क्राइम कलाकार है तीस मीर खां-फराह खान


-अजय ब्रह्मात्मज

इस मुलाकात के दिन जुहू चौपाटी पर ‘तीस मार खां’ का लाइव शो था। सुबह से ही फराह खान शो की तैयारियों की व्यस्तता में भूल गईं कि उन्हें एक इंटरव्यू भी देना है। बहरहाल याद दिलाने पर वह वापस घर लौटीं और अगले गंतव्य की यात्रा में गाड़ी में यह बातचीत की। फिल्म की रिलीज के पहले की आपाधापी में शिकायत की गुंजाइश नहीं थी। लिहाजा सीधी बातचीत ...
- बीस दिन और बचे हैं। कैसी तैयारी या घबराहट है?
0 आज से पेट में गुदगुदी महसूस होने लगी है। कल तक एक्साइटमेंट 70 परसेंट और घबराहट 30 परसेंट थी। आज घबराहट 40 परसेंट हो गई है। मुझे लगता है कि रिलीज होते-होते मैं अपने सारे नाखून कुतर डालूंगी। हमने एक बड़ा कदम उठाया है। यह हमारी कंपनी की पहली फिल्म है। ऐसे में घबराहट तो बढ़ती ही है। व्यस्तता भी बढ़ गई है। आप देख रहे हो कि अपने तीनों बच्चों को लेकर मैं डबिंग चेक करने जा रही हूं। सुबह स्पेशल इफेक्ट चेक किया। फिर मछली लेकर आई। अभी बच्चों को उनकी दादी के पास छोडूंगी। डबिंग चेक करूंगी। फिर लौटते समय बच्चों को साथ घर ले जाऊंगी। उनके साथ दो घंटे बिताने के बाद जुहू चौपाटी के लाइव शो के लिए निकलूंगी। इस व्यस्तता में भूल गई कि आपसे बातचीत भी करनी थी।
- आप एक व्यस्त मां हैं। अपने बच्चों की देखभाल कैसे करती हैं?
0 ‘तीस मार खां’ मेरी नई संतान है। अभी उसी को ज्यादा समय देना पड़ता है। किसी बच्चे की तरह ही रिलीज के पहले फिल्म को प्यार, देखभाल और सेक्यूरिटी देनी पड़ती है। अभी क्रिएटिव संतान और बायलॉजिकल संतानों के बीच संतुलन बिठाना पड़ रहा है।
- आप की पिछली दोनों फिल्म सफल रहीं। कोई भी निर्माता खुशी-खुशी आपकी नई फिल्म का निर्माता बन जाता। फिर अपनी प्रोडक्शन कंपनी की बात क्यों सोची?
0 उसकी तीन वजहें हैं ... जार, दीवा और अन्या। तीनों यहां गाड़ी में आपके आस-पास हैं। इन्हीं तीनों को ध्यान में रख कर अपनी कंपनी का नाम भी हमने थ्रीज कंपनी रखा है। मैं इसे करिअर प्रोमोशन के तौर पर देखती हूं। सफल डायरेक्टर के लिए जरूरी है तो वह खुद ही प्रोड्यूसर बने। प्रोड्यूसर बनने के बाद फिल्म उसकी प्रोपर्टी हो जाती है। हमारे बाद उन पर बच्चों का अधिकार होगा। निर्माता बनना एक प्रकार से अचल संपत्ति खरीदने के समान है। शिरीष और मैंने सोचा कि फिल्ममेकिंग का सारा काम हमलोग खुद ही करते हैं तो किसी और के लिए क्यों काम करें? इस फिल्म के लिए मैंने जितना काम किया है। उससे कुछ ज्यादा ही पहली दोनों फिल्मों के लिए किया था।
- अपने होम प्रोडक्शन की फिल्म में फराह खान कितनी डिमांडिंग रहती हैं?
0 फिल्म में मैं कोई समझौता नहीं करती। सभी जानते हैं कि मैं बहुत ही इकानॉमिकल टेक्नीशियन हूं। फालतू पैसे खर्च नहीं करवाती हूं। शिरीष बहुत उदार निर्माता हैं। हमने इस फिल्म का एक निश्चित बजट रखा था। फिल्म उसी बजट में बन गई है। किसी दूसरे डायरेक्टर को हायर करने पर शिरीष को आटे-दाल का भाव पता चलेगा। मैं तो घर की डायरेक्टर हूं। वैसे शिरीष ने मुझे ट्रेन और हवाई जहाज भी बना कर दिए। भले ही उसके लिए एक करोड़ से ज्यादा खर्च हो गए। मैं अपनी शूटिंग में किसी प्रकार की रूकावट नहीं चाहती थी। इसलिए खुद ही ट्रेन और हवाई जहाज बनवा लिए। फिल्म में ‘तीस मार खां’ उड़ते हुए हवाई जहाज को बचाता है।
- फिल्म वास्तव में क्या है?
0 बहुत ही इंटरेस्टिंग प्लाट है। यह चालाक तरीके से लिखी गई है। एंटरटेनिंग है। फिल्म में कोई सोशल मैसेज नहीं है। सोशल मैसेज के लिए आप एसएमएस का उपयोग कीजिए या किताब पढि़ए। मेरा मानना है कि फिल्म का प्राथमिक उद्देश्य मनोरंजन करना होता है। मैं तो यही कहूंगी कि फिल्म देखने आओ, एंज्वाय करो और जाओ। कहते हैं ‘तीस मार खां’ बादशाह अकबर के जमाने में हुआ करता था। वास्तव में उसने तीस मक्खी मारे थे और डींग मारी थी कि उसने तीस शेर मारे हैं। उसी की तरह हमारी फिल्म का हीरो भी फेंकूचंद है, लेकिन दुनिया का सबसे बड़ा क्राइम कलाकार है। प्रोमो में आपने सुना होगा कि वह आधा रॉबिनहुड हैं। मुसीबत में पडऩे पर वह हीरोगिरी नहीं करता। वहां से उलटे पांव भाग खड़ा होता है।
- और शीला क्या कर रही हैं?
0 शीला उसकी गर्लफ्रेंड है। वह एक्ट्रेस हैं। उसको कट्रीना कैफ बनना है। उसको ग्लैमरस हीरोइन बनना है।
- माना जा रहा है कि क्रिसमस पर आई फिल्में अवश्य हिट होती हैं?
0 अच्छा हो गया। पहले केवल दीवाली पर रिलीज फिल्में हिट होती थीं। अब क्रिसमस और ईद भी शामिल हो गए हैं। वास्तव में फेस्टिवल के समय सभी मस्ती के मूड में रहते हैं। उस समय कोई एंटरटेनिंग फिल्म रहे तो परिवार के साथ देखने निकलते हैं। उन दिनों बच्चों की छुट्टी रहती है। मुझे पूरा यकीन है कि ‘तीस मार खां’ बच्चों को खूब पसंद आएगी। मेरी फिल्म का विलेन निराला है। वे हिप से जुड़े ट्विन हैं। रोडिज के रघु और राजीव को हमने लिया है। ‘शीला की जवानी’ अभी से हिट हो चुकी है।
-आप के पति शिरीष कुंदर ने कैसा सहयोग दिया?
0 इस फिल्म में शिरीष को आठ क्रेडिट मिल रहे हैं। सबसे पहले तो उन्होंने इतनी अच्छी स्क्रिप्ट लिखी और फिर फिल्म बढऩे के साथ टैलेंट दिखते गए। मैं उनके मल्टी टैलेंट के बारें में समझ गई थी। तभी तो शादी की।
- इन दिनों फिल्म की पैकेजिंग और मार्केटिंग पर बहुत ध्यान दिया जा रहा है। जबकि कोई भी फिल्म कंटेंट और क्वालिटी की वजह से ही दर्शकों के बीच लोकप्रिय होती हैं। आप क्या कहेंगी?
0 निश्चित ही कंटेंट और क्वालिटी ही काम करती है। फिर भी अभी पब्लिसिटी का जमाना है। जैसे आप सुने हुए ब्रांड का ही टूथपेस्ट खरीदते हैं। वैसे ही आपकी बहुत अच्छी फिल्म के बारे में सभी को मालूम होना चाहिए। मैं पब्लिसिटी पर पूरा ध्यान देती हूं। यही वजह है कि तमाम व्यस्तताओं के बीच मीडिया और प्रोमोशन के लिए समय निकालती हूं। हमने चलती ट्रेन में म्यूजिक रिलीज किया। अभी तक उसकी चर्चा ठंडी नहीं हुई है। आज हम लाइव शो कर रहे हैं। जुहू चौपाटी आने वाले लोग फिल्म के कलाकारों को आमने-सामने देख सकेंगे।

