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फिल्‍म समीक्षा : हिम्‍मतवाला

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बेमेल मसालों का मनोरंजन -अजय ब्रह्मात्‍मज  1983 में आई के राघवेन्द्र राव की हिम्मतवाला की रीमेक साजिद खान की हिम्मतवाला 1983 के ही परिवेश और समय में है। कपिलदेव के नेतृत्व में व‌र्ल्ड कप जीतने की कमेंट्री के अलावा फिल्म का एक किरदार बाल कर बताता है कि यह 1983 है। इस प्रकार पिछले बीस सालों में हिंदी सिनेमा के कथ्य और तकनीक में जो भी विकास और प्रगति है, उन्हें साजिद खान ने सिरे से नकार और नजरअंदाज कर दिया है। मजेदार तथ्य है कि साजिद खान की सोच और समझ में यकीन करने वाले निर्माता, कलाकार, तकनीशियन और दर्शक भी हैं। निश्चित ही हमारा देश भारत कई स्तरों पर एक साथ चल रहा है। मनोरंजन का एक स्तर साजिद खान का है। साजिद खान थैंक्स गॉड इटस फ्रायडे जैसा गीत सुनवाने और मॉडर्न फाइट दिखाने के बाद 1983 के गांव रामनगर ले जाते हैं। इस गांव में शेर सिंह, नारायण दास, गोपी, सावित्री आदि जैसे दुनिया से कटे किरदार रहते हैं। बरगद या पीपल के पेड़ के नीचे ग्राम सभा होती है। यहां पुलिस भी 2000 किलोमीटर दूर से आती है। रामनगर की ग्राम पंचायत में एक ही सरपंच है। उसने सभी ग्रामीणों की जमीन-जायदाद

हिम्‍मतवाला के पोस्‍टर

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यह फिल्‍म अभी सोची भर गई है। साजिद खान की हिम्‍मत देखिए कि पांस्‍टर भी लेकर आ गए। इसे कहते हैं पब्लिसिटी का धमाल...यह फिल्‍म करेगी कमाल। हो सकता है सभी हो जाएं मालामाल। फिल्‍म के हीरो हैं अजय देवगन और हीरोइन हैं तमन्‍ना। वासु भगनानी भी सहनिर्माता हैं।

फिल्‍म समीक्षा : बोल बच्‍चन

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  एक्शन की गुदगुदी, कामेडी का रोमांच  पॉपुलर सिनेमा प्रचलित मुहावरों का अर्थ और रूप बदल सकते हैं। कल से बोल वचन की जगह हम बोल बच्चन झूठ और शेखी के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। वचन बिगड़ कर बचन बना और रोहित शेट्टी और उनकी टीम ने इसे अपनी सुविधा के लिए बच्चन कर दिया। वे साक्षात अमिताभ बच्चन को फिल्म की एंट्री और इंट्रो में ले आए। माहौल तैयार हुआ और अतार्किक एक्शन की गुदगुदी और कामेडी का रोमांच आरंभ हो गया। रोहित शेट्टी की फिल्म बोल बच्चन उनकी पुरानी हास्य प्रधान फिल्मों की कड़ी में हैं। इस बार उन्होंने गोलमाल का नमक डालकर इसे और अधिक हंसीदार बना दिया है। बेरोजगार अब्बास अपनी बहन सानिया के साथ पिता के दोस्त शास्त्री के साथ उनके गांव रणकपुर चला जाता है। पितातुल्य शास्त्री ने आश्वस्त किया है कि पृथ्वीराज रघुवंशी उसे जरूर काम पर रख लेंगे। गांव में पृथ्वीराज रघुवंशी को पहलवानी के साथ-साथ अंग्रेजी बोलने का शौक है। उन्हें झूठ से सख्त नफरत है। घटनाएं कुछ ऐसी घटती हैं कि अब्बास का नाम अभिषेक बच्चन बता दिया जाता है। इस नाम के लिए एक झूठी कहानी गढ़ी जाती है और फिर उसके मुताबिक

