फिल्‍म समीक्षा : आर...राजकुमार

-अजय ब्रह्मात्‍मज
प्रभु देवा निर्देशित 'वांटेड' से ऐसी फिल्मों की शुरुआत हुई थी। ढेर सारे हवाई एक्शन, हवा में लहराते कलाकार, टूटी-फूटी चीजों का स्लो मोशन में बिखरना और उड़ना, बदतमीज हीरो, बेजरूरत के नाच-गाने और इन सब में प्रेम का छौंक, प्रेमिका के प्रति नरम दिल नायक ..दक्षिण के प्रभाव में बन रही ऐसी फिल्मों की लोकप्रियता और कमाई ने हिंदी की पॉपुलर फिल्मों का फार्मूला तय कर दिया है। प्रभुदेवा निर्देशित 'आर ..राजकुमार' इसी कड़ी की ताजा फिल्म है।
इस बार शाहिद कपूर को उन्होंने एक्शन हीरो की छवि दी है। मासूम, रोमांटिक और भोले दिखने वाले शाहिद कपूर को खूंटी दाढ़ी देकर रफ-टफ बनाया गया है। एक्शन के साथ डांस का भड़कदार तड़का है। शाहिद कपूर निश्चित ही सिद्ध डांसर हैं। श्यामक डावर के स्कूल के डांसर शाहिद कपूर को प्रभु देवा ने अपनी स्टाइल में मरोड़ दिया है। एक्शन और डांस दोनों में शाहिद कपूर की जी तोड़ मेहनत दिखती है। ऐसी फिल्मों के प्रशंसक दर्शकों को 'आर .. राजकुमार' मनोरंजक लग सकती है, लेकिन लोकप्रियता की संभावना के बावजूद इस फिल्म की सराहना नहीं की जा सकती। फिल्म में थोड़ा प्यार और बहुत ज्यादा मार है।
फिल्म का हीरो अलग-अलग दृश्यों में 'सायलेंट हो जा नहीं तो वॉयलेंट हो जाऊंगा' दोहराता है। नायकसिर्फ बोलता ही नहीं। मौका मिलते ही वह वॉयलेंट भी हो जाता है। नायक के चरित्र को इसी रंग में गढ़ा गया है। उसके चेहरे पर प्रेम से अधिक गुस्से का भाव है। उसकी आंखों से रोमांस नहीं वॉयलेंस टपकता है। लहुलूहान चेहरा लिए दिल में उबलते नायक का लक्ष्य नयिका को हासिल करना है। हिंदी फिल्मों का यह पुराना लक्ष्य रहा है। इस लक्ष्य की पूर्ति में बीच की सारी हरकतें जायज मान ली जाती हैं। इस फिल्म में तो नायक मौत के बंद मुंह से लौट कर आता है। फिल्म के एक दृश्य में 'बुलशिट शायरी' का आनंद लिया गया है। 'आर ..राजकुमार' का मनोरंजन कुछ-कुछ उसी स्तर का है।
वक्त आ गया है कि 'आर .. राजकुमार' को दर्शक परखें और तय करें कि उन्हें भविष्य में कैसी फिल्में देखनी हैं? इसकी सफलता से निर्माता-निर्देशक को फिर एक बहाना मिलेगा कि दर्शक यही चाहते हैं। अफसोस की बात है कि नायक कभी पैसों तो कभी प्रेम के लिए हिंसक तो होता है, लेकिन उसकी इस मनोवृति के पीछे ठोस लॉजिक नहीं है। फिल्म के एक प्रसंग में बताया गया है कि वह भागलपुर से आया है। अचानक भागलपुर शहर से नायक का संबंध बताने का औचित्य समझ में नहीं आता।
प्रचलित खामियों के बावजूद इस फिल्म में शाहिद कपूर और सोनाक्षी दोनों की प्रतिभाओं के नए आयाम दिखते हैं। पर्दे पर दोनों की झिझक खत्म हुई है। उन्होंने अपनी भूमिकाएं जिम्मेदारी से निभाई है। सोनाक्षी सिन्हा के नृत्य में गति और मादकता आ गई है। शाहिद कपूर भी कैमरे के आगे अधिक सहज दिखे हैं। सोनू सूद को अच्छा मौका मिला है। लंबे समय के बाद आशीष विद्यार्थी को पर्दे पर देखना सुखद था, लेकिन घिसी-पिटी भूमिका में उनका लौटना दुखद था। अफसोस कि यह सब एक स्तरहीन फिल्म में हुआ है।
फिल्म के गीत मुख्य रूप से नृत्य के लिए ही रखे गए हैं। इन गीतों पर शाहिद कपूर और सोनाक्षी सिन्हा का झूमना फिल्म के वॉयलेंस की फील को थोड़ा कम करता है। गीतों के शब्द चालू किस्म के हैं। हाल से निकलने पर 'गंदी बात, गंदी बात' कानों में बजता रहता है।
अवधि-146 मिनट
** दो स्‍टार

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