) राजा हिंदुस्तानी के राजा के बारे में क्या कहेंगे। उसके मां-बाप तक का पता नहीं है। उसकी जाति का क्या है? वह टैक्सी ड्राइवर है। रंगीला का मुन्ना टपोरी है। सड़कछाप है। मुझे ऐसा नहीं लगता कि यह ट्रेंड पहले था, अब नही है। दरअसल, मैं ऐसी चीजों के बारे में सोचता भी नहीं। पीपली लाइव का हीरो नत्था किसान है। उसकी जाति की मुझे जानकारी नहीं है।
[पीपली लाइव को फेस्टिवल सर्किट में ले जाने की कोई खास वजह है क्या?]
व‌र्ल्ड सिनेमा के दर्शकों की तसल्ली बहुत मदद करती है। सनडांस में चुना जाना, फिर बर्लिन जाना ़ ़ ़ उसके बाद कई फेस्टिवल से होती हुई यह फिल्म मेलबर्न पहुंची। फेस्टिवल जाने का मकसद था कि हम हिंदुस्तानी दर्शकों के बाहर भी पहुंच सकें। नए दर्शकों की तलाश है।
[कहते हैं कि आमिर का बिजनेस सेंस जबरदस्त है। वे अपने आडिएंस को समझते हैं, इसलिए फेल नहीं होते ़ ़ ़]
कोई ऊपर वाला है, जो मेरे बारे में सोच रहा है। एक इंग्लिश फिल्म है न समबडी आउट देअर लव्स मी ़ ़ ़ आप मेरा कॅरिअर देखें तो मैंने सारी चीजें वही कीं, जिसके लिए लोगों ने मना किया, फिर भी मुझे कामयाबी मिली। कभी-कभी अकेले में सोचता हूं कि ऐसा हुआ कैसे? आप देखें कि 22 साल के कॅरिअर में मैंने 16 सालों तक फिल्म मीडिया के साथ बात ही नहीं की। मैं स्वयं ही उनसे कटा हुआ था। बाद में मेनस्ट्रीम जर्नलिस्ट बातें करने लगे तो मैं भी मुखर हुआ। मैंने कभी फायदेमंद कदम नहीं उठाया। मैंने उसी फिल्म और काम के लिए कदम उठाया, जिसे करने में मुझे मजा आयेगा। अब चूंकि कामयाब हो गया इसलिए ऐसा नहीं कह सकता कि यही एक तरीका है काम करने का। हर आदमी की अपनी प्रायरिटी होती है।
[अपने अनुभव से दूसरों को कुछ बताने-समझाने का मन करता है कि नहीं?]
नजदीकी दोस्त मेरी राय लेते हैं तो जो मुझे सही लगता है, वही बताता हूं। जहाँ तक अपनी बात है, मैं दूसरों की आलोचना सुनता हूं। फिल्मों की टेस्ट स्क्रीनिंग करता हूं। उसमें गैरफिल्मी लोगों को बुलाते हैं। अपनी गलतियों को सुधारता हूं। यह लर्निग प्रोसेस है। मुझे लगता है कि 22 सालों में मेरे अंदर इसी वजह से ग्रोथ आई है। मेरे दर्शक मुझे सिखाते हैं। मैं अपनी फिल्में उनके साथ देखता हूं। उनके वाइब्रेशन से पता चल जाता है फिल्म का इंपैक्ट!






Comments

अच्छे सवाल,लेकिन कई जबाब आमिर ने वही दिए जो कि आप की अदालत में रजत शर्मा को दिए थे.
Rangnath Singh said…
व्यावसायिक हिन्दी सिनेमा में आमिर सबसे अलग हैं। मुझे पसंद हैं।
सवाल बहुत जरुरी और अच्छे, लेकिन जवाब लगभग फ़िल्मी ही आए हैं...
Cinemanthan said…
अजय जी,
अच्छा साक्षात्कार।
आमिर एक अलग व्यक्तित्व हो गये हैं आज के दौर के हिन्दी सिनेमा में। उन्होने अपनी सोच खुल कर व्यक्त्त की है।
चौकन्ने हैं, उनका ऑबसर्वेशन नजर आता है उनके उत्तरों में।
Anonymous said…
I congratulate, your idea is useful

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