खुशी है पूरी हुई ख्‍वाहिश - विद्या बालन


-स्मिता श्रीवास्तव
सिल्वर स्क्रिन पर कभी शोख, कभी संजीदा नजर आई विद्या बालन ने बहुत सारे किरदारों को जीया है। इंटेस फिल्में उनकी पसंदीदा रही है। हमारी अधूरी कहानी उसी जॉनर की फिल्म है। इस फिल्म को करने के साथ महेश भट्ट के साथ काम करने की उनकी दिली तमन्ना भी पूरी हुई। इसमें वह वसुधा का किरदार निभा रहीं। फिल्म को लेकर उन्होंने साझा की बातें : 
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मैं महेश भट्ट और गुलजार साहब के साथ काम करने की हमेशा से ख्वाहिशमंद थी। भट्ट साहब निर्देशन से संन्यास ले चुके हैं। गुलजार साहब भी निर्देशन से दूरी बना चुके हैं। हालांकि मैंने गुलजार साहब से कई बार निर्देशन का आग्रह किया है। उनका जवाब होता है अगर फिल्म बनाई तो तुम्हारे साथ ही बनाऊंगा। मैं कहती हूं देर किस बात की बना डालिए। बहरहाल महेश भट्ट ने हमारी अधूरी कहानी की लिखी है। निर्देशन न सही उनकी लिखी कहानी पर अभिनय मौका मिला। मैंने विशेष फिल्म्स के बैनर तले बनी फिल्मों में पूर्व में काम नहीं किया था। उनकी फिल्मों और मेरी फिल्मों का मिजाज अलग रहा है। खास तौर से पिछले दस वर्षो के दौरान। कैंप से जुड़ने की कहानी दिलचस्प है। आशिकी 2 मुझे बेहद पसंद आई। मैंने निर्देशक मोहित सूरी से उनके साथ काम करने की इच्छा व्यक्त की। यह सुनकर वह मुस्कुरा दिए। शायद उन्हें लगा कि उत्साह में मैंने यह बात कही। फिर मैंने भट्ट साहब को फोन किया। भट्ट साहब की फिल्में मुझे इसलिए पसंद होती हैं क्योंकि सिर्फ सिचुएशन नहीं उनके कैरेक्टर जटिल होते थे। जबकि ज्यादातर फिल्मों में हीरो-हीरोइन कठिन परिस्थितियों से जूझते हैं। मैं उनकी फिल्म अर्थ की मुरीद थी। दोस्त के घर पढ़ने जाने के दौरान मैं उसके सीन की नकल करती थी। यह कोशिश होती थी कि बिना ग्लिसरीन के आंसू बहे। उस फिल्म का मुझ पर बहुत गहरा प्रभाव रहा है। मोहित में मुझे मानवीय जटिलताओं को दिखाने को लेकर गंभीरता दिखी। इंसानी फितरत बेहद अस्थिर होती है। उसकी सोच पल में तोला पल में माशा होती है। मोहित उसे दिखाने में निडर हैं। मैंने भट्ट साहब से कहा कि अर्से बाद किसी निर्देशक में आपका अख्स दिखा। यह संयोग है कि यह आपके बैनर तले बनी फिल्म है। मैं मोहित के साथ काम करने की ख्वाहिशमंद हूं। यह कहने के बाद मैंने फोन रख दिया। एक महीने बाद भट्ट ने फोन करके आफिस बुलाया। उन्होंने कहा कि आपको एक आइडिया सुनाता हूं। अगर पसंद आया तो मैं कहानी लिखूंगा। उसे मोहित निर्देशित करेंगे। मुझे कहानी बेहद पसंद आई। मुझे इंटेस चीजें पसंद हैं। हमारी अध्ूारी कहानी इंटेंस लवस्टोरी है। मुझे अच्छी लगी। मैंने झट से हां कहा। फिर उन्होंने कहानी डेवलप की। फाइनली मुझे कहानी नरेट की। उसे सुनने के बाद बिना कुछ कहे मैं उनके आफिस से निकल गई। फिर मैंने उन्हें मैसेज किया कि आप मेरी खुशी का अंदाज नहीं लगा सकते। मेरे लिए आपका स्क्रिप्ट नरेट करना बहुत बड़ी बात थी। यह हमेशा से मेरी चाहत थी। बीच में वह मुझे फोन करते रहते। उन्होंने मुझे अपनी किताब अ टेस्ट ऑफ लाइफ पढ़ने को दी। उसके साथ कहा कि अंकंवेंशनल लव क्या होता है यह किताब पढ़कर समझ आएगा। मैंने किताब पढ़ी। बीच में कोड्स भेजते। इस तरह मैंने रोल की तैयारी की। जबकि मोहित ज्यादा तैयारी में यकीन नहीं रखते। हमारी दो-दो घंटे मीटिंग होती। उसमें तमाम बातें होती। फिल्म पर महज पांच मिनट बात होती। धीरे-धीरे हमारे बीच कंफर्ट लेवल आ गया। वो एक्टर को तैयारी नहीं कराते। काम की आजादी देते हैं। जहां कमी लगती वहां अपनी राय देते।
