संग-संग : चंद्रप्रकाश द्विवेदी-मंदिरा द्विवेदी

साथ-साथ रहने की एक जिद है दांपत्य: चंद्रप्रकाश द्विवेदी-मंदिरा-अजय ब्रह्मात्‍मज

दूरदर्शन के धारावाहिक चाणक्य से अपनी खास पहचान बना चुके डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने अमृता प्रीतम के उपन्यास पिंजर की भावभूमि पर फिल्म बनाई। उपनिषदों पर धारावाहिक उपनिषद गाथा उनका महत्वपूर्ण कार्य है। अभी वे काशीनाथ सिंह के उपन्यास काशी का अस्सी पर मोहल्ला अस्सी नाम की फिल्म के पोस्ट प्रोडक्शन में व्यस्त हैं। मंदिरा उनकी सहयोगी व पत्नी हैं। 13 साल पहले वे परिणय सूत्र में बंधे। विवाह के प्रति थोडा अलग दृष्टिकोण है इस दंपती का।

सहमति-असहमति

मंदिरा : मैं चाणक्य में इनकी असिस्टेंट थी। काम के प्रति इनका समर्पण मुझे अच्छा लगा। इतिहास में मेरी रुचि थी, लिहाजा इनकी सहायक बन गई।

डॉ. द्विवेदी : मैंने चाणक्य के एडिटर राजीव खंडेलवाल से एक महिला असिस्टेंट खोजने को कहा था और इस तरह मंदिरा यूनिट में शामिल हुई। फिर मेरी जिंदगी में भी..। मंदिरा फिल्मी पृष्ठभूमि से आती हैं। इनके परिवार में लडकियों को आजादी रही है, जबकि मेरा परिवार गंवई माहौल वाला व घोर परंपरावादी है, जहां प्रेम विवाह की कल्पना मुश्किल थी। पहली बार मैंने ही प्रेम विवाह किया, जिसके लिए भाभियां आज भी ताना देती हैं कि मैंने अपने भतीजों के लिए भी प्रेम विवाह की राह खोल दी।

मंदिरा : विवाह से पहले मुझे आशंका भी थी कि कैसे एडजस्ट करूंगी। लेकिन इन्होंने खुद को बहुत बदला है। ये कैसे भी रहें, मुझ पर कभी कोई पाबंदी नहीं रही। मुझे बाहर घूमना अच्छा लगता है, इन्हें नहीं लगता। इसके बावजूद इन्होंने मुझे रोका नहीं। मुझे पूरा स्पेस मिला। इस बात की मैं तारीफकरना चाहूंगी।

डॉ. द्विवेदी : घर-परिवार में शादी को लेकर विरोध था। पिता नहीं थे और मां बीमार रहती थीं। जैसे-तैसे मां ने खुद को समझाया कि जहां चाहूं-विवाह कर लूं। उन्हें भय भी था कि कहीं अविवाहित न रह जाऊं। मेरे परिवार में ऐसे लोग भी रहे हैं, जिन्होंने शादी नहीं की। वैराग्य भाव मेरा भी रहा है। मेरे एक भाई तो कुछ समय साधुओं के बीच बिता कर भी आए थे।

जरूरी है शादी

मंदिरा : अगर ये लिव-इन के लिए कहते तो शायद मैं तैयार न होती। जबकि मैं स्वतंत्र विचारों वाली हूं और ये परंपरावादी। लेकिन कुछ मामलों में मैं इनसे ज्यादा परंपरावादी हूं। कल को यदि मेरी बेटी बडी हो और लिव-इन में रहना चाहे तो मैं उसे नहीं रोकूंगी, लेकिन खुद अपने लिए मैं ऐसा नहीं कर सकती थी।