गदाधारी अजय देवगन,अभिषेक बच्‍चन और रोहित शेट्टी

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दर्शक मेरे साथ हैं और क्या चाहिए? -रोहित शेट्टी

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  -अजय ब्रह्मात्मज     ‘जमीन’ से ‘सिंघम’ तक की यात्रा में रोहित शेट्टी ने एंटरटेनिंग फिल्मों की श्रेणी में अपना खास स्थान बना लिया है। कामेडी, कामेडी में एक्शन या एक्शन कामेडी और एक्शन फिल्मों में उनका जोड़ नहीं है। अजय देवगन के साथ उनकी बेहतरीन अंडरस्टैंडिंग है। उनकी फिल्मों में सहयोगी कलाकारों के साथ हीरोइनें बदल जाती हैं, लेकिन अजय देवगन एवं बाकी तकनीकी टीम वही की वही रहती है। अब शायद थोड़ा परिवत्र्तन हो, क्योंकि रोहित शेट्टी की अगली फिल्म शाहरुख खान के साथ ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ होगी। फिलहाल, रोहित शेट्टी ने अगली फिल्म ‘बोल बच्चन’ के बारे में बातें थीं? - क्या है ‘बोल बच्चन’? 0 यह एक फैमिली एंटरटेनिंग फिल्म है। इसमें कामेडी है, एक्शन है, गाडिय़ां उड़ती हैं और दो-दो बच्चन हैं। नीट एंड क्लीन मसाला एंटरटेनर है। आप पूरी फैमिली के साथ देख सकते हैं। दो-ढाई घंटे का ज्यॉय राइड है। - हर फिल्म में कुछ नयापन तो लाना पड़ता होगा। वर्ना दर्शक ऊब जाएंगे? 0 वह मेरी लेखन टीम करती है। लोग मुझसे पूछते हैं कि आपकी फिल्म की यूएसपी (यूनिक सेलिंग पाइंट) क्या है? मैं हमेशा कहता हूं कि यह दर्शक बताएं कि उन्

फिल्‍म समीक्षा : रासकल्‍स

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- बड़े पर्दे पर बदतमीजी अजय ब्रह्मात्‍मज सफल निर्देशक अपने करियर की सीढि़यां उतरते समय कितने डगमगाते और डांवाडोल रहते हैं? कम से कम डेविड धवन के उतार को समझने केलिए रास्कल्स देखी जा सकती है। उन्हें संजय दत्त और अजय देवगन जैसे लोकप्रिय अभिनेताओं के साथ कंगना रनौत भी मिली हैं, लेकिन फिल्म भोंडे़पन और अश्लीलता से बाहर नहीं निकल पाती। मुमकिन है डेविड धवन के निर्देशन में ऐसा उतार पहले भी आया हो, लेकिन वे साधारण किस्म की मनोरंजक कामेडी फिल्मों के उस्ताद तो थे। चेतन और भगत दो ठग हैं। सचमुच पॉपुलर लेखक चेतन भगत फिल्म इंडस्ट्री में मजाक के पात्र बन चुके हैं। इन किरदारों का नाम सलीम और जावेद या जुगल और हंसराज रख दिया जाता तो भी कोई खास फर्क नहीं पड़ता। चेतन और भगत एक-दूसरे को ठगते और क्लाइमेक्स में ठगी में पार्टनर बनते हुए अपने-अपने तरीके से कंगना रनौत को फांसने का प्रयास करते हैं। लतीफे, चुहलबाजी, छेड़खानी और ठगी को लेकर बनी यह फिल्म बड़े पर्दे पर जारी बड़े स्टारों की बदतमीजी का ताजा नमूना है। अनुभवी और सीनियर स्टार संजय दत्त और अजय देवगन की कंगना रनौत के साथ की गई ऊलजलूल और अ

