इंस्पायरिंग कहानी है मैरी कॉम की-प्रियंका चोपड़ा


-अजय ब्रह्मात्मज   
प्रियंका चोपड़ा निर्माता संजय लीला भंसाली की ओमंग कुमार निर्देशित ‘मैरी कॉम’ में शीर्षक भूमिका निभा रही हैं। इस भूमिका के लिए उन्हें शारीरिक और मानसिक मेहनत करनी पड़ी है। ‘मैरी कॉम’ तक के सफर में प्रियंका चोपड़ा का उत्साह कभी कम नहीं हुआ। फिल्मों के प्रभाव और सफलता-असफलता के अनुसार उन्हें सराहना और आलोचना दोनों मिली। सीखते-समझते हुए आगे बढऩे के साथ प्रियंका चोपड़ा ने नई विधाओं में भी प्रतिभा का इस्तेमाल किया। ‘मैरी कॉम’ के प्रति वह अतिरिक्त जोश में हैं। इस फिल्म को वह अपने अभिनय करिअर की उपलब्धि मानती हैं।
- इतने साल हो गए,लेकिन आप के उत्साह में कभी कोई कमी नजर नहीं आती। आखिर वह कौन सी प्रेरणा है,जो आप को सक्रिय और सकारात्मक रखती है?
0 मेरे लिए मेरा काम बहुत जरूरी है। जिस दिन काम की भूख खत्म हो जाएगी या असफलता का डर नहीं रहेगा,उस दिन शायद मैं काम करना बंद कर दूंगी। मैं अपने काम को आधात्मिक स्तर पर लेती हूं। फिल्मों में आई तो बच्ची थी। विभिन्न निर्देशकों के साथ काम करते हुए मैंने समझा कि एक्टिंग हुनर है। यह एक क्राफ्ट है। अभ्यास करने से ही हम बेहतर होंगे। अभी तो वैरायटी की फिल्में बन रही हैं। मेरे लिए किरदार लिखे जा रहे हैं। ‘फैशन’,‘सात खून माफ’,‘बर्फी’ और अभी ‘मैरी कॉम’ में मुझे अलग-अलग किरदार मिले। एक आसान रास्ता है कि मैं घिसी-पिटी फिल्में कर खुद को दोहराती रहूं। मुझे कमर्शियल मसाला फिल्मों से गुरेज नहीं है। मैं वैसी फिल्में भी करती रहूंगी ताकि ऐसी फिल्में कर सकूं। मेरे लिए यह संतुलन जरूरी है।
-दस साल पहले ऐसे पोस्टर की कल्पना नहीं की जा सकती थी,जिसके पोस्टर पर सिर्फ अभिनेत्री हो और वह भी अपने किरदार के पोज में। यह हिंदी फिल्मों का सहज विकास है या आप अभिनेत्रियों की उपलब्धि है?
0 यह तो और मुश्किल होता है ‘इन एंड ऐज’। पोस्टर दिखा कर मुग्ध होती हैं प्रियंका। इसमें दोनों का रोल है। अभी ऐसी अभिनेत्रियां आई हैं,जो हर जोखिम के लिए तैयार हैं। आप ने सुना होगा कि हीरोइनें पूछती हैं कि हीरो कौन है? वह भी जरूरी है। कुछ फिल्मों की कहानी पावरफुल होती है। दर्शक भी अच्छी कहानियां सुनने और देखने के लिए तैयार हैं। अभी ज्यादा एक्सपोजर हो चुका है। रायटर और फिल्ममेकर भी नए विषयों पर फिल्में बना रहे हैं। यह दौर हम अभिनेत्रियों और फिल्मों के लिए बहुत अच्छा है।
-‘मैरी कॉम’ को किस तरह की फिल्म कहें? क्या यह एक अचीवर की कहानी है या एक औरत की बॉयोपिक है या किसी औा श्रेणी की फिल्म है ?
0 यह एक ऐसे इंसान की कहानी है,जिसने सीमा में रहने से इंकार कर दिया। वह डिब्बाबंद नहीं रहना चाहती थी। चावल उगाने वाले किसान की बेटी होने के बावजूद बॉक्सर होने के ख्वाब देख सकती हूं। जिस साल भारत में महिलाओं की बॉक्सिंग आरंभ हुई,वह मैरी कॉम का भी पहला साल था। बंदिशों को तोड़ कर अपने बड़ेे सपनों के लिए कुछ भी करूंगी।  इस फिल्म से हर दर्शक जुड़ाव महसूस करेगा,क्योंकि हम सभी पर बंदिशें लगी रहती है।
-मैरी कॉम से हुई बातों-मुलाकातों में उनकी कौन सी बात आप को सबसे अच्छी लगी?
0 वह खुशमिजाज हैं। किसी की सहानुभूति नहीं चाहतीं। किसी भी लडक़ी के आत्मविश्वास के लिए गर्व सबसे जरूरी है। आत्मसम्मान की धनी है। मुझ में और उनमें कई समानताएं हैं।
-कुछ आलोचकों को लगता है कि यह फिल्म मशहूर हो चुकी मैरी कॉम का इस्तेमाल है? क्या कहेंगी?
0 अगर कोई इंसान परिचित और मशहूर है तो उसकी कहानी नहीं कही जानी चाहिए। मुझे लगता है कि लोग जजमेंटल हो गए है? फट से फैसले सुना देते हैं। मैरी कॉम अर्जुन पुरस्कार से सम्मनित सबसे कम उम्र की एथलीट हैं। वह किन परिस्थितियों से यहां तक आईं? मुझे नहीं मालूम कितने लोग उनके बारे में जानते हैं। यह एक मौका है उन्हें देखने और जाने का। मुझे मैरी कॉम की स्टोरी इसलिए अच्छी लगी कि उसने अपने घर-परिवार और समाज के साथ सब हासिल किया है। मैं उनके साथ रह चुकी हूं। उनकी कहानी इंस्पायरिंग है। लिजेंड होने के लिए लाइफटाइम बिताना जरूरी नहीं है। फिल्में एक बिजनेस भी हैं। हम ऐसी फिल्में चुनते और बनाते हैं,जो दर्शकों को पसंद आएं।
- लिविंग लिजेंड के बॉयोपिक में चेहरे की समानता आवश्यक होती है। क्या आप को लगता है कि दर्शक संतुष्ट होंगे?
0 हम दोनों एक जैसे नहीं लगते। पहले नार्थ ईस्ट के कलाकारों का ऑडिशन किया गया। यह फिल्म बड़े स्केल की हो गई तो उसके लिए ऐसे एक्टर की जरूरत पड़ी,जो बिजनेस के लिहाज से सही हो। छोटे स्तर पर बनती तो शायद रिस्क लिया जा सकता था। ओमंग और संजय सर ने सहायक भूमिकाओं मं नार्थ ईस्ट के कलाकारों को ही लिया गया है। मुझे उम्मीद है कि मैं दर्शकों को निराश नहीं करूंगी। इस फिल्म के जरिए नार्थ ईस्ट पहली बार हिंदी सिनेमा के मेनस्ट्रीम में आएगा। देश के आम दर्शक अपने ही देश के एक हिस्से को करीब से जानेंगे।



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