Comments

amitesh said…
फ़राह खान उन निर्देशकों का प्रतिनिधित्व करती हैं जो यह मान कर चलते हैन कि दर्शक बेवकुफ़ है. आइटम सांग, स्टार और मार्केटिंग के कंधे पर सवार ये फ़िल्में दर्शकों का मनोरन्जन करती ही हैं लेकिन सस्ता.
Manoj Mairta said…
bahut achha likhate hai sir!!!!!!!!!
फराह उन निर्देशकों की अवांछित कतार को और लंबी करती है जिनका फिल्मों का बेसिक फंडा ही क्लियर ही नहीं है, जो फिल्मों को महज व्यापार मानते हैं और पब्लिश्टि की डुगडुगी से दर्शकों को हांक कर सिनेमा हॉल तक ले आने में ही अपने को मदारी, माफ कीजिये सफल निर्देशक मान लेते हैं। उस पर तुर्रा यह ·िक फिल्म को अपनी ‘क्रिएटिव संतान’ कहती है। काश अपने ‘बायलोजिकल संतान’ के प्रति उनका वह रवैया न हो, जो उन्होंने अपनी ‘क्रिएटिव संतान’ के लिए जाहिर ·िकया है। फराह की इस फिल्म के सफल होने से व्यापारियों के खुद को कलाकार मानने का मुगालता और चलन बढ़ेगा। उन लोगों की लड़ाई कमजोर होगी जो सिनेमा को एक बेहतर कला-माध्यम बनाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। और सबसे बड़ी बात तो यह ·िक यह खुद सिनेमा के हित में नहीं होगा।

पुनश्च : फराह के पति का फिल्म का लेखक होना, वैसा ही लगता है जैसे मुक्ता घई का सुभाष घई की फिल्मों की कहानी, पटकथा और संवाद की लेखिका होना। ·िकस बेचारे लेखक की कहानी या लेखन पर चंद पैसों में डाका डाला है शिरीष जी।
फराह के फिल्मों के प्रति दृष्टिकोण से ही पटा चल जाता है कि 'कला' और 'कलाकार' की परिभाषा उन्हें कितनी मालूम हैं.. उन्हें इनकी परिभाषाएं जानने के बाद ही किसी को क्राइम कलाकार की उपाधि देनी चाहिए....

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