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मेरी बीवी का जवाब नहीं: अभिषेक बच्चन

-अजय ब्रह्मात्मज वे भारत ही नहीं, एशिया के सर्वाधिक ग्लैमरस परिवार के युवा सदस्य हैं, लेकिन घर जाने से पहले अभिषेक बच्चन शूटिंग स्पॉट के मेकअप रूम में पैनकेक की परतों के साथ ही अपनी हाई-फाई प्रोफाइल भी उतार आते हैं। ऐश्वर्या राय के साथ उनकी शादी का कार्ड पाना पूरे मुल्क की हसरत थी, तो अब देश इस इंतजार में है कि उनके आंगन में बच्चे की किलकारी कब गूंजेगी? एक लंबी बातचीत में जूनियर बच्चन ने खोला अपनी निजी जिंदगी के कई पन्नों को- ऐश्वर्या राय में ऐसी क्या खास बात है कि आपने उनसे शादी की? वह मेरी सबसे अच्छी दोस्त थीं। वह ऐसी हैं, जिनके साथ मैं अपनी जिंदगी गुजार सकता हूं। वह ऐसी हैं, जो सिर्फ मेरी ही चिंता नहीं करतीं, बल्कि पूरे परिवार का ख्याल रखती हैं। वह जैसी इंसान हैं, उनके बारे में कुछ भी कहना कम होगा। वह अत्यंत दयालु और सुंदर हैं। बचपन से मुझे मां-पिताजी ने यही शिक्षा दी कि जिंदगी का उद्देश्य बेहतर इंसान बनना होना चाहिए। ऐश्वर्या वाकई बेहतर इंसान हैं। शादी के बाद आपका जीवन कितना बदला है? फर्क यह आया है कि परिवार में अब एक नया सदस्य आ गया है। शादी के बाद सभी का जीवन बदलता है, जिम्मेदारी

मीलों तक फैली हुई है तनहाई: महेश भट्ट

चवन्नी को अजय ब्रह्मात्मज के सौजन्य से महेश भट्ट के कुछ लेख मिले हैं,इन लेखों में उन्होंने एहसास की बात की है.अपने जीवन और फिल्मों के आधार पर लिखे इन लेखों में महेश भट्ट पूरे संजीदगी और ईमानदारी से ख़ुद को अभिव्यक्त किया है. अकेलापन, तनहाई..नाम कोई भी हो, लेकिन यह अद्भुत एहसास हमें हमेशा खुद से जोडे रहता है, दुनिया की भीड में एकाकीपन का आनंद ही अलग है। मशहूर कवि रिल्के ने कहा था कि अवसाद और अकेलापन रचनात्मकता को जन्म देता है। यही हमें सृजन की दुनिया में ले जाता है..। जब से मैंने खुद को जाना, तनहाई ही मेरी बहन और भाई है। तनहाई के गर्भ में समाने के बाद ही मैंने जाना कि इंसान के दिल में अकेलेपन का कितना बडा खजाना छिपा है..। इस तनहाई ने ही श्रव्य और दृश्य माध्यम से कहानी सुनाने की मेरी योग्यता को छीला और आकार दिया है। बस एक पल लगता है गुब्बारे के धागे को हाथ से छूटने में सिर्फ एक पल लगता है। हाथ बढा कर धागा फिर से पकड लिया तो ठीक गुब्बारा फिर से बच्चों का खिलौना बन जाता है, वर्ना एक बार दरवाजे से बाहर निकल गया और उसमें गैस भरी हो तो वह ऊपर ही चढता जाता है। हालांकि जमीन पर छूट गए बच्चे गुब्

