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भौमिक होने का मतलब

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-अजय ब्रह्मात्‍मज पिछले मंगलवार को अचानक एक पत्रकार मित्र का फोन आया कि सचिन भौमिक नहीं रहे। इस खबर ने मुझे चौंका दिया, क्योंकि मैंने सोच रखा था कि स्क्रिप्ट राइटिंग पर उनसे लंबी बातचीत करनी है। पता चला कि वे बाथरूम में गिर गए थे। वे अस्पताल में थे। वहां से लौटे तो फिर तबियत बिगड़ी और वे दोबारा काम पर नहीं लौट सके। उनके सभी जानकार बताते हैं कि वे लेखन संबंधी किसी भी असाइनमेंट के लिए तत्पर रहते थे। उनकी यह तत्परता दूसरों की मदद में भी दिखती थी। सचिन भौमिक ने प्रचुर लेखन किया। पिछले पचास सालों में उन्होंने लगभग 135 फिल्में लिखीं। इनके अलावा अनगिनत फिल्मों के लेखन में उनका सहयोग रहा है। हर युवा लेखक की स्क्रिप्ट वे ध्यान से सुनते थे और जरूरी सलाह देते थे। एक जानकार बताते हैं कि उन्होंने दर्जनों स्क्रिप्ट दूसरों के नाम से लिखी या अपनी स्क्रिप्ट औने-पौने दाम में बेच दी। सचिन भौमिक की यह विशेषता थी कि वे किसी भी फिल्म के लेखन में ज्यादा समय नहीं लगाते थे। उनका ध्येय रहता था कि हाथ में ली गई फिल्म जल्दी से पूरी हो जाए तो अगली फिल्म का लेखन आरंभ करें। वे चंद ऐसे लेखकों में शुमार थे, जिनके पास

डायरेक्‍टर डायरी : सत्‍यजित भटकल (16 अप्रैल)

डायरेक्‍टर डायरी – 5 16 अप्रैल 2011 एक हफ्ते के अंदर फिल्‍म रिलीज होगी। पिछली रात फोन आया कि होर्डिंग लग गए हैं। स्‍वाति मुझे और बच्‍चों से कहती है कि हमलोग चलें और बांद्रा वेस्‍ट में लगी होर्डिंग देख कर आए। शाम का समय है और सड़क पर भारी ट्रैफिक है, लेकिन बच्‍चे उत्‍साहित हैं। मेरी बेटी आलो अपना नया कैमरा ले लेती है और हम निकलते हैं। सड़क पर भारी ट्रैफिक है। मेरा बेटा निशांत कार्टर रोड पर बॉस्किन रॉबिंस आइस्‍क्रीम, डूनट आदि खाने की फरमाईश करता है... तर्क है कि हमें सेलिब्रेट करना चाहिए। सड़क की ट्रैफिक में कार के अंदर बहस चल रही है कि होर्डिंग देखने के बाद हम किस आइस‍क्रीम पार्लर जाएंगे। 20वें मिनट पर मैं किसी सुपरहीरो की तरह उड़़ कर होर्डिंग तक पहुंच जाना चाहता हूं। उसे लगा देना चाहता हूं। काश ! ट्रैफिक की भीड़ और कार में प्रतिद्वंद्वी आइस्‍क्रीम पार्लरों पर चल रही बच्‍चों की बहस की गर्मी के बावजूद होर्डिंग की पहली झलक का जादुई असर होता है। सुंदर तरीके से डिजायन की गई होर्डिंग बस स्‍टाप पर लगी है। ‘ बैकलिट ’ रोशनी से चमकीला प्रभाव पड़ रहा है। पब्लिक ट्रांसपोर्ट मुझे कभी इ