फिल्‍म समीक्षा :दिल तो बच्चा है जी

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-अजय ब्रह्मात्‍मज मधुर भंडारकर मुद्दों पर फिल्में बनाते रहे हैं। चांदनी बार से लेकर जेल तक उन्होंने ज्वलंत विषयों को चुना और उन पर सराहनीय फिल्में बनाईं। दिल तो बच्चा है जी में उन्होंने मुंबई शहर के तीन युवकों के प्रेम की तलाश को हल्के-फुल्के अंदाज में पेश किया है। फिल्म की पटकथा की कमियों के बावजूद मधुर भंडारकर संकेत देते हैं कि वे कॉमेडी में कुछ नया या यों कहें कि हृषिकेश मुखर्जी और बासु चटर्जी की परंपरा में कुछ करना चाहते हैं। उनकी ईमानदार कोशिश का कायल हुआ जा सकता है, लेकिन दिल तो बच्चा है जी अंतिम प्रभाव में ज्यादा हंसा नहीं पाती। खास कर फिल्म का क्लाइमेक्स बचकाना है। तलाक शुदा नरेन, खिलंदड़ा और आशिक मिजाज अभय और मर्यादा की मिसाल मिलिंद के जीवन की अलग-अलग समस्याएं हैं। तीनों स्वभाव से अलग हैं, जाहिर सी बात है कि प्रेम और विवाह के प्रति उनके अप्रोच अलग हैं। तीनों की एक ही समस्या है कि उनके जीवन में सच्चा प्रेम नहीं है। यहां तक कि आशिक मिजाज अभय को भी जब प्रेम का एहसास होता है तो उसकी प्रेमिका उसे ठुकरा देती है। शहरी समाज में आए परिवर्तन को दिल तो बच्चा है जी प्रेम और विवाह

फिल्‍म समीक्षा : आक्रोश

ऑनर किलिंग पर उत्तर भारत की पृष्ठभूमि पर बन रही आक्रोश की दक्षिण भारत में चल रही शूटिंग की खबर ने ही चौंकाया था कि क्या कोई फिल्मकार इस असंगत प्रयास के बावजूद सफल हो सकता है? फिल्म को रियल और विश्वसनीय टच देने की सबसे बड़ी चुनौती होती है कि वह परिवेश, वेशभूषा और भाषा में समय और स्थान विशेष को सही ढग से चित्रित करे। प्रियदर्शन ने विषय तो प्रासंगिक चुना, लेकिन उसकी प्रस्तुति में अप्रासंगिक और बेढब हो गए। आक्रोश का परिवेश कहानी का साथ नहीं देता। प्रियदर्शन को कांजीवरम के लिए नेशनल अवार्ड मिल चुका है और वे कामेडी फिल्मों के सफल निर्देशक हैं। कामेडी, कॉमर्स और कंटेंट के बीच वे आसानी से घूमते रहते हैं, लेकिन आक्रोश में उनकी क्रिएटिव कोताही साफ नजर आती है। कहानी बिहार के एक अजीब काल्पनिक स्थान की है, जो गांव, कस्बा और शहर का मिश्रण है। वहां पुलिस विभाग के आईजी और कलक्टर रहते हैं। भूतपूर्व एमएलए सुकुल वहां के बाहुबली हैं, लेकिन अजातशत्रु नामक पुलिस अधिकारी अपने आईजी और बाहुबली से भी ज्यादा खास किरदार है। प्रियदर्शन कथा के परिवेश और पात्रों को गढ़ने में पूरी तरह से चूक गए हैं, जिसकी वजह से फिल्