फ़िल्म समीक्षा:किस्मत कनेक्शन

लव स्टोरी में सोशल कंसर्न -अजय ब्रह्मात्मज हम आप खुश हो सकते हैं कि जाने तू या जाने ना जैसी मनोरंजक फिल्म की रिलीज के एक पखवारे के भीतर ही एक और मनोरंजक फिल्म किस्मत कनेक्शन आई है। हालांकि यह भी लव स्टोरी है, लेकिन इसमें अजीज मिर्जा का टच है। किस्मत कनेक्शन टोरंटो के बैकड्राप में बनी भारतीय इमोशन की प्रेम कहानी है, जिसमें कुछ घटनाएं और स्थितियां नई हैं। अजीज मिर्जा की खासियत है कि उनकी फिल्में हकीकत के करीब लगती हैं। उनकी फिल्मों में यथार्थ का पुट रहता है। समानता, बराबरी, मानव अधिकार और वंचितों के अधिकार की बातें रहती हैं। लेकिन, यह सब कहानी का मुख्य कंसर्न नहीं होता। इसी फिल्म को लें। प्रतिभाशाली छात्र राज मल्होत्रा पढ़ाई पूरी करने के बाद बेरोजगार है। भविष्य बताने वाली हसीना बानो जान उसे समझाती है कि वह अपना लकी चार्म खोजे और उसे अपने साथ रखे तो उसके सारे काम हो जाएंगे। राज मल्होत्रा की प्रिया से मीठी भिड़ंत होती रहती है। चंद भिड़ंतों के बाद राज को एहसास होता है कि प्रिया उसकी लकी चार्म है। दोनों में दोस्ती होती है और फिर दोस्ती प्यार में बदल जाती है..। जरा ठहरें, इतना सिंपल अंत नहीं

फ़िल्म समीक्षा:कांट्रेक्ट

फिर असफल रहे रामू बारीक स्तर पर कांट्रैक्ट के दृश्यों के बीच उभरते भाव और निर्देशक की सोच को जोड़ने की कोशिश करें तो यह फिल्म कथित स्टेट टेरेरिज्म का चित्रण करती है। राम गोपाल वर्मा ने विषय तो रखा है अंडरव‌र्ल्ड और आतंकवाद के बीच गठबंधन का, लेकिन उनकी यह फिल्म एक स्तर पर राजसत्ता की जवाबी रणनीति का संकेत देती है। आतंकवादी संगठन जिस तरह किसी शोषित या पीडि़त को गुमराह कर आतंकी बना देते हैं, लगभग उसी तरह पुलिस और प्रशासन भी अपने गुर्गे तैयार करता है। कांट्रैक्ट देख कर तो ऐसा ही लगता है। रामू अपनी फिल्मों में मुख्य रूप से चरित्रों से खेलते हैं। अगर रंगीला और सत्या की तरह चरित्र सटीक हो जाएं तो फिल्में सफल हो जाती हैं। चरित्रों के परिवेश, पृष्ठभूमि और परिप्रेक्ष्य में वे गहरे नहीं उतरते। देश की सामाजिक स्थितियों की समझदारी नहीं होने के कारण यह उनकी सीमा बन गई है। कांट्रैक्ट में यह सीमा साफ नजर आती है। सेना के रिटायर अधिकारी अमन (अद्विक महाजन) को पुलिस अधिकारी अहमद हुसैन आतंकवादियों से निबटने के लिए अंडरव‌र्ल्ड में घुसने के लिए प्रेरित करता है। पहली मुलाकात में ऐसे मिशन में शामिल होने से साफ