एक्शन फिल्म है दम मारो दम

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-अजय ब्रह्मात्‍मज रोहन सिप्पी और अभिषेक बच्चन का साथ पुराना है। 'कुछ न कहो', 'ब्लफ मास्टर' के बाद 'दम मारो दम' उनकी तीसरी फिल्म है। 'दम मारो दम' के बारे में बता रहे हैं रोहन सिप्पी दम मारो दम एक सस्पेंस थ्रिलर है, जिसमें अभिषेक बच्चन पुलिस अधिकारी की भूमिका निभा रहे हैं। उनके साथ प्रतीक बब्बर और राणा दगुबटी भी हैं। फिल्म में बिपाशा बसु की खास भूमिका है, जबकि दीपिका पादुकोण सिर्फ एक गाने में दिल धड़काती दिखेंगी। 'दम मारो दम' को कॉप स्टोरी कह सकते हैं, लेकिन यह एक सस्पेंस थ्रिलर है। हमने एक नई कोशिश की है। फिल्म में तीन कहानिया हैं, जो एक दूसरे से गुंथी हुई हैं। पहली कहानी प्रतीक की है। वह स्टुडेंट है। एक खास मोड़ पर लालच में वह गलत फैसला ले लेता है। उसकी भिड़ंत एसीपी कामत से होती है। फिर अभिषेक की कहानी आती है। वह एक इंवेस्टीगेशन के सिलसिले में बाकी किरदारों से टकराता है। तीसरी कहानी में राणा और बिपाशा की लव स्टोरी है। राणा भी अभिषेक के रास्ते में आता है। हमारी कहानी पूरी तरह से फिक्शनल है। खूबसूरती की वजह से हमने गोवा की पृष्ठभूमि रखी। गोवा की छव

डायरेक्‍टर डायरी : सत्‍यजित भटकल (13 अप्रैल)

डायरेक्‍टर डायरी – 4 13 अप्रैल 2011 कल थोड़ा आराम था। ‘ जोकोमोन ’ के प्रोमोशन के लिए नहीं निकलना था,केवल एक-दो इंटरव्यू हुए टेलीफोन पर। सुबह-सवेरे अंधेरी में स्थित ईटीसी स्‍टूडियो पहुंचे। दर्शील के पास बताने के लिए बहुत कुछ था। टीवी शो ‘ कॉमेडी सर्कस ’ की शूटिंग के किस्‍से...। उससे पूछा गया कि दूसरे सुपरहीरो और उसमें क्‍या अंतर है? उसने चट से जवाब दिया, ‘ मैं अपने कॉस्‍ट्यूम के ऊपर से चड्ढी नहीं पहनता। ’ ‘ और अंदर? ’ सवाल पूछा गया। दर्शील की हंसी रूकने में एक मिनट लगा। ईटीसी के बाद हमलोग जुहू के एक होटल गए। वहां इलेक्‍ट्रानिक मीडिया के सारे इंटरव्यू थे। बैंक्‍वेट रूम में कैमरामैन (सभी पुरुष) एंकर (लगभग सभी लड़कियां) भरे थे। मैं कोई शिकायत नहीं कर रहा हूं। लेकिन टीवी चैनल केवल खूबसूरत लड़कियों को ही क्‍यों चुनते हैं? चैनलों ने परिचित सवाल पूछे – चिल्‍ड्रेन फिल्‍म ही क्‍यों? सुपर‍हीरो की फिल्‍में भारत में नहीं चलतीं, फिर भी सुपर‍हीरो की की फिल्‍म ही क्‍यों? ज्‍यादातर सवाल फिल्‍म की सफलता की संभावनाओं को लेकर होते हैं। जवाब देते समय मैंने महसूस किया कि लिखते समय तो