स्‍टार प्रोफाइल : अजय देवगन

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-अजय ब्रह्मात्‍मज मुंबई के लोकप्रिय स्टारों के नाम डालकर इंटरनेट सर्च करें तो नतीजों से आप चौंक जाएंगे। कम लोगों को सर्च रिजल्ट पर यकीन होगा। थोड़ी देर के लिए आप भी हैरत में पड़ जाएंगे कि क्या सचमुच अजय देवगन अपनी पीढ़ी के सबसे व्यस्त अभिनेता हैं? उनकी अतिथि तुम कब जाओगे अभी रिलीज हुई है और पांच फिल्में कतार में हैं। उनमें से टुनपूर का सुपरहीरो और राजनीति पूरी हो चुकी है। बाकी तीन गरम हवा, वन्स अपऑन अ टाइम इन मुंबई और गोलमाल-3 निर्माण के विभिन्न चरणों में हैं। लंबे समय के बाद अजय देवगन की एक्शन फिल्म दिसंबर में आरंभ हो जाएगी, जिसे उनके चहेते डायरेक्टर रोहित शेट्टी डायरेक्ट करेंगे। [काफी व्यस्त है शेड्यूल] बगैर शोरगुल और मीडिया हाइप के अजय देवगन अपने काम में मशगूल रहते हैं। शूटिंग ने इतना व्यस्त कर रखा है कि वे अपने ही घर में अतिथि की तरह आते हैं। पिछले दिनों तमिलनाडु के मदुरै शहर में गरम हवा के सेट पर उनसे मुलाकात हुई, बताने लगे, ''इस फिल्म की शूटिंग के बाद मुंबई लौटूंगा। वहां चंद दिनों की शूटिंग करने के बाद गोलमाल-3 के लिए गोवा चला जाऊंगा। इस बीच वन्स अप ऑन अ टाइम की बाकी

फिल्‍म समीक्षा: लंदन ड्रीम्‍स

ईर्ष्‍या और दोस्‍ती के बीच -अजय ब्रह्मात्‍मज विपुल शाह ने पंजाब और लंदन को एक बार फिर जोड़ा है। इस बार भी पंजाब का एक सीधा-सादा मुंडा लंदन पहुंचता है और वहां सभी का चहेता बन जाता है। अनजाने में वह अपने दोस्त के लिए ही बाधा बन जाता है। ईष्र्या जन्म लेती है और फिर एक दोस्त अपनी आकांक्षाओं के लिए दूसरे का दुश्मन बन जाता है। अर्जुन और मन्नू बचपन के दोस्त हैं। अर्जुन मेहनती और लगनशील है। वह संगीत की दुनिया में अपना नाम रोशन करना चाहता है। परिवार में हुए एक हादसे की वजह से कोई नहीं चाहता कि अर्जुन संगीत का अभ्यास करे। दूसरी तरफ मन्नू हुनरमंद है। उसमें जन्मजात प्रतिभा है। बड़ा होने पर अर्जुन लंदन पहुंच जाता है और मन्नू पंजाब में ही रह जाता है। वह स्थानीय राजा-रानी बैंड में म्यूजिसियन बन गया है। उधर अर्जुन लंदन में धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है। उसने अपने बैंड का नाम लंदन ड्रीम्स रखा है। लंबे समय बाद दोनों दोस्त मिलते हैं। मन्नू भी लंदन पहुंचता है। वह अपने बेपरवाह अंदाज से सभी का प्रिय बन जाता है। यहां तक कि वह दोस्त की प्रेमिका का भी दिल जीत लेता है। यहीं से अर्जुन के मन में कसक पैदा होती है। वह

फिल्‍म समीक्षा : आल द बेस्ट

हीरो और डायरेक्टर के बीच समझदारी हो और संयोग से हीरो ही फिल्म का निर्माता भी हो तो देखने लायक फिल्म की उम्मीद की जा सकती है। इस दीवाली पर आई ऑल द बेस्ट इस उम्मीद पर खरी उतरती है। हालांकि रोहित शेट्टी गोलमाल और गोलमाल रिटंर्स से आगे नहीं बढ़ पाए हैं। लेकिन जब हर तरफ हीरो और डायरेक्टर फिसल रहे हों, उस माहौल में टिके रहना भी काबिले तारीफ है। आगे बढ़ने के लिए रोहित शेट्टी और अजय देवगन को अब बंगले की कॉमेडी से बाहर निकलना चाहिए। वीर म्यूजिशियन है। वह खुद का म्यूजिक बैंड बनाना चाहता है। वीर विद्या से प्यार करता है और अपनी बेकारी के बावजूद दोस्त प्रेम की मदद भी करता है। प्रेम का सपना कांसेप्ट कार बनाना है। वीर का एनआरआई भाई उसे हर महीने एक मोटी रकम भेजता है। भाई से ज्यादा पैसे लेने के लिए प्रेम की सलाह पर वीर भाई को झूठी जानकारी देता है कि उसने विद्या से शादी कर ली है। इस बीच वीर और प्रेम एक और मुसीबत में फंस जाते हैं। रेस के जरिए रकम को पचास गुना करने के चक्कर में वे मूल भी गंवा बैठते हैं। पैसे लौटाने के लिए वे बंगला किराए पर देते हैं। सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा होता है कि अचानक विदेश में रह रहा

