सिनेमालोक : राजनीति के फ़िल्मी मोहरे


सिनेमालोक
राजनीति के फ़िल्मी मोहरे
-अजय ब्रह्मात्मज
हिंदी सिनेमा और राजनीति का रिश्ता बहुत मीठा और उल्लेखनीय नहीं रहा है.उत्तर भारत की राजनीति में उनका इस्तेमाल ही होता रहा है.वे सजावट और भीड़ जुटाने के काम आते रहे हैं.उत्तर भारत की राजनीति में हिंदी फिल्मों से ही फ़िल्मी हस्तियां आती-जाती रही हैं. पहले केवल राज्य सभा के लिए उन्हें चुन लिया जाता था.वे संसद की शोभा बढ़ाते थे और कभी-कभार फिल्म इंडस्ट्री या किसी सामाजिक मुद्दे पर कुछ सवाल या बहस करते नज़र आ जाते थे. उनका महत्व और प्रतिनिधित्व सांकेतिक ही होता था.
इधर 21वी सदी में अब उनका उपयोग मोहरे की तरह होने लगा है. खास कर इस चुनाव में जिस तरह चुनाव की घोषणा के बाद उन्हें पार्टी में शामिल कर टिकट दिए गए हैं,उससे यही संकेत मिलता है कि किसी राजनीतिक समझदारी से अधिक यह उनकी लोकप्रियता भुनाने का कदम है. अब सनी देओल का ही मामला लें. ठीक है कि स्वयं धर्मेन्द्र(सनी के पिता) ने कभी बीकानेर से सांसद का चुनाव लड़ा था. उनकी सौतेली मां हेमा मालिनी राजनीति में निरंतर सक्रिय हैं.लेकिन सनी या बॉबी देओल ने कभी राजनीतिक झुकाव नहीं दिखाया.
जिस दिन अमित शाह के साथ सनी देओल की तस्वीर मीडिया में आई,उसी दिन जाहिर हो गया था कि कुछ तो पक रहा है.तब कयास लगया जा रहा था कि वे अमृतसर से चुनाव लड़ेंगे.बाद में जानकारी मिली कि उन्हें गुरदासपुर से उमीदवार बनाया गया है.विनोद खन्ना वहां से सांसद रहे थे. उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी या बेटे अक्षय खन्ना को उमीदवार बनाने की ख़बर भी आई थी.बहरहाल,सनी देओल ने उम्मीदवार के तौर पर पर्ची भर दी है. खुद नरेन्द्र मोदी ने उनके साथ अपनी तस्वीर ट्विटर पर शेयर की और ‘ग़दर’ का संवाद लिखा... हिंदुस्तान जिंदाबाद था,है और रहेगा. ‘ग़दर’ के सन्दर्भ के साथ याद करें तो इशारा स्पष्ट है.
राजनीति के पत्रकारों के मुताबिक इस बार के चुनाव में भाजपा के लिए एक-एक सीट ज़रूरी है. उन्हें अपनी संख्या बढ़ानी या कम से कम बरक़रार रखनी है. वे नहीं चाहते कि किसी कमज़ोर पेशेवर नेता को सीट देकर वे उसे खोने का जोखिम लें.यही कारण है कि आज़मगढ़ से निरहुआ और गोरखपुर से रवि किशन को टिकट दिए गए हैं. भोजपूरी फिल्मों के ये स्टार इन इलाकों में बेहद लोकप्रिय हैं. उम्मीद तो यही की जा रही है कि मनोज तिवारी की तरह वे भी भाजपा के काम आयेंगे.एक तरह से भोजपुरी के तीनों लोकप्रिय स्टार अब भाजपा के पास हैं. रवि किशन ने पिछले चुनाव में कांग्रेस का साथ दिया था. इस बार वे पाला बदल कर भाजपा के साथ आ गए हैं.
फ़िल्मी मोहरों के इस्तेमाल में कांग्रेस भी पीछे नहीं है.राज बब्बर तो उनके सक्रिय नेता हैं.उत्तर प्रदेश की कमान संभाले हुए हैं. इस बार शत्रुघ्न सिन्हा भी उनके पाले में आ गए हैं. भाजपा के वतमान नेतृत्व ने आडवाणी,जोशी समेत अनेक शीर्ष नेताओं की अवमानना की तो शत्रुघ्न सिन्हा सावधान हो गए. उन्होंने समय रहते ही छलांग लगायी और कांग्रेस में आ गए. चर्चा चल रही थी कि शायद भाजपा उन्हें पटना साहिब से उम्मीदवार न बनाये. कांग्रेस में आने से उन्हें टिकट तो मिल गया.अब यह देखना है कि वे वहां से जीत पाते हैं या नहीं. उधर सपा से जयाप्रदा ने भाजपा में प्रवेश कर पुराने साथियों को तिलमिला दिया है.वे बुदबुदाने लगे हैं.कांग्रेस ने मुंबई में उर्मिला मातोंडकर को टिकट दिया है.वह जी-जान से चुनाव में लगी हैं. माना जा रही कि वह वर्तमान सांसद को कड़ी टक्कर देंगी.अगर अंतिम समय में मतदाताओं ने रुख बदला तो वह जीत भी सकती हैं.
अगर ये फ़िल्मी हस्तियां सांसद चुने जाने के बाद भी सक्रिय रहें और फिल्म इंडस्ट्री और समाज के वास्तविक मुद्दे पर अपनी सहभागिता दिखाएँ तो अच्छी बात होगी. उन्हें शो पीस से आगे बढ कर अपनी महत्ता साबित करनी होगी.  


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आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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