डॉ. द्विवेदी : मेरे लिए परस्पर विश्वास सबसे जरूरी है। मैंने पहले ही कहा कि दो व्यक्ति विपरीत विचारधारा के होकर भी शादी कर सकते हैं। मुझे सिनेमा में ही काम करना था। चाणक्य के दिनों में मैंने देखा था कि मंदिरा एकाग्रता के साथ काम करती हैं। इन्हें मैंने लाइफ पार्टनर और वर्कि ग पार्टनर के तौर पर देखा, महसूस किया कि जिम्मेदारियां इनसे बांट सकता हूं। चाणक्य में मेरे साथ कुछ सीनियर लोग भी थे, लेकिन मंदिरा ने आगे बढकर नेतृत्व लिया। यह सर्वोत्तम वर्कर रही हैं।

मंदिरा : मैं शुरू से चाणक्य से जुड गई थी। धीरे-धीरे मेरी समझदारी बढी। मेरी जिंदगी में इनके सिवा कोई आया भी नहीं।

डॉ. द्विवेदी : कोई आए तो बताना। हट जाऊंगा..

मंदिरा : चुप रहो..

डॉ. द्विवेदी : चाणक्य की वजह से लोग मुझे परंपरावादी व सनातनपंथी समझते हैं। मुझे तो लगता है कि लोगों को अपने अतीत की समझ ही नहीं है। मैं लिव-इन में भी विश्वास के साथ रहता। बाद में तो परंपराओं को तोडने लगा था। मेरी शादी में मेरे परिवार का कोई नहीं था। भाभी मंदिरा से मिलीं। गले में मंगलसूत्र न दिखा तो बनवा दिया। मैंने इनसे कहा कि इसे पहनें या न पहनें, यह इनकी इच्छा है। मैं इसे जरूरी नहीं मानता।

मंदिरा : मैं सुहाग चिह्न धारण करने में यकीन नहीं करती। मैं आमतौर पर सिंदूर नहीं लगाती।

रोमैंस और शेयरिंग

मंदिरा : ये रोमैंटिक नहीं हैं। एक बार झगडा हुआ तो इन्होंने मेरे लिए कोई गाना गाया था। रूमानियत की बातें हमारी जिंदगी में कम ही हैं। हम डेट पर नहीं गए। सच कहूं तो मेरे लिए यह दो आत्माओं का मिलन है, हालांकि सुनने में किसी को यह बात बडी लग सकती है।

डॉ. द्विवेदी : मंदिरा जानती हैं कि मुझे उनसे प्रेम है। प्रेम में दिखावा मुझे पसंद नहीं। कैंडल लाइट डिनर मुझे व्यर्थ समय गंवाना लगता है।

मंदिरा : शुरू में बुरा लगा था। बाद में इनके स्वभाव को समझ गई तो दिक्कत नहीं हुई। शादी के बाद हर आम पत्नी की तरह मैंने भी सोचा कि इन्हें खाना बनाकर खिलाऊं, लेकिन पता चला कि मेरे पति तो खिचडी खाकर ही खुश हैं तो लगा ज्यादा तामझाम क्यों करूं।

डॉ. द्विवेदी : इन्हें विदेश घूमने का शौेक है। बेटी के साथ जाती हैं। मैं रोज मंदिर जाता हूं, ये कार में बैठी रहती हैं। यह निजी भावना और आस्था है। हमने एक-दूसरे पर कुछ नहीं थोपा। मैं शाकाहारी हूं, ये मांसाहारी। हम रेस्त्रां जाते हैं तो अपनी-अपनी पसंद का खाना खाते हैं।

मंदिरा : कई पति-पत्नी एक-दूसरे से सब कुछ शेयर करने का नाटक करते हैं, लेकिन पीछे एक-दूसरे को उतना ही नापसंद भी करते हैं। हमारे स्वाद-स्वभाव अलग हैं, लेकिन हम एक-दूसरे को खुश रखते हैं।

सहयोग और मनमुटाव

डॉ. द्विवेदी : हम काम साथ करते हैं। घर, दफ्तर और सेट पर हमेशा साथ रहते हैं।

मंदिरा : इस कारण झुंझलाहट भी होती है। घर की समस्या सेट तक और सेट की समस्या घर तक पहुंच जाती है। वैसे सेट पर प्रोफेशनल्स जैसे ही रहते हैं। पिंजर के समय तो संदली सिन्हा को लगा कि मैं असिस्टेंट हूं तो इनके साथ रूम क्यों शेयर कर रही हूं। उन्हें काफी दिनों तक पता नहीं था कि हम पति-पत्नी हैं।