अमरपक्षी अमिताभ बच्‍चन

-अजय ब्रह्मात्‍मज मादाम तुसाद के लंदन स्थित संग्रहालय में अमिताभ बच्चन का मोम का पुतला मौजूद है। इस पुतले को सुरक्षित रखने के लिए विशेष तापमान की जरूरत होती है। मोम के पुतले तो सुरक्षित रखे जा सकते हैं, लेकिन जिंदगी की तीखी और कड़ी धूप में हर तरह के पुतले पिघल जाते हैं। फिर भी हमारे साथ सभी मनुष्यों की तरह हाड़-मांस का बना एक ऐसा चलता-फिरता पुतला है, जो कई बार टूटता, गिरता, बिखरता और पिघलता दिखाई दिया ़ ़ ़ ऐसा लगा कि अब इस पुतले को नहीं बचाया जा सकता। आलोचकों ने श्रद्वांजलियां भी लिख डालीं, लेकिन एक अंतराल के बाद अपनी ही जीवनी शक्ति से यह पुतला अधिक ऊर्जा के साथ उठ खड़ा हुआ। पहले से ज्यादा वेगवान और ताकतवर नजर आया। हम जिस पुतले की बात कर रहे हैं, वे हम सभी के चहेते अमिताभ बच्चन हैं, जो सिर्फ अपनी इच्छा शक्ति के दम पर अपने नाम को चरितार्थ कर रहे हैं। उम्र के साथ उनकी ऊर्जा बढ़ती जा रही है। हम चाहेंगे कि वे यों ही बढ़ते, दमकते और चमकते रहें। [तीन चित्रात्मक प्रतीक] पिछले हफ्ते ही उनका नया शो बिग बॉस आरंभ हुआ है। इसके विज्ञापन में उनकी तीन तस्वीरों की होर्डिग पूरे देश में लगी है। एक तस्व

शर्मीले, नुकीले और हठीले विशाल की कमीने

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-अजय ब्रह्मात्मज कम लोग जानते हैं कि विशाल भारद्वाज ने पहली फिल्म की प्लानिंग अजय देवगन के साथ की थी। शायद इसी वजह से अगला मौका मिलते ही अजय देवगन ने विशाल भारद्वाज के निर्देशन में ओमकारा की। विशाल ने मकड़ी और मकबूल बनायी। इस बार विशाल भारद्वाज ने फिल्म का शीर्षक ही कमीने रख दिया है। कमीने विशाल भारद्वाज का ओरिजनल आइडिया नहीं है। उन्होंने नैरोबी के एक लेखक से इसे खरीदा है। उन्होंने अपने जीवन के अनुभव इसमें जोड़े हैं और इस समकालीन भारत की फिल्म बना दिया है। शहिद कपूर और प्रियंका चोपड़ा इसे अपने करिअर की श्रेष्ठ फिल्म कह रहे हैं। उम्मीद करें कि वे आदतन यह नहीं कह रहे हों। शर्मीले,नुकीले और हठीले विशाल भारद्वाज फिलहाल इस बात से दुखी हैं कि उनकी फिल्म को यूए सर्टिफिकेट नहीं मिला है। वे चाहते हैं कि उनकी फिल्म कमीने सभी देखें, लेकिन सेंसर से ए सर्टिफिकेट मिलने की वजह से उनके दर्शक कम हो जाएंगे। चाहे-अनचाहे वे विवादों में भी फंसे हैं। कहा जा रहा है कि यह फिल्म आमिर खान और सैफ अली खान ने रिजेक्ट कर दी थी। विशाल सफाई देते फिर रहे हैं। इतना ही नहीं पापुलर हुए गीत, धन दे तान.. की लोकप्रियता का श्र

