दरअसल : रेड कार्पेट पर ल‍हराती अभिनेत्रियां



-अजय ब्रह्मात्‍मज
    हर साल मई के दूसरे हफ्ते में फ्रांस के कान शहर में कान फिल्‍म समारोह का आयोजन होता है। विश्‍व भर से नामी फिल्‍मकरों की फिल्‍मों का विभिन्‍न खंडों और श्रेणियों में प्रदर्शन किया जाता है। माना जाता है कि वहां प्रदर्शित फिल्‍में कलात्‍मक दृष्टि से श्रेष्‍ठ और दर्शनीय होती हैं। भारत से इस साल दो फिल्‍में नीरज घेवन की मसान और गुरविंदर सिंह की चौथी कूट गई हैं। अफसोस की बात है कि भारतीय मीडिया में इन फिल्‍मों का नहीं के बराबर कवरेज या उल्‍लेख हुआ है। कान फिल्‍म समारोह का नाम लें तो सभी यही बताते मिलेंगे कि इस साल कट्रीना कैफ भी गई थीं। उन्‍होंने रेड कार्पेट पर रेड ड्रेस पहनी थी। उनके अलावा ऐश्‍वर्श्‍या राय और सोनम कपूर भी वहां थीं। सुना है कि मल्लिका सहरावत भी पहुंच गई थीं। इस साल तो ऐश्‍वर्या राय बच्‍चन की आगामी फिल्‍म जज्‍बा का फर्स्‍ट लुक भी वहां रिवील किया गया। बस,वास्‍जविकता की जानकारी नहीं रहेगी।
    दरअसल,कान फिल्‍म समारोह फिल्‍मों का वार्षिक मेला है,जहां फिल्‍मों के साथ दुनिया भर के वितरक और खरीददार भी पहुंचते हैं। सभी अपने देशों और बाजार के लिए फिल्‍मों की खरीद करते हैं। कान फिल्‍म समारोह के दौरान अधिकृत रूप से आमंत्रित फिल्‍मों का प्रदर्शन किया जाता है। उनके अलावा कान फिल्‍म समारोह के दौरान कोई भी अपनी फिल्‍मों का प्रायवेट प्रदर्शन कर सकता है। इस मौके लिए बने पैवेलियन में कोई भी अपनी फिल्‍म का काउंटर लगाकर बैठ सकता है। हर साल कुछ भारतीय ऐसे ही वहां अपनी फिल्‍मों का प्रदर्शन करते हैं। उन्‍हें भारत में यों प्रचारित किया जाता है कि कान मैं फलां डायरेक्‍टर और प्रोड्यूसर की फिल्‍म का प्रदर्शन किया गया। भारत के अनजान मीडियाकर्मी उन आधारहीन खबरों को प्राथमिकता और गौरव के साथ छापते हैं। उन्‍हें लगता है कि वे भारत के सम्‍मान को रेखांकित कर रहे हैं।
    फिल्‍मों की खबरें तो फिर भी ठीक हैं। विडंबना यह है कि हर साल ब्‍यूटी प्रोडक्‍ट के एंडोर्समेंट के लिए भारत से वहां ब्रांड एंबैसडर बनी अभिनेत्रियां वहां जाती हैं। भारतीय मीडिया उनकी कवरेज के लिए परेशान रहता है। बताया जाता है कि इस साल क्‍या-क्‍या होगा ? रेड कार्पेट की उनकी तस्‍वीरें छपती हैं। फिर मीन-मेख निकाला जाता है। बताया जाता है कि क्‍या-क्‍या गड़बडि़यां हुईं। इस साल भी ऐश्‍वर्या राय बच्‍च्‍न,सोनम कपूर और कट्रीना कैफ के चर्चा हुई। रेड कार्पेट पर नुमाइश बनी इन अभिनेत्रियों की तस्‍वीरें छपीं। अभिनेत्रियों की नुमाइश और तस्‍वीरों से कोई दिक्‍कत नहीं है। दिक्‍कत यह है कि उन्‍हें फिल्‍मों के साथ जोड़ कर पेश किया जाता है। पाठ‍कों और दर्शकों में गलतफहमी है कि वे रेड कार्पेट पर भारत का प्रतिनिधित्‍व कर रही होती हैं। सच्‍चाई यह है कि यह उनकी निजी यात्रा होती है। कोई शक नहीं कि विदेशी धरती पर हर भारतीय अपने देश का प्रतिनिधि होता है,लेकिन ऐसे समारोहों में अगर अधिकृत निमंत्रण नहीं हो तो आप प्रतिनिधि नहीं कहे जा सकते। दूसरे,चर्चित अभिनेत्रियां अपने प्रोडक्‍ट के प्रचार के लिए वहां रहती हैं। उन्‍हें तो यह भी पता नहीं रहता कि भारत से कौन सी फिल्‍में आई हैं या कौन से फिल्‍ममेकर आए हैं ? क्‍यों नहीं ये अभिनेत्रियां भारत की फिल्‍मों के प्रदर्शन या अन्‍य इवेंट में मौजूद होकर अपनी लोकप्रियता से उन्‍हें फायदा पहुंचाती हैं।
        भारतीय मीडिया को समझदारी से काम लेना चाहिए। भारतीय फिल्‍मकारों की फिल्‍मों के बारे में कवरेज करते हुए ब्‍यूटी प्राडक्‍ट के प्रचार में गई अभिनेत्रियों की तस्‍वीरें कम से कम सिनेमा के साथ जोड1 कर नहीं छापनी चाहिए। इस साल और अन्‍य सालों में भी भारत से अधिकृत रूप से चुनी गई फिल्‍मों का उल्‍लेख भी नहीं हो पाता। उन्‍हें आर्ट सिनेमा श्‍या फेस्टिवल फिल्‍म कह कर दरकिनार कर दिया जाता है। वक्‍त आ गया है कि हम सच्‍चाई को समझें और अपने कवरेज की प्राथमिकता बदलें।

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