डॉ. द्विवेदी : आमतौर पर पति-पत्नी साथ काम नहीं करते। फिल्मों में तो और भी कम, यही हमारी तोकत भी है। जो बातें किसी के सामने इन्हें नहीं बता पाता, घर लौटकर बताता हूं। इसके परिणाम अलग होते हैं।

मंदिरा : हम टीम के तौर पर काम करते हैं। मैं इनके स्वभाव व शैली से परिचित हूं। लिहाजा इनके साथ काम करना आसान रहता है।

डॉ. द्विवेदी : मेरी टीम के लोग मंदिरा का सम्मान मेरी पत्नी होने के चलते नहीं करते। उन्हें पता है कि मंदिरा प्रोफेशनल हैं और काम जानती हैं। मैं क्रिएटिव मामले में थोडा अलग हूं। मंदिरा टेक्निकल ज्यादा हैं। मैंने हमेशा खयाल रखा है कि जब ये डायरेक्ट करें तो मैं सेट से दूर रहूं। लोगों को ऐसा न लगे कि मैं कुछ कर रहा हूं। आमतौर पर माना जाता है कि पति ही सब करता है। शुरू में इससे मंदिरा को तकलीफ होती थी, क्योंकि मेरी शूटिंग में मंदिरा ही सारा काम करती हैं। मैंने इन्हें समझाया कि मैं बरगद हो गया हूं। पीछे खडे रहने पर भी लोग मानेंगे कि मैं ही डायरेक्ट कर रहा हूं।

मंदिरा : आइडिया इनका होता है। मैं उसे एक्जीक्यूट करती हूं। मेरी लडाई इनसे यही रहती है कि जो लिखा है, उसे अच्छी तरह शूट करें। मैंने सब कुछ इन्हीं से सीखा है।

डॉ. द्विवेदी : मंदिरा को मालूम है कि मैं श्रेष्ठ काम करना चाहता हूं। पैसे से श्रेष्ठता नहीं आती। हां श्रेष्ठ काम से पैसे आ सकते हैं।

मंदिरा : मैं लिख नहीं सकती, लेकिन इनके लिखे को शूट करना मैंने सीख लिया है।

डॉ. द्विवेदी : मेरे दोस्त मानते हैं कि मैं कंप्लीट पैकेज हूं। लिखता हूं तो निर्देशक और अभिनेता के साथ सेट डिजाइनर व कॉस्ट्यूम डिजाइनर के एंगल से भी सोचता हूं। मेरे संवाद लोगों को पसंद आते हैं। मेरी दिक्ेकत यही है कि सब अपना शत-प्रतिशत नहीं देते। उनमें कई पैसे-प्रतिष्ठा के लिए काम करते हैं।

मंदिरा : इस बात पर मेरा इनसे झगडा होता है। आज कोई इतनी एकाग्रता से काम नहीं कर सकता और इन्हें लगता है कि सभी लोग इनकी तरह श्रेष्ठता के प्रति समर्पित क्यों नहीं होते।

संबल और देखभाल

डॉ. द्विवेदी : मंदिरा मेरी संबल हैं। घर-पैसा सभी ये संभालती हैं। मैं पैसे के मामले में लापरवाह हूं। मैंने कभी कुछ नहीं संजोया।

मंदिरा : सब कुछ मेरे नाम पर है। मैं चाहूं तो इन्हें बेदखल कर दूं और एक कौडी भी न दूं। ये बहुत लापरवाह हैं। चेक साइन करते समय हमेशा मुझसे पूछते हैं, क्या अकाउंट में पैसे हैं? बेटी के होने के बाद थोडा संभले हैं ये।