बचकानी क्यों हो बच्चों की फिल्म- सत्‍यजित भटकल

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- अजय ब्रह्मात्‍मज /रघुवेन्द्र सिंह सत्यजित भटकल पेशेवर वकील थे। आमिर खान ने बचपन के अपने इस मित्र को लगान फिल्म की निर्माण टीम में शामिल किया और सत्यजित की सिनेमा से घनिष्ठता बढ़ती गई। सत्यजित ने लगान फिल्म की मेकिंग पर द स्पिरिट ऑफ लगान पुस्तक लिखी, जो बहुत सराही गई। दर्शील सफारी अभिनीत जोकोमोन सत्यजित भटकल की निर्देशक के तौर पर पहली कामर्शियल फिल्म है जिसमें कहानी है चाइल्ड सुपरहीरो की। 'जोकोमोन' फिल्म का बीज कैसे पड़ा? इसका मुख्य किरदार कुणाल नाम का लड़का है, जिसे दर्शील सफारी प्ले कर रहे हैं। कुणाल अनाथ है। वह चाचा के पास रहता है। अपने स्वार्थ के लिए चाचा बड़े शहर ले जाकर छोड़ देते हैं। वह अकेला महसूस करता है। उसकी केयर करने वाला कोई नहीं है। उस परिस्थिति में वह अपनी स्ट्रेंथ को डिस्कवर करता है। किसी भी इंसान की कमजोरी उसकी लाइफ की सबसे बड़ी स्ट्रेंथ बन सकती है। इस विचार से बीज पड़ा कि क्या होगा, अगर वह लड़का अपनी कमजोरी को ताकत बना ले। क्या हम इसे पूरी तरह से बाल फिल्म कह सकते हैं? जी नहीं। पूरी तरह से भी नहीं और आधी तरह से भी नहीं। मुझे आपत्ति है बाल फिल्म कहने से। कुछ प

बातचीत में आत्‍मकथा ए आर रहमान की

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-अजय ब्रह्मात्‍मज इंटरनेट पर अलग-अलग जानकारियां पढ़ने को मिल जाएंगी कि उनका नाम एआर रहमान कैसे पड़ा और पर्दे की दुनिया से उनके जीवन की सच्ची कहानी क्या है? रहमान बताते हैं कि सच है कि अपना यह नाम उन्हें कभी पसंद नहीं आया और उन्हें इसका कारण भी नहीं मालूम? वह बताते हैं कि बस मुझे अपने नाम की ध्वनि अच्छी नहीं लगती थी। उनके मुताबिक महान अभिनेता दिलीप कुमार के प्रति उनका कोई अनादर नहीं है। उन्हें लगता था कि उनकी खुद की छवि के अनुरूप उनका नाम नहीं था। सूफी मत का अनुकरण करने से कुछ समय पहले वह लोग एक ज्योतिषी के पास बहन की जन्मपत्री लेकर गए थे, क्योंकि मां उसकी शादी कर देना चाहती थी। यह उसी समय की बात है, जब वह अपना नाम बदलना चाहते थे और इस बहाने एक नई पहचान पाना चाहते थे। ज्योतिषी ने उनकी तरफ देखा और कहा, इस व्यक्ति में कुछ खास है। उन्होंने अब्दुल रहमान और अब्दुल रहीम नाम सुझाया और कहा कि दोनों में से कोई भी नाम उनके लिए बेहतर रहेगा। उन्हें रहमान नाम एकबारगी में पसंद आ गया। यह भी एक संयोग ही था कि एक हिंदू ज्योतिषी ने उन्हें यह मुस्लिम नाम दिया था। फिर उनकी मां चाहती थी कि वह अपने नाम में

पाँव जमीं पर नहीं पड़ते मेरे-लारा दत्‍ता

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-अजय ब्रह्मात्‍मज लारा दत्ता के जीवन में उत्साह का संचार हो गया है। हाल ही में महेश भूपति से उनकी शादी हुई है। 16 अप्रैल को उनका जन्मदिन था और इसी महीने 29 अप्रैल को उनके प्रोडक्शन हाउस भीगी बसंती की पहली फिल्म 'चलो दिल्ली' रिलीज हो रही है। उनसे बातचीत के अंश- इस सुहाने मोड़ पर कितने सुकून, संतोष और जोश में हैं आप? हर इंसान की जिंदगी में कभी न कभी ऐसा मोड़ आता है, जब वह खुद को सुरक्षित और संतुष्ट महसूस करता है। मैं अभी उसी मोड़ पर हूं। एक औरत होने के नाते कॅरिअर के साथ यह टेंशन बनी रहती है कि शादी तो करनी ही है। वह ठीक से हो जाए। लड़का अच्छा हो। ग्लैमरस कॅरिअर में आने से एक लाइफस्टाइल बन जाती है। हम खुद के लिए उसे तय कर लेते हैं। कोशिश रहती है कि ऐसा लाइफ पार्टनर मिले, जो साथ चल सके। मैं अभी बहुत खुश हूं। मेरी शादी एक ऐसे इंसान से हुई है, जो मुझे कंट्रोल नहीं करता। मेरे कॅरिअर और च्वाइस में उनका भरपूर सपोर्ट मिलता है। अभी लग रहा है कि मैं सब कुछ हासिल कर सकती हूं। मेरा ऑब्जर्वेशन है कि आपने टैलेंट का सही इस्तेमाल नहीं किया या यों कहें कि फिल्म इंडस्ट्री ने आप को वाजिब मौके नहीं

