मीलों तक फैली हुई है तनहाई: महेश भट्ट

चवन्नी को अजय ब्रह्मात्मज के सौजन्य से महेश भट्ट के कुछ लेख मिले हैं,इन लेखों में उन्होंने एहसास की बात की है.अपने जीवन और फिल्मों के आधार पर लिखे इन लेखों में महेश भट्ट पूरे संजीदगी और ईमानदारी से ख़ुद को अभिव्यक्त किया है.
अकेलापन, तनहाई..नाम कोई भी हो, लेकिन यह अद्भुत एहसास हमें हमेशा खुद से जोडे रहता है, दुनिया की भीड में एकाकीपन का आनंद ही अलग है। मशहूर कवि रिल्के ने कहा था कि अवसाद और अकेलापन रचनात्मकता को जन्म देता है। यही हमें सृजन की दुनिया में ले जाता है..। जब से मैंने खुद को जाना, तनहाई ही मेरी बहन और भाई है। तनहाई के गर्भ में समाने के बाद ही मैंने जाना कि इंसान के दिल में अकेलेपन का कितना बडा खजाना छिपा है..। इस तनहाई ने ही श्रव्य और दृश्य माध्यम से कहानी सुनाने की मेरी योग्यता को छीला और आकार दिया है।
बस एक पल लगता है गुब्बारे के धागे को हाथ से छूटने में सिर्फ एक पल लगता है। हाथ बढा कर धागा फिर से पकड लिया तो ठीक गुब्बारा फिर से बच्चों का खिलौना बन जाता है, वर्ना एक बार दरवाजे से बाहर निकल गया और उसमें गैस भरी हो तो वह ऊपर ही चढता जाता है। हालांकि जमीन पर छूट गए बच्चे गुब्बारे को पहुंच से बाहर जाते देख रो रहे होते हैं, अनंत आकाश की तरफ बढते गुब्बारे को तो किसी पक्षी की तरह आजादी मिल जाती है, लेकिन गुब्बारा किसी गुलाम की तरह ही उड पाता है, जितनी गैस हो उतना ही। बहुत ऊंचाई पर पहुंचने के बाद वह खिलौना भी तो नहीं रह जाता कौन परवाह करता है कि क्यों गुब्बारा अपना कर्ज उतारता है और फट जाता है उसके अंदर की हवा बाहर की हवा से मिल जाती है अंदर की हवा तो उसे सांस भी नहीं दे पाती।
तनहाई का कीडा
किंडरगार्टन के दिनों में मुझे तनहाई का पहला एहसास हुआ। संयोग से बाई ने मेरे लिए जो गुब्बारा खरीदा था वह मेरे हाथ से छूट गया था और मैं चीखता हुआ उसे आकाश में ऊपर उडते हुए तब तक देखता रहा, जब तक कि वह फट नहीं गया। चमकीले नीले आकाश में लाल गुब्बारे के उस अकेलेपन का बिंब इतना समय बीतने के बाद भी मेरी स्मृतियों में ताजा है।
मेरी मां मुझे अकसर डांटती थी, जाओ, जाकर बच्चों के साथ खेलो, यों अकेले मत बैठे रहो। हर वक्त कुछ सोचते रहते हो। तनहाई का कीडा तुम्हें अंदर से खा जाएगा। मां के दबाव और समझाने के बावजूद मैं बच्चों के झुंड में शामिल नहीं हो पाता था। जब से मैंने खुद को जाना, तब से तनहाई ही मेरी बहन और भाई है। तनहाई के गर्भ में समाने के बाद मैंने जाना कि इंसान के दिल में अकेलेपन का कितना बडा खजाना छिपा है वह कभी खत्म ही नहीं हो सकता। इस तनहाई ने ही श्रव्य और दृश्य माध्यम से कहानी सुनाने की मेरी योग्यता को छीला और आकार दिया है।
कला का आधार है अकेलापन
तनहाई के आधार पर ही सारी कलाएं टिकी हैं। वास्तव में मानव चेतना में अस्तित्वात्मक तनहाई को बडा बोझ समझा जाता रहा है, लेकिन अगर इसका सही उपयोग करें तो वह कीमती उपहार भी है। तनहाई ने ही कवियों, फिल्मकारों और संगीतज्ञों को बेहतरीन रचना और सृजन के लिए प्रेरित किया। उन्होंने ऐसी रचनाएं दीं, जो हमारे दिलोदिमाग पर छा जाती हैं। सुख-दुख के उदात्त क्षणों में, प्रेम-वियोग के भावुक पलों में और तनहाई को जन्म देने वाली ऐसी घडियों में ही इंसान ने