एक सितारा बनते देखा - सत्यजित भटकल


प्रस्तुति-अजय ब्रह्मात्मज
सत्यजित भटकल आमिर खान के जिगरी दोस्त हैं। अच्छे-बुरे दिनों में वे हमेशा आमिर के करीब रहे। नौवीं कक्षा में दोनों के बीच दोस्ती हुई। सत्यजित भटकल के लिए आमिर खान हिंदी फिल्मों के सुपर स्टार मा। नहीं हैं। वे उनके विकास और विस्तार को नजदीक से देखते रहे हैं। वे आमिर के हमकदम भी हैं। ‘लगान’ और ‘सत्यमेव जयते’ में दोनों साथ रहे। 14 मार्च को आमिर खान का जन्मदिन था। इस अवसर पर सत्यजित भटकल ने आमिर खान के बारे में कुछ बताया :-
    हर मनुष्य का एक स्थायी भाव होता है। उम्र बढऩे के साथ व्यक्त्त्वि में आए परिवत्र्तनों के बावजूद वह स्थायी भाव बना रहता है। आमिर का स्थायी भाव जिज्ञासा है। वह आजन्म छात्र रहे हैं और आगे भी रहेंगे। वे जिंदगी के सफर को सफर के तौर पर ही लेते हैं। अपनी जिज्ञासाओं की वजह से उन्होंने हमेशा खुद को नए सिरे से खोजा और सफल रहे हैं। जिंदगी की मामली चीजों के बारे में भी वे इतनी संजीदगी से बता सकते हैं कि आप चकित रह जाएं। ‘लगान’ की शूटिंग के समय हमलोगों ने सहजानंद टावर्स को होटल में बदल लिया था। बैरे के रूप में स्थानीय लडक़े काम कर रहे थे। उन्हें कोई ट्रेनिंग नहीं मिली हुई थी। वहां किसी ने पॉट टी मंगवाई। वे एक पॉट में बनी-बनाई चाय ले आए। रूम में बैठे दस लोगों में से कुछ हंसने लगे। आमिर ने उस बैरे को पास में बिठाया। उसे पॉट टी का मतलब समझाया और पेश करने का तरीका बताया। उस घबराए और सहमे बैरे की खुशी देखने लायक थी। उन्होंने खुद चाय बना कर अच्छी तरह समझाया। आमिर छात्र तो हैं ही,वे अच्छे धैर्यवान शिक्षक भी हैं। दोनों भूमिकाओं में उन्हें पूरा आनंद आता है। हम दोस्तों के लिए मुश्किल होती है,क्यों कि वे एक साथ छात्र और शिक्षक बने रहते हैं।
बढ़ती गई सीखने की चाहत
    हमारी मुलाकात 14-15 साल की उम्र में हुई थी। हम दोनों नौवीं कक्षा में थे। आरंभ में वे खामोश और अकेले रहते थे। दूसरों से घुलते-मिलते नहीं थे। दूसरे स्कूल से आए थे तो उनका कोई दोस्त नहीं बना था। हम दोनों बांबे स्काटिश में थे। पढ़ाई में वे अव्वल नहीं थे। आत्मविश्वास की कमी थी या शायद गंभीरता थी कि वे बेवजह मुंह नहीं खोलते थे।  लंच में हम दोनों की बातें शुरू हुई और हम ने पाया कि हम दोनों में कई बातें समान हैं। हम दोनों उस उम्र में ईश्वर के अस्तित्व पर बातें करते थे। हम शतरंज भी खेलते थे। शास्त्रीय संगीत और सीरियस फिल्मों में भी हमारी समान रुचि थी। मौज-मस्ती नहीं करते थे वे। जिज्ञासा का यह भाव उनमें पहले इतना तीव्र नहीं था। आम तौर मशहूर होने के साथ लोग सीखना बंद कर देते हैं। आमिर के साथ उल्टा हुआ है। स्थापित और मशहूर होने के साथ सीखने की उनकी चाहत बढ़ गई है। इन दिनों वे सिखाने भी लगे हैं। ‘सत्यमेव जयते’ के दौरान उन्होंने ढेर साी नई चीलें देखी,सीखी और जानी। मैं देयता हूं कि वे लोगो को उनके बारे में विस्तार से बताते रहते हैं। श्ूट के दौरान मैँ डरा रहता था कि कोई कुछ पूछ न ले। आमिर कम से कम 20 मिनट उसे समझाते थे। समझाने के समय वे ज्ञान नहीं बघारते। दरअसल,अपने सीखने के आनंद को सिखाते समय दोहराते हैं।
तैयार था प्‍लान बी 
    आमिर पढ़ाई में कमजोर थे। नए स्कूल और सिलेबस की वजह से उन्हें दिक्कत हो रही थी। दसवीं की परीक्षा के समय उन्होंने सोच लिया था कि वे ड्रॉप लेंगे और अगले साल अपीयर होंगे। मैंने उन्हें समझाया कि अगर आप इस साल तैयार नहीं हैं तो क्या जरूरी है कि अगले साल तैयार हो जाएंगे। आप परीक्षा से इसलिए भाग रहे हैं कि आप की पढ़ाई में रुचि नहीं पैदा हो पा रही है। मैंने उनसे प्रॉमिस किया कि मैं केमिस्ट्रिी में उनकी मदद करूंगा। बाद में उन्हें लगा कि पढ़ाई में उनकी रुचि नहीं है। वे एमनएम कॉलेज जाने लगे। वहां वे महेन्द्र जोशी के संपर्क में आए। उन दिनों मेरा संपर्क कम हो गया था। उन्हीं दिनों वे अपने चाचा के एडी बन गए थे। जब मैंने यह सब सुना तो मुझे अच्छा नहीं लगा। मैंने पूछा भी फिल्म लाईन में कुछ नहीं हुआ तो तू क्या करेगा? आमिर का जवाब था कि कुछ नहीं हुआ तो मैं एयरलाइन में पर्सर की नौकरी कर लूंगा। यह उनका प्लान बी था।