फ़िल्म समीक्षा:गोलमाल रिट‌र्न्स

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पिछली फिल्म की कामयाबी को रिपीट करने के लोभ से कम ही डायरेक्टर व प्रोड्यूसर बच पाते हैं। रोहित शेट्टी और अष्ट विनायक इस कोशिश में पिछली कामयाबी को बॉक्स ऑफिस पर भले ही दोहरा लें लेकिन फिल्म के तौर पर गोलमाल रिट‌र्न्स पहली गोलमाल से कमजोर है। ऐसी फिल्मों की कोई कहानी नहीं होती। एक शक्की बीवी है और उसका शक दूर करने के लिए पति एक झूठ बोलता है। उस झूठ को लेकर प्रसंग जुड़ते हैं और कहानी आगे बढ़ती है। कहानी बढ़ने के साथ किरदार जुड़ते हैं और फिर फिल्म में लतीफे शामिल किए जाते हैं। कुछ दर्शकों को बेसिर-पैर की ऐसी फिल्म अच्छी लग सकती है लेकिन हिंदी की अच्छी कॉमेडी देखने वाले दर्शकों को गोलमाल रिट‌र्न्स खास नहीं लगेगी। अजय देवगन संवादों के माध्यम से अपना ही मजाक उड़ाते हैं। तुषार कपूर गूंगे की भूमिका में दक्ष होते जा रहे हैं। मालूम नहीं एक कलाकार के तौर पर यह उनकी खूबी मानी जाएगी या कमी? फिल्म में अरशद वारसी की एनर्जी प्रभावित करती है। श्रेयस तलपड़े हर फिल्म में यह जरूर बता देते हैं कि वे अच्छे मिमिक्री आर्टिस्ट हैं। उन्हें इस लोभ से बचने की जरूरत है। गानों के फिल्मांकन में रोहित ने अवश्य भव्यता

फ़िल्म सामीक्षा : महबूबा

पुराना रोमांस और त्याग -अजय ब्रह्मात्मज अफजल खान की फिल्म महबूबा शैली, शिल्प, विषय और प्रस्तुति- हर लिहाज से पुरानी लगती है। और है भी। हालांकि फिल्म के हीरो संजय दत्त और अजय देवगन आज भी पापुलर हैं, लेकिन उनकी आठ साल पुरानी छवि कहीं न कहीं दर्शकों को खटकेगी। फिल्म की हीरोइन मनीषा कोईराला आज के दर्शकों के मानस से निकल चुकी हैं। पापुलर किस्म की फिल्मों के लिए उनका टटका होना जरूरी है। फिल्म बासी हो चुकी हो तो उसका आनंद कम हो जाता है। फिल्म की कहानी वर्षा उर्फ पायल (मनीषा कोईराला) पर केंद्रित है। उसके जीवन में श्रवण धारीवाल (संजय दत्त) और करण (अजय देवगन) आते हैं। संयोग है कि श्रवण और करण भाई हैं। ऐसी फिल्मों में अगर हीरोइन के दो दीवाने हों तो एक को त्याग करना पड़ता है या उसकी बलि चढ़ जाती है। महबूबा में भी यही होता है। यहां बताना उचित नहीं होगा कि मनीषा के लिए संजय दत्त बचते हैं या अजय देवगन। महबूबा भव्य, महंगी और बड़ी फिल्म है। फिल्म के बाहरी तामझाम और दिखावे पर जो खर्च किया गया है, उसका छोटा हिस्सा भी अगर कथा-पटकथा पर खर्च किया गया होता तो फिल्म मनोरंजक हो जाती। चूंकि फिल्म का विषय और शिल