    हर दूसरी औरत की कहानी
परिणीता के बाद मैं लवस्टोरी कर रही हूं। भट्ट साहब ने कहा कि यह दूसरी औरत की कहानी है। मैं सहमत हूं उनकी बात से। यह मानसिकता सदियों से चली आ रही कि शादी के बाद औरत आदमी की जागीर हो जाती है। हालांकि यह बात दोनों पक्षों पर लागू होनी चाहिए। आधुनिकता और शिक्षित होने के बावजूद महिलाएं भी इस धारणा से उबर नहीं पाती। आंधी में रहमान सर ने सुचित्रा सेन से कहा था कि राजनीति में रहना तुम्हारी तकदीर है। तुम क्यों शादी ब्याह के झंझट में फंस रही। औरत को सिखाया गया है कि उसकी पहचान मर्द से होती है। यहां पर इमरान का किरदार आरव वसुधा को सिर्फ इंसान के तौर पर देखता है। वह पहली बार किसी ऐसे इंसान से मिलती है जो उसे किसी की बीवी या मां के तौर पर नहीं देखता। फिर उसे प्यार करने लगता है। यह अनजाने में होता है। वसुधा शादी से नाखुश नहीं थी। उसने सोचा नहीं था कि वो शादी से बाहर प्यार महसूस करेगी। उसका पति उसके लिए पजेसिव है। वसुधा के हाथ पर अपना नाम लिखाता है। उसकी सांसों से लेकर उसके जिस्म पर अपना अधिकार मानता है। भट्ट साहब ने कहा कि ऐसे किरदार आपको अपने ईदगिर्द मिल जाएंगे। मैंने सोचा था यह प्रवृत्ति अनपढ़ लोगों में ज्यादा होगी। मगर ये हर जगह व्याप्त है। कहीं कम कहीं ज्यादा।
    मेरी अधूरी कहानी महेश भट्ट की मां की कहानी नहीं है। यह महेश भट्ट के माता-पिता, उनकी सौतेली मां और आसपास के लोगों के जीवन से प्रेरित है। जब उन्होंने मुझे यह बताया तो कहीं न कहीं प्रेशर बढ़ गया था। इस फिल्म को लेकर मैं नर्वस थी। बाद में पता चला इमरान और मोहित भी नर्वस थे। रिलेशनशिप की बारीकियों को जिस गहराई से महेश साहब ने लिखा है मोहित ने उतनी संजीदगी से उसे पर्दे पर उतारा है। यह सीन पढ़कर तुरंत करने वाली फिल्म नहीं है। उसे महसूस करना पड़ता है। फिल्म की कहानी खूबसूरती से कहती है कि सच्चा प्यार आपको बंधन में नहीं बांधता।
    सिर्फ वूमन सेंट्रिक फिल्में करना मेरा लक्ष्य नहीं। मैं अलहदा फिल्में करना चाहती हूं। वूमन सेंट्रिक फिल्म करने से फीस में इजाफा नहीं हुआ है। बल्कि कम फीस में काम करना पड़ता है। हाल में कंगना, प्रियंका और दीपिका की महिला प्रधान फिल्में हिट हुई हैं। वूमन सेंट्रिक अगर यूं ही हिट रही तो हमारा पारिश्रमिक भी हीरो के बराबर हो जाएगा। फिलहाल मैं बेनजीर भुट्टो या सुचित्रा सेन की बायोपिक नहीं कर रही। भुट्टो का प्रस्ताव भी मेरे पास नहीं आया। सुचित्रा सेन का प्रस्ताव आया था। मैं उसे करना चाहती थी। यह फिल्म बंगाली में बनेगी। राइमा सेन अपनी नानी की तरह दिखती हैं। मुझे लगा वो उसके लिए उपयुक्त लगेंगी। फिलहाल टीवी पर एक नान फिक्शन शो करने की सहमति दी है। पहली बार मुझे कोई कांसेप्ट पसंद आया है। यही वजह है कि कोई फिल्म साइन नहीं कर रही।


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