गुरुदत्त पर एक किताब

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-अजय ब्रह्मात्मज नौ जुलाई को गुरुदत्त का जन्मदिन था। उनकी आकस्मिक मौत हो गई थी 1964 में। हिंदी फिल्मों के इतिहास में गुरुदत्त का नाम बड़े आदर और सम्मान के साथ इसलिए भी लिया जाता है, क्योंकि उनकी फिल्में प्यासा और कागज के फूल की गणना क्लासिक फिल्मों में होती है। वैसे, उनकी अन्य फिल्मों का भी अपना महत्व है। युवा फिल्मकार श्रीराम राघवन उनकी थ्रिलर फिल्मों से बहुत प्रभावित हैं, तो संजय लीला भंसाली को गुरुदत्त का अवसाद पसंद है। माना जाता है कि गानों के पिक्चराइजेशन में गुरुदत्त सिद्धहस्त थे। इतनी सारी खूबियों के धनी गुरुदत्त निजी जिंदगी में एकाकी और दुखी रहे। दरअसल, पत्नी गीता दत्त से उनकी नहीं निभी। वहीदा रहमान के प्रति अपने प्यार को वे कोई परिणति नहीं दे सके। उनके जीवन के इन पहलुओं पर कम लिखा गया है। कायदे से उनकी फिल्मों की विशेषताओं पर भी पर्याप्त चर्चा हिंदी फिल्मों के दर्शकों के बीच नहीं मिलती है। हमने मान लिया है कि वे महान फिल्मकार थे। हमने उनकी मूर्ति बना दी है और लेखों, बयानों और टिप्पणियों में उनका नामोल्लेख कर ही इस फिल्मकार को दर्शकों से जोड़ने की कोशिश की इतिश्री समझ लेते हैं।

बॉक्स ऑफिस:२५.०७.२००८

बाक्स आफिस पर थोड़ी हलचल दिखी पिछले हफ्ते रिलीज हुई महबूबा और खेला को दर्शक नहीं मिले। महबूबा आठ साल बासी फिल्म थी। इस फिल्म के हीरो संजय दत्त और अजय देवगन का लुक भी बदल चुका है। मनीषा कोइराला तो अब पेरिस में घर बसाने का सोच रही हैं। पुराने लुक के स्टार आज के दर्शकों को बिल्कुल पसंद नहीं आए। अफजल खान की महबूबा दर्शकों को नहीं रिझा सकी। रितुपर्णो घोष की बांग्ला फिल्म खेला हिंदी में डब की गई थी। स्त्री-पुरुष संबंध की ऐसी संवदेनशील फिल्मों के सीमित दर्शक होते हैं। खेला से उम्मीद भी नहीं थी कि उसके लिए दर्शकों की भीड़ उमड़ेगी। पहले की फिल्मों में लव स्टोरी 2050 के दर्शक नहीं बढ़े। फिल्म के प्रति समीक्षकों और आम दर्शकों की प्रतिक्रिया लगभग एक सी होने के कारण इस फिल्म का आरंभिक उफान पहले ही हफ्ते में उतर गया। हैरी बावेजा इस महत्वाकांक्षी फिल्म में असफल रहे। दूसरी तरफ जाने तू या जाने ना तेजी से बड़ी हिट होने की तरफ बढ़ रही है। माना जा रहा है कि वह इस साल की अभी तक सबसे बड़ी हिट हो जाएगी। महानगरों, प्रादेशिक राजधनियों, शहरों और छोटे शहरों तक में इस फिल्म को दर्शक मिल रहे हैं। लंबे समय बाद बाक्

५२ प्रतिशत ने 'कहानी हमारे महाभारत की' को बहुत बुरा माना

अभी पिछले दिनों एकता कपूर के महाभारत का प्रसारण आरम्भ हुआ है.फिलहाल इस पर कोई टिप्पणी नहीं करते हुए चवन्नी उस सर्वेक्षण के नतीजे यहाँ दे रहा है,जो इसी पृष्ठ पर देखे जा सकते हैं। चवन्नी ने पाँच विकल्प दिए थे। बहुत अच्छा है,अच्छा है ,बुरा है ,बहुत बुरा है और ठीक है। आश्चर्य है की किसी ने भी इसे अच्छ है नही माना। बहुत अच्छा मानने वाले २६ पतिशत रहे तो बहुत बुरा मानने वालों का प्रतशत उनसे दोगुना ५२ प्रतिशत रहा। ठीक है और बुरा है मानने वालों का प्रतिशत बराबर रहा.दोनों ही विकल्पों में १०-१० प्रतिशत मत पड़े। अब आप की बारी है.आप बताएं कि यह धारावाहिक आप को कैसा लगा?