मिट्टी, रंग, शब्द और अन्य गतिविधियों से खुद को अभिव्यक्त करना सीखा। हम तनहाई के एहसानमंद हैं अन्यथा हमारे संग्रहालय और कलागृहों का क्या होता? सब खाली पडे रहते। भारतीय सिनेमा में तनहाई का इस्तेमाल मुख्य रूप से एक ही श्रेणी में हुआ है विरह की तनहाई। मैं श्वेत-श्याम फिल्मों के उस दौर को कैसे भूल सकता हूं, जब हीरो-हीरोइन एक-दूसरे से बिछुडने के बाद स्टूडियो के आकाश के नीचे खडे होकर प्रतीक्षा और मिलन की उम्मीद के गीत गाते थे। मेरी एक हिट फिल्म नाम में ज्यादा कमाई की लालसा से विदेश गए संजय दत्त की तनहाई का चित्रण था। चिट्ठी आई है गीत ने दुनिया भर के भारतीयों का दिल छू लिया था। बेहतर िजंदगी की तलाश में घर छोडकर दूर शहरों और देशों में भटक रहे लोगों को इस गीत ने रुला दिया था। औद्योगिक क्रांति के बाद विस्थापन की प्रक्रिया आरंभ हुई और एक अलग किस्म की तनहाई हमारी सामाजिक िजंदगी में घुस आई। शुरू के दौर की श्वेत-श्याम फिल्मों में गांव छोडकर शहर गए पुरुषों की तनहाई का चित्रण मिलता है। उस समय के सारे फिल्मकार (मेरे पिता समेत) कहीं और से मुंबई आए थे। कैसी विडंबना है कि वियोग के बाद ही पता चलता है कि हम किसी को याद करते हैं और कोई हमें याद करता है वियोग की इस खुशी का एहसास ही अलग होता है। इससे प्यार जागता है और हम अपने प्रेमियों एवं परिजनों के प्रति अधिक आसक्त हो जाते हैं।
आंखों में तूफान सा क्यों है
जब मैं किंडरगार्टन में था तो मेरा नौकर एक गीत गुनगुनाता रहता था- मेरे पिया गए रंगून, वहां से किया है टेलीफून, तुम्हारी याद सताती है..। गौर करें तो इस तनहाई ने ही संचार क्रांति को जन्म दिया होगा। अपने प्रियजनों से बात करने की उमंग का अनुमान इसी से लगा सकते हैं कि हम अपना कितना समय फोन और इंटरनेट पर बातचीत में बिताते हैं। हम करते क्या हैं? अपने बारे में उन्हें बताते हैं और उनके बारे में जानने की कोशिश करते हैं।
दूर देश में बैठे प्रियजनों को सुनने, उनके बारे में पढने और जानने में ही हमारा काफी वक्त गुजरता है। हमारे दिल का एक हिस्सा ऐसे ही जज्बातों से भरा रहता है। विरह से प्रेम दोगुना होता है हमारे दिल में प्यार बढता है। लेखकों और कवियों ने अपनी तनहाई के दर्द को गीतों और कहानियों के माध्यम से फिल्मों में डालकर उसे समृद्घ किया। सदियों से चला आ रहा देह व्यापार की जडें भी कहीं न कहीं तनहाई में ही धंसी हैं। मुंबई के बियर बार भी उदाहरण हैं कि आदमी कैसे अपनी तनहाई से भागना चाहता है।
मुजफ्फर अली ने गमन नाम की खूबसूरत फिल्म बनाई थी। उस फिल्म में उन्होंने गांव से शहर आकर टैक्सी ड्राइवर बने एक देहाती आदमी के अकेलेपन को छुआ था। शायर शहरयार ने सपनों की नगरी मुंबई में आए उन सभी संघर्षरत भारतीयों की भावनाओं को स्वर दिया था, जो गांव, घर, खेत छोडकर इस शहर से कुछ पाने की उम्मीद रखते हैं। शहरयार पूछते हैं- सीने में जलन आंखों में तूफान-सा क्यों है? इस शहर में हर शख्स परेशान-सा क्यों है..? उनके इन सवालों में ही भारत के महानगरों में तनहाई के दर्द का जवाब छिपा है।
तनहाई के फिल्मकार गुरुदत्त
