मनोरंजन का व्यसन

मनोरंजन का व्यसन-अजय ब्रह्मात्‍मज

पहले वांटेड फिर दबंग और अब रेडी.., इन तीन फिल्मों की कामयाबी ने सलमान खान को अजीब आत्मविश्वास से भर दिया है, जो हिंदी सिनेमा के लिए शुभ नहीं कहा जा सकता। सुना है कि सलमान ने दक्षिण की छह हिट फिल्मों के अधिकार खरीद लिए हैं। वे बगैर जोखिम और शर्म के दक्षिण की हिट फिल्मों के रीमेक पर रीमेक बनाने के लिए तैयार हैं। उन्हें अपनी आलोचना और समीक्षकों की राय की परवाह नहीं है। वे बातचीत में किसी और के सवाल करने से पहले ही सवाल दाग देते हैं कि दर्शक फिल्में देख रहे हैं। वे हिट भी हो रही हैं तो फिर क्यों मैं कुछ और सोचूं या करूं? ट्रेंड सा बनता जा रहा है। हर स्टार इस पॉपुलैरिटी की चाहत में मसाला फिल्मों की तरफ बढ़ या झुक रहा है। मनोरंजन का यह व्यसन हिंदी फिल्मों को गर्त में ले जा रहा है। कोई समझने, मानने और सोचने को तैयार नहीं है कि इन फिल्मों की क्वालिटी खराब है। सिनेमाघरों से एक बार निकलने के बाद इन फिल्मों को शायद ही दर्शक मिल पाएं। भविष्य के दर्शकों की चिंता कौन करे? अभी तो सारा जोर इमिडिएट कमाई पर है। रिलीज होने के तीन दिनों के अंदर फिल्म ने कितना व्यवसाय किया? सोमवार के बाद फिल्म गिर जाए तो भी चलेगा।

यहां सिर्फ सलमान खान को ही दोषी क्यों मानें। सभी तो यही कर रहे हैं। सीरियस और अर्थपूर्ण फिल्मों के लिए विख्यात आमिर खान की फना और गजिनी भी तो कमोबेश ऐसी ही फिल्में हैं। इस साल की पहली हिट यमला पगला दीवाना को क्या कहेंगे? अनुपमा, सत्यकाम और चुपके चुपके जैसी फिल्मों में अपनी प्रतिभा दिखा चुके धर्मेन्द्र को प्रहसन में मशगूल होते देख कर कोफ्त होती है। अमिताभ बच्चन की बुड्ढा होगा तेरा बाप के प्रोमो ही बता रहे हैं कि हम एंग्री यंग मैन के ओल्ड एज की मसाला फिल्म देखने जा रहे हैं। इस फिल्म के निर्देशक पुरी जगन्नाथ हैं, जिन्होंने दक्षिण में पोखिरी बनाई थी। पोखिरी की रीमेक वांटेड हम देख चुके हैं। अजय देवगन की सिंघम नए ट्रेंड में बहने का एक और नमूना है। ऐसा लग रहा है कि देर-सवेर सभी लोकप्रियता की इस गंगा में डुबकी लगाएंगे।

पिछले सप्ताह एक ही दिन अमिताभ बच्चन और धर्मेन्द्र दोनों से मिलने का मौका मिला। मनोरंजन के व्यसन के इस नए ट्रेंड के बारे में पूछने पर दोनों के पास ठोस विरोध या जवाब नहीं था। अमिताभ बच्चन हमेशा से मानते रहे हैं कि हिंदी सिनेमा का दर्शक पलायनवादी है। उसे एस्केपिस्ट सिनेमा ही अच्छा लगता है। फिल्मों के एक्सपेरिमेंट बौद्धिक दर्शकों को भाते हैं, लेकिन आम दर्शक का मन तो सपनीली फिल्मों में ही रमता है। वे स्वीकार करते हैं कि इधर की मसाला फिल्मों में अलग किस्म की एकरूपता दिख रही है, फिर भी वे इसे ट्रेंड मानने के लिए तैयार नहीं हैं। दूसरी तरफ धर्मेन्द्र याद करते हैं कि मैं ऋषिकेश मुखर्जी सरीखे डायरेक्टर को मिस करता हूं। क्या करूं, अभी की जरूरत और दर्शकों की मांग के हिसाब से चलना पड़ता है। अगर आप बदले समय के साथ नहीं चलेंगे तो छूट जाएंगे। अफसोस है कि दिग्गज, दमदार और अनुभवी अभिनेता भी बाजार की मांग के आगे घुटने टेक चुके हैं।

मुझे तो यह ट्रेंड बहुत डरावना लग रहा है। ठीक है कि इसे दर्शक मिल रहे हैं। फिल्में व्यवसाय कर रही हैं और फिल्म इंडस्ट्री आर्थिक संकट से उबरती नजर आ रही है, लेकिन इस उत्साह में हम कलात्मक संकट में फंसते जा रहे हैं। कामयाब फिल्मों के साथ निर्माता, निर्देशक और कलाकारों में मिथ्याभिमान बढ़ रहा है। उन्हें लग रहा है कि कामयाबी का फौरी फार्मूला मिल गया है। इस फार्मूले से दर्शकों के ऊबने से पहले छोटे-बड़े सभी सफलता का स्वाद चख लेना चाहते हैं।

Comments

vivek sahai said…
Sir...Fast food ke zamaney mein koi dum deke biryaani banne ke baad khaney ka intazaar kyun kare.Himesh Reshmiyan ne bhi yehi trend apnaya tha lekin aaj woh kahin nahi dikhtey hain although he has composed some of the greatest music in bollywood....wohi Salman sir ka bhi hoga....? Kyunki naya-2 badlaav sabhi pasand karte hain lekin waqt ke saath usey bhool bhi jaatey hain.
sonal said…
अजय जी ,
आज समाज के जिस तरह की निराशावाद फैला है उसमें दर्शक त्रस्त हो चुका है थियटर के अन्दर बिताये अपने ३ घंटो में वो सब परेशानियां भुलाना चाहता है शायद इसी लिए इस तरह का सिनेमा पसंद किया जा रहा है पर ये एक दौर है जो बीत जाएगा अगर देखा जाए आज नए कलाकारों और निर्देशकों की फिल्मे जिस तरह पसंद की जा रही है और व्यावसायिक रूप से सफल हो रही है उसको देखते हुए, स्थापित कलाकारों ने दर्शको को पुराने और नए का तडका लगाकर फिल्में बनाना शुरू किया है ..."यमला पगला दीवाना " हो या "बुड्ढा होगा तेरा बाप ".
फिल्मो की लागत इतनी बढ़ गई है की नई कहानियों को लेकर आमिर ,सलमान कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहते ...इसी लिए दक्षिण का रुख कर रहे है

Popular posts from this blog

तो शुरू करें

फिल्म समीक्षा: 3 इडियट

सिनेमालोक : साहित्य से परहेज है हिंदी फिल्मों को