डॉ. द्विवेदी : मैंने पैसों से खुद को दूर ही रखा है। कई बार नुकसान भी हुआ। चाणक्य में एक संवाद था, पानी में रहने वाली मछली कब पानी पी लेती है, पता नहीं चलता, वैसे ही मुद्रा विनिमय करने वाला व्यक्ति कब गडबड कर दे, पता नहीं चलेगा। इसलिए पैसों से दूर रहता हूं। वैसे अब लगता है, रचनात्मक व्यक्ति के पास ज्ञान के साथ धन भी होना चाहिए।

मंदिरा : ये तो अपने हेक के पैसे भी नहीं ले पाते। इन्हें लोगों की पहचान नहीं है। पहले सीने से लगाए रहते हैं और फिर धोखा खाते हैं।

डॉ. द्विवेदी : इन्हें लगता है कि लोग मेरा नाजायज फायदा उठाते हैं। कई बार मुझे भी ऐसा ही लगता है, इसलिए ऐसे लोगों को अब मैं तुरंत काट देता हूं।

99 फीसदी मामलों में मेरी ही राय सही रहती है, लेकिन ये नहीं मानते। बाद में इन्हें मानना पडता है।

डॉ. द्विवेदी : मैं संदेह नहीं कर पाता। साथ में काम करने के लिए भरोसा जरूरी है। क्रोध भी आता है तो कोई काम करने लगता हूं। झगडा हो भी तो रात में सोने से पहले सुलझा लेता हूं। मेल करता हूं, फोन करता हूं। इस तरह कुंठा व क्रोध व्यक्त करता हूं। मैं मानता हूं कि मंदिरा से बेहतर लाइफ पार्टनर मुझे नहीं मिल सकती थी। इन्होंने मेरे पागलपन को झेला, मुझे संभाला। हम लडते भी हैं। मैं कहता हूं कि बोरिया-बिस्तरा बांध कर गांव चला जाऊंगा..।

मंदिरा : ये सब तो कहने की बातें हैं। जरा बोरीवली ही जाकर दिखा दो। मैं इनसे कहती हूं कि जाना हो तो बता कर जाना। पहले लगता था कि छोडकर चले जाएंगे, अब तो बेटी से इतना लगाव है इन्हें, यों जा ही नहीं सकते।

दांपत्य क्या है

डॉ. द्विवेदी : जीवन एक लंबी यात्रा है। इस यात्रा पर निकली बैलगाडी के दो बैल हैं पति-पत्नी। विवाह का मतलब है, जीवन भर एक-दूसरे का साथ देना। समय के साथ-साथ इसके प्रति मान्यताएं भी बदलने लगी हैं। मैं मानता हूं कि हर विवाह जिद के कारण ही टिकता है। दूसरे से अधिक खुद पर यह भरोसा होना चाहिए कि मैं यह रिश्ता निभाऊंगा।

मंदिरा : परस्पर समझदारी और पार्टनरशिप है विवाह। दो व्यक्ति ऐसे ही तो साथ नहीं आ जाते। वे एक-दूसरे का खयाल करते हैं, एक-दूसरे के बारे में सोचते हैं और मजोक में कहूं तो वे एक-दूसरे को झेल पाते हैं।

डॉ. द्विवेदी : यह झेल पाना भी तो जिद की वजह से होता है। कोई किसी को क्यों झेलता है? हर दिन रिश्ते टूटने की खबरें हमारे सामने आती हैं। एक-दूसरे का साथ निभाना है, यह दोनों का निर्णय होता है। इस भाव के प्रति सम्मान से प्यार पैदा होता है।

मंदिरा : डॉक्टर साहब तो छोटी-छोटी बातों पर दुखी हो जाते हैं और घर छोडने की बात तक करने लगते हैं। इनके भीतर कहीं एक वैराग्य भाव है। मेरा बस इनसे यही कहना है कि जाएं तो चुपके से न जाएं, मुझे बता कर जाएं। ताकि मुझे यशोधरा की तरह न कहना पडे सखि, वे मुझसे कह कर जाते!