निस्संदेह भारतीय फिल्मकारों में गुरुदत्त ने तनहाई को सबसे अच्छी तरह से समझा और अपनी फिल्मों में व्यक्त किया। प्यासा में एक संघर्षरत कवि का गुस्सा है। वह इस दुनिया से अपनी बात कहना चाहता है। मेरे ख्याल में तनहाई पर बनी बेहतर हिंदी फिल्मों में से एक है प्यासा। कागज के फूल में उन्होंने इस विषय को और गहराई से छुआ। इस फिल्म में गुरुदत्त ने एक फिल्मकार की तनहाई को पकडा, जो फिर से रोशनी की दुनिया में लौटना चाहता है, लेकिन वह खाली सेट पर सुनसान मौत का शिकार होता है। इस फिल्म का शीर्षक ही बहुत कुछ कह देता है। इस फिल्म का एक संदेश यह भी है कि जिंदगी अविजित खेल है। स्कोर बोर्ड पर नंबर बदलते रहते हैं, लेकिन अंत में आपको कुछ नहीं मिलता। गुरुदत्त में यह स्वाभाविक गुण था। हम सभी जानते हैं कि वह कभी-कभी गहन निराशा के शिकार होते थे और इसी नैराश्य में उन्होंने आत्महत्या भी कर ली थी। अपनी फिल्मों में मैंने शहरी जिंदगी में तनहाई के विषय को अलग-अलग पहलुओं से छुआ है। अर्थ में एक गृहिणी का अकेलापन था, जिसका पति उसे छोडकर एक अभिनेत्री से प्रेम करने लगता है। इस फिल्म की एक खासियत थी कि समाज के विभिन्न तबकों से आए इसके सारे किरदार अपनी तनहाइयों से लड रहे थे। कैफी आजमी ने बहुत खूबसूरती के साथ इस भाव को शब्द दिए थे- कोई ये कैसे बताए कि वो तनहा क्यों है
सारांश में एक बुजुर्ग दंपती का गुस्सा था, जिन्हें समकालीन पतनशील और बेलाग दुनिया में अपने अकेले बेटे की मौत के बाद पैदा हुई तनहाई से गुजरना पडता है। जनम में मैंने अपनी अवैधता और पिता के प्रति अव्यक्त गुस्से की तनहाई को व्यक्त किया था। जिस्म ऊपरी तौर पर श्रृंगारिक फिल्म लगती है, लेकिन उसका मूल भाव सईद कादरी के गीत आवारापन, बंजारापन, एक खला है सीने में के जरिए अच्छी तरह सामने आया था। जिस्म का संदेश था कि दैहिक आनंद के नशे में भी तनहाई के साए से मुक्ति नहीं मिल सकती।
धर्मेद्र और तनहाई
हाल ही में मुंबई से दिल्ली की एक उडान में धर्मेद्र मिल गए। हीमैन धर्मेद्र अपनी तनहाई की बातें बताने लगे। जमीन से 35,000 फीट की ऊंचाई पर फिल्म इंडस्ट्री के हैंडसम हीरो की बातें सुनकर दंग रह गया।
उन्होंने कहा, मेरी मां ने मुझे जन्म दिया, लेकिन तनहाई ने मुझे एक्टर बनाया। सफल होने के बाद मैं सफलता के नशे और शराब में डूब गया। उस अराजक जिंदगी ने मुझे आखिरकार अमेरिका के एक नर्सिग होम में अकेले बिस्तर पर गिरा दिया। विदेश की भूमि में अस्पताल के बिस्तर पर अकेला लेटा था तो मुझे रहस्यमय अनुभूति हुई। लगा अस्पताल की खामोशी तोडते हुए कोई मेरे कानों में फुसफुसा रहा है, धर्मेद्र, तुम मुझ से क्यों डर रहे हो? क्या तुम्हें याद नहीं है कि संघर्ष के दिनों में स्टूडियो के बाहर मैंने ही तुम्हारी उंगली थामी थी? मुंबई के फुटपाथ पर मैं ही तो तुम्हारे बगल में सोई थी। सफल होने के बाद तुम मुझे भूल गए आज सारे तुम्हें छोड गए हैं लेकिन देखो मैं आज भी तुम्हारे साथ हूं। मैं तुम्हें कभी छोडकर नहीं जाऊंगी, हमेशा साथ रहूंगी कौन हो तुम? धर्मेंद्र ने पूछा। मैं तनहाई हूं तुम्हारी दूसरी मां। तुम्हारी मां ने तुझे जन्म दिया, लेकिन मैंने तुम्हें स्टार बनाया।
इस तरह मैंने महसूस किया कि मानव सभ्यता और संस्कृति का ब्रह्मसूत्र है तनहाई। अगर आप इसका नाभि-नाल काट दें तो हमारी सारी कलाएं, संस्कृति और मनोरंजन की चीजें भरभरा कर गिर जाएंगी इसलिए तनहाई जिंदाबाद!

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