प्यार का मर्म समझाएगी यू मी और हम : अजय देवगन

अप्रैल का महीना अजय के लिए खुशियों की सौगात बनकर आया है। दो अप्रैल को अजय का जन्मदिन था और इसी शुक्रवार उनके निर्देशन में बनी पहली फिल्म यू मी और हम प्रदर्शित हो रही है। यही नहीं फिल्म की नायिका उनकी पत्नी काजोल है। अजय ब्रह्मात्मज इस मौके पर उनसे खास बातचीत की- निर्देशन में आने का फैसला क्यों लिया? निर्देशन वैसे ही मेरा पहला पैशन था। एक्टर बनने से पहले मैं सहायक निर्देशक था और अपनी फिल्में बनाता था। मैंने तो सोचा भी नहीं था कि एक्टर बनना है। मेरा ज्यादा इंटरेस्ट डायरेक्शन में था। एक्टिंग में तो मुझे धकेल दिया गया कि चलो फूल और कांटे फिल्म कर लो। वह फिल्म हिट हो गयी और मेरा रास्ता ही बदल गया। मैं एक्टिंग में चला गया। एक स्थापित एक्टर को निर्देशक की कुर्सी पर बैठने की जरूरत क्यों महसूस हुई? बहुत ज्यादा मैंने नहीं सोचा कि अभी मुझे डायरेक्ट करना है, इसलिए कोई सब्जेक्ट खोजूं। ऐसा इरादा भी नहीं था। मैंने अपने दिल की बात मानी। एक विचार दो-तीन सालों से मुझे मथ रहा था। मैं उसे बनाना चाहता था। ऐसा इसलिए क्योंकि अपने आइडिया को सबसे अच्छे तरीके से मैं ही अभिव्यक्त कर पाऊंगा। फिल्म को लेकर मन में

अजय देवगन की परीक्षा!

-अजय ब्रह्मात्मज आमिर खान के समान ही अजय देवगन के बारे में भी यही कहा और सुना जाता रहा है कि वे निर्देशन में दखलंदाजी करते हैं। सेट पर और सेट के बाहर डायरेक्टर के साथ ही उनका ज्यादा समय गुजरता है। दरअसल, करियर के आरंभ से अभिनेता अजय देवगन ने निर्देशक की कुर्सी के पास ही अपनी कुर्सी रखी और फिल्म निर्देशन की बारीकियों को सीखने-समझने की कोशिश करते रहे। इसलिए अगर यू मी और हम उनके निर्देशन में आ रही है, तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है। उल्लेखनीय है कि अजय देवगन एक जमाने के स्टंट मास्टर और फिर ऐक्शन डायरेक्टर रहे वीरू देवगन के बेटे हैं, जिन्होंने सुनील दत्त की फिल्म रेशमा और शेरा से अपना फिल्मी जीवन आरंभ किया। पापा की देखादेखी अजय देवगन जब बड़े हो रहे थे, तो उनकी आंखों में भी फिल्मी सपने तैर रहे थे। इसीलिए उन्होंने अपने पिता के साथ काम आरंभ कर दिया था और शौकिया तौर पर वीडियो कैमरे से कुछ शूटिंग भी कर लेते थे। इच्छा तो थी कि फिल्म के हीरो बनें, लेकिन प्रश्न यह उठता है कि स्टारों के इस माया प्रदेश में कौन ऐक्शन डायरेक्टर के सामान्य चेहरे के बेटे को तरजीह देता? इसीलिए अजय देवगन का ध्यान कैमरे के

७०% मत मिले अमिताभ बच्चन को

पिछले दिनों चवन्नी ने आप कि राय मांगी थी कि आप अशोक की भूमिका में अमिताभ बच्चन और अजय देवगन में किसे देखना चाहेंगे?इस बार आप की हिस्सेदारी उत्साहजनक रही.चवन्नी के पाठकों में से जिन सभी ने मतदान दिए,उन में से ७० प्रतिशत ने अमिताभ बच्चन के पक्ष में मतदान किया.अजय देवगन को केवल ३०% मतदाता ही अशोक की भूमिका में देखना चाहते हैं। अगर आप ने मतदान नहीं किया था और अब अपनी राय देना चाहते हैं तो स्वागत है.आप टिप्पणी के रुप में अपनी राय पोस्ट करें.