मैं खुशी से रो पड़ा 
    मुझे यह पता चला कि वे एक्टर बनना चहते हैं तो हंसी भी आई। उन्होंने रोशन तनेजा से ट्रेनिंग भी ली। मैंने उनकी इस कोशिश को सीरियसली नहीं लिया। उन दिनों वे स्टंट भी सीख रहे थे। जुहू चौपाटी पर अभ्यास के दौरान उनकी पीठ में चोट भी आई। बाद में नासिा साहब ने उन्हें समझाया कि तुम्हें एक्टर बनना है कि स्टंट मैन। लीड एक्टर का रिस्क लेना ठीक नहीं है। फिल्म बनी और पोस्टर-होर्डिंग लगाने का समय आ गया। शहर में तीन लोकेशन चुने गए। हमलोग उन्हें देखने गए। एक सेंचुरी बाजार में लगा था- मीट द ब्वॉय नेक्स्ट डोर। तब एहसास हुआ कि वे एक्टर बन गए। रिलीज के दिन वे बहुत नर्वस थे। मेरे घर आ गए थे। हमलोग रात भर जगे रहे। नॉवेल्टी में कास्ट एंड क्रू का शो हुआ था। हमलोग गए थे। फिल्म खत्म होने के बाद भीड़ निकली तो उसने आमिर को चहचान लिया। भीड़ ने आमिर को घेर लिया। वे हम सभी से अलग हो गए और - द स्टार वाज बॉर्न। मैं खुशी से रोने लगा था। तीन फितों के बाद आमिर का फोन आया था। उन्होंने बताया था कि दर्शक पागल हो रहे हैं। पता चला कि आमिर खान का प्रयास सफल रहा।
 अब है सर्वश्रेष्‍ठ दौर 
 आमिर ने सफल होने के बाद बहुत बुरी फिल्में भी चुनीं। मुझे अच्छा नहीं लगता था। मैं कह देता था। उन दिनों तैं उनकी कोई फिल्म नहीं देखी। बहुत सालों के बाद उनकी ‘दिल’ देखी। वह देख कर मैं इतना व्यथित हुआ कि मैंने उनसे मिलना जरूरी समझा। मैंने उनकी क्लास ली और पूछा कि कौन सी मजबूरी है कि वे ऐसी फिल्में कर रहे हैं? क्यों  इतना घिनौना काम कर रहे हैं? लानत है। मुझे यकीन नहीं हो रहा है कि आप ऐसी फिल्में कर रहे हैं। उन्होंने मेरी बातें ध्यान से सुनीं। कोई तर्क नहीं दिया और न मुझे समझाया। उन्होंने यह कहा कि मुझे ऐसी ही फिल्में मिल रही हैं। हिंदी में ऐसी ही फिल्में बन रही हैं। मैं इन फिल्मों के जरिए वह पोजीशन हासिल करना चाहता हूं कि अपने मन का काम कर सकूं। उनकी बातों पर मुझे तब यकीन नहीं हुआ था। मेरा जवाब था कि तू सुविधाजनक बातें कर रहा है। उन्होंने मुझ से का कि अब मेरी फिल्में तब तक मत देखना,जब तक मैं न कहूं। मुझे लगता है कि ‘रंगीला’ और ‘सरफरोश’ के बाद उनकी फिल्मों के चुनाव में फर्क आया। उसके बाद ही उनकी फिल्मों का चयन ठीक हुआ।
    हमें यह देखना होगा कि जब आमिर खान फिल्मों में आए तब किस तरह की फिल्में बन रही थीं। वह मेरा दोस्त है,इसलिए मैं उसे फटकार सकता था। सच तो यही है कि कोई भी बेहतर काम नहीं कर रहा था। बुरी फिल्में बन रही थीं। आमिर खान को उस कीचड़ से निकलने में समय लगा। अब समझा जा सकता है। उनका विकास हो रहा था। बतौर एक्टर अभी उनका श्रेष्ठ दौर चल रहा है। उन्हें अभी पर्दे पर देखते हुए मजा आता है। अभी उन्हें डायरेक्ट करने वाले सभी निर्देशक बहुत खुश रहते होंगे। ‘रंग दे बसंती’,‘3 इडियट’ और ‘पीके’ देख लें। आमिर जो एफर्ट डालते हैं,वह काबिल-ए-तारीफ है। मुझे लगता है कि वह हर नया टेक पहले से बेहतर करते होंगे। उनकी श्रेष्ठ फिल्में अभी आ रही हैं। ‘सत्यमेव जयते’ एक बड़ा पड़ाव है। उन्होंने इसे चार साल दिए। उन दिनों उन्होंने कितनी फिल्मों में विलंब किया। मशहूर और प्रभावशाली व्यक्तियों से अनेक बैठकें रद्द कीं। ऐड छोड़ीं। उन्होंने दनादन फिल्में नहीं कीं। ‘सत्यमेव जयते’ करने के बाद वे समाज के प्रति अधिक संवेदनशील हो गए हैं। देश के दर्द से परिचित हुए हैं। मैंने पहले ही कहा कि वे बहुत अच्छे छात्र हैं। वे जो सीखते हैं,उसे आत्मसात कर लेते हैं।

   



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