कुछ तस्वीरें बहामास से

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कुछ तस्वीरें बहामास से ... पिछले दिनों संजय दत्त और अक्षय कुमार वहां एंथानी डिसूजा की फिल्म ब्लू की शूटिंग कर रहे थे.बहामास क्यूबा और अमेरिका के बीच द्वीपों का देश है.कहते हैं यहां सात हजार द्वीप हैं.ब्लू की शूटिंग बहामास के लिए बड़ी घटना रही.वहां के फिल्म कमिश्नर भी हमारी हिंदी फिल्मों के स्टारों से मिलने आए.आप स्वयं वहां की खूबसूरती देखें.

फ़िल्म समीक्षा:खेला

तनाव का पाजिटिव अंत -अजय ब्रह्मात्मज रितुपर्णो घोष की खेला संवेदना और विषय के आधार पर हिंदी साहित्य में नई कहानी के दौर की याद दिलाती है। स्त्री-पुरुष संबंधों में निहित द्वंद्व और पार्थक्य को देश के साहित्यकारों और फिल्मकारों ने अलग-अलग नजरिए से चित्रित किया है। रितुपर्णो घोष स्त्री-पुरुष संबंध के तनाव को इस फिल्म में नया अंत देते हैं। खेला राजा और शीला की कहानी है। राजा फिल्ममेकर है। वह अपनी फिल्म के लिए किसी प्रकार का समझौता नहीं करना चाहता। राजा फिल्म बनाने के सपने में इस कदर लिप्त और व्यस्त रहता है कि वह शीला के लिए पर्याप्त समय नहीं निकाल पाता। शीला की सोच गृहिणी की है। वह राजा को गृहस्थी की चिंताओं में भी देखना चाहती है। स्थिति यह आती है कि दोनों अलग हो जाते हैं। राजा अपनी फिल्म में डूब जाता है। उधर शीला अपने एकाकीपन से त्रस्त होकर राजा के पास अलगाव के कागजात भिजवा देती है। रितुपर्णो घोष ने ऐसे विषयों पर 15-20 साल पहले बन रही फिल्मों की तरह कथित नारीवाद का नारा नहीं लगाया है और न पुरुष को उसके सपनों के लिए दुत्कारा है। फिल्म के अंत में राजा और शीला एक साथ रहने का फैसला करते हैं औ

फ़िल्म सामीक्षा : महबूबा

पुराना रोमांस और त्याग -अजय ब्रह्मात्मज अफजल खान की फिल्म महबूबा शैली, शिल्प, विषय और प्रस्तुति- हर लिहाज से पुरानी लगती है। और है भी। हालांकि फिल्म के हीरो संजय दत्त और अजय देवगन आज भी पापुलर हैं, लेकिन उनकी आठ साल पुरानी छवि कहीं न कहीं दर्शकों को खटकेगी। फिल्म की हीरोइन मनीषा कोईराला आज के दर्शकों के मानस से निकल चुकी हैं। पापुलर किस्म की फिल्मों के लिए उनका टटका होना जरूरी है। फिल्म बासी हो चुकी हो तो उसका आनंद कम हो जाता है। फिल्म की कहानी वर्षा उर्फ पायल (मनीषा कोईराला) पर केंद्रित है। उसके जीवन में श्रवण धारीवाल (संजय दत्त) और करण (अजय देवगन) आते हैं। संयोग है कि श्रवण और करण भाई हैं। ऐसी फिल्मों में अगर हीरोइन के दो दीवाने हों तो एक को त्याग करना पड़ता है या उसकी बलि चढ़ जाती है। महबूबा में भी यही होता है। यहां बताना उचित नहीं होगा कि मनीषा के लिए संजय दत्त बचते हैं या अजय देवगन। महबूबा भव्य, महंगी और बड़ी फिल्म है। फिल्म के बाहरी तामझाम और दिखावे पर जो खर्च किया गया है, उसका छोटा हिस्सा भी अगर कथा-पटकथा पर खर्च किया गया होता तो फिल्म मनोरंजक हो जाती। चूंकि फिल्म का विषय और शिल