परफेक्ट कोई नहीं है

दांपत्य में यदि अहं नहीं होगा तो निभाना आसान होगा। वैसे परफेक्ट मैरिज जैसी कोई चीज नहीं होती। स्त्री व पुरुष परफेक्ट नहीं हो सकते। शादी एक जिद है। कई बार रिश्ते तोडने का एक बहाना साथ रहने के 99 बहानों पर भारी पडता है। बुरे दिनों में अच्छे दिन याद करो, अच्छे दिनों में बुरे दिनों को न भूलो। शादी के बाद एक नया मैनिफेस्टो बनाना चाहिए। एक-दूसरे की कमजोरियों को बदलने की कोशिश संभलकर करनी चाहिए, क्योंकि दो व्यक्तियों ने साथ रहने का फैसला किया है। मंदिरा ठीक ही कहती हैं कि विवाह करना मुश्किल कर देना चाहिए और तलोक लेना आसान। जबकि हमारे समाज में इसका उल्टा है। विवाह के पहले ही सारी शर्ते लगा देनी चाहिए, ताकि इसके टूटने की बात ही न आए। अलग होना आसान कर देना चाहिए। हमारे साथ की खासियत यह है कि शादी से मेरी निजी पहचान नहीं खोई। मेरे दायरे के भीतर और इंडस्ट्री में सारे लोग मुझे पहचानते हैं। इन्होंने कभी मुझ पर हावी होने की कोशिश नहीं की। मुझे पता है कि इन्हें क्या पसंद है और क्या नापसंद, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि ये मुझे खुश नहीं देखना चाहते। मेरी खुशी के लिए ही ये सब कुछ करते हैं। जब देखती हूं कि छोटी-छोटी बातों पर रिश्ते टूट रहे हैं तो बुरा लगता है। रूठना सही है, लेकिन अलग होना गलत है। झगडा हम भी करते हैं, लेकिन अब तो सॉरी कहने की जरूरत भी नहीं होती। मेरा मानना है कि पति-पत्नी के बीच समर्पण भाव होना चाहिए। संबंधों को संभालना तो आना ही चाहिए। माता-पिता, भाई-बहन, दोस्तों से तो हम अलग नहीं होते, तो फिर पति-पत्नी को भी अलग नहीं होना चाहिए।

Comments

Amit Gupta said…
acha laga ..padh kar..maja aata hain aapka blog padh kar ..thanks!!
Vinod Anupam said…
कहते हैं हर व्यक्ति की सफलता के पीछे एक महिला होती है,अब पता चला डॉ. द्विवेदी की सफलता का राज
जीवन के विभिन्‍न पहलुओं को इस अंदाज में बयां करना दिलचस्‍प बनाता है।

------
जादुई चिकित्‍सा !
इश्‍क के जितने थे कीड़े बिलबिला कर आ गये...।
जीवन के विभिन्‍न पहलुओं को इस अंदाज में बयां करना दिलचस्‍प बनाता है।

------
जादुई चिकित्‍सा !
इश्‍क के जितने थे कीड़े बिलबिला कर आ गये...।
Yayaver said…
achha interview ttha; aap yeh damptya jeevan wale interview bahut achew se lete hain !
बहुत ही बढ़िया साक्षात्कार रहा।

काशी का अस्सी पर बनी फिल्म का मैं भी बेसब्री से इंतजार कर रहा हूँ। देखना चाहता हूँ गया सिंह को जिनके बोद्धिक आतंक के बारे में लिखा गया कि - अपनी अज्ञानता के चलते और लोग छंटे होंगे....गया सिंह छंटे हैं तो अपने बौद्धिक आतंक के चलते :)
Anonymous said…
bhut accha interview hai sir dr jee ka chankaya maine bachpan mein dekha tha tab inhe itna nahi jante the par ab inki kala ka samman karte hain
Dipti said…
Padh kar ahchca laga
वाह... अच्‍छा साक्षात्‍कार...
Neeraj Express said…
मजा आ गया...
Unknown said…
श्री मान जी श्री मती को प्रणाम आगे बढ़ ते रहे

Popular posts from this blog

तो शुरू करें

फिल्म समीक्षा: 3 इडियट

फिल्‍म समीक्षा : आई एम कलाम