'अशोक' बनेंगे अमिताभ बच्चन और अजय देवगन

एक हैं डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी...उन्होंने कुछ सालों पहले पिंजर नाम की फिल्म बनाईं थी.उस फिल्म की काफी तारीफ हुई थी.सभी ने मन था कि उन्होंने चाणक्य के बाद एक और बेहतरीन काम किया है.पिंजर के बाद डॉ द्विवेदी ने सनी देओल के साथ पृथ्वीराज रासो की योजना बनाईं.इस फिल्म की अभी घोषणा भी नहीं हुई थी कि राज कुमार संतोषी ने विज्ञापन तक प्रकाशित कर दिया कि वे अजय देवगन और ऐश्वर्या राय के साथ पृथ्वीराज रासो बनायेंगे.कहते हैं राज कुमार संतोषी और सनी देओल की पुरानी लड़ाई और अहम का शिकार हो गयी डॉ द्विवेदी की पृथ्वीराज रासो.कुछ समय के बाद पता चला कि दोनों ही फिल्मों को निर्माता नहीं मिल पाए.भगत सिंह के दौरान पैसे होम कर चुके निर्माताओं ने नहीं टकराने का फैसला लिया.नतीजा सभी के सामने है.पृथ्वीराज रासो नहीं बन सकी। डॉ द्विवेदी मन मसोस कर रह गए.उधर राज कुमार संतोषी हल्ला बोल बनने में जुट गए.लंबे शोध और अध्ययन के बाद डॉ द्विवेदी ने अशोक के जीवन के उत्तर काल पर फिल्म बनने की सोची.इस फिल्म के सिलसिले में उनकी मुलाक़ात देश के कई निर्माताओं से हुई.सभी ने इस फिल्म में रूचि दिखाई.मामला धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था.खबर

अजय देवगन से अजय ब्रह्मात्मज की मुलाक़ात

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-अजय ब्रह्मात्मज अजय देवगन पिछले दिनों गोवा में फिल्म गोलमाल रिट‌र्न्स की शूटिंग कर रहे थे। रोहित शेट्टी निर्देशित इस फिल्म के कलाकार हैं करीना कपूर, तुषार कपूर, अरशद वारसी और अमृता अरोड़ा। सेट पर ही अजय देवगन से मुलाकात हुई। उनसे बातचीत शुरू हुई इस सवाल के साथ कि आपकी दो फिल्में लगातार आएंगी हल्ला बोल और संडे। क्या इनमें गैप रखना उचित नहीं होगा? वे कहते हैं, फिल्म हल्ला बोल पहले 2007 में रिलीज होने वाली थी। 21 दिसंबर की तारीख भी फाइनल हो गई थी, लेकिन उसी दिन आमिर खान की फिल्म तारे जमीं पर और अक्षय कुमार की वेलकम आ रही थी। इसलिए मुझे उसी दिन हल्ला बोल को रिलीज करना सही नहीं लगा। इसी कारण यह फिल्म खिसक कर जनवरी में आ गई। संडे की रिलीज तारीख को आगे खिसकाना संभव नहीं था। संयोग ही कहें कि बैक-टू-बैक मेरी फिल्में आ रही हैं। वैसे बैक-टू-बैक रिलीज होने पर मेरी फिल्में चलती हैं। फिल्म हल्ला बोल के बारे में अजय बताते हैं, जिसको लेकर चर्चा है कि यह गंगाजल और अपहरण जैसी लग रही है, यह वैसी फिल्म नहीं है। उनसे ज्यादा कॉमर्शिअॅल है। दरअसल, राजकुमार संतोषी को कॉमर्शिअॅल ढांचा पसंद है, इसीलिए उन्होंने