डायरेक्‍टर डायरी : सत्‍यजित भटकल (10 अप्रैल)

10 अप्रैल अगला पड़ाव पुणे है। बिग सिनेमा में दर्शील को देखने भारी भीड़ आ गई है। उसे सभी ने घेर लिया है। एक स्‍टार का पुनर्जन्‍म हुआ है। मेरे खयाल में प्रेस कांफ्रेंस ठीक ही रहा। ज्‍यादातर मेरी मातृभाषा मराठी में बोल रहे थे। दर्शील और मंजरी भी मराठी बोलते हैं। मंजरी पुणे से है। खास रिश्‍ता है। प्रेस कांफ्रेंस में फिल्‍म से संबंधित सवालों के जवाब देने के अवसर मिलते हैं। बड़ा सवाल है – चिल्‍ड्रेन फिल्‍म ही क्‍यों? ‘ जोकोमोन ’ बच्‍चों के लिए है, लेकिन केवल बच्‍चों के लिए नहीं है। आयटम नंबर नहीं होने, हिंसा नहीं होने और द्विअर्थी संवादों के नहीं होने से किसी फिल्‍म के दर्शक सिर्फ बच्‍चे नहीं हो सकते। दरअसल, ऐसा होने पर मां-बाप और दादा-दादी या नाना-नानी भी अपने बच्‍चों के साथ ऐसी फिल्‍मों का बेझिझक आनंद उठा सकते हैं, जो कि आयटम नंबर आ जाने पर थोड़ा कम हो जाता है। हमने अपनी टेस्‍ट स्‍क्रीनिंग में देखा कि बड़े भी बच्‍चों की तरह फिल्‍म देख कर खुश हो रहे थे। दूसरा सवाल – कोई वयस्‍क दर्शक मुख्‍य भूमिका में बच्‍चे को क्‍यों देखना चाहेगा? बच्‍चे के नायक बनने का मुद्दा इस वजह से

फिल्‍म समीक्षा : 3 थे भाई

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-अजय ब्रह्मात्‍मज किसी फिल्म में रोमांस का दबाव नहीं हो तो थोड़ी अलग उम्मीद बंधती है। मृगदीप सिंह लांबा की 3 थे भाई तीन झगड़ालु भाइयों की कहानी है, जिन्हें दादाजी अपनी वसीयत की पेंच में उलझाकर मिला देते हैं। किसी नीति कथा की तरह उद्घाटित होती कथानक रोचक है, लेकिन भाषा, कल्पना और बजट की कमी से फिल्म मनोरंजक नहीं हो पाई है। चिस्की, हैप्पी और फैंसी तीन भाई है। तीनों के माता-पिता नहीं हैं। उन्हें दादाजी ने पाला है। दादाजी की परवरिश और प्रेम के बावजूद तीनों भाई अलग-अलग राह पर निकल पड़ते हैं। उनमें नहीं निभती है। दादा जी एक ऐसी वसीयत कर जाते हैं, जिसकी शर्तो को पूरी करते समय तीनों भाइयों को अपनी गलतियों का एहसास होता है। उनमें भाईचारा पनपता है और फिल्म खत्म होती है। नैतिकता और पारिवारिक मूल्यों का पाठ पढ़ाती यह फिल्म कई स्तरों पर कमजोर है। तीनों भाइयों में हैप्पी की भूमिका निभा रहे दीपक डोबरियाल अपनी भूमिका को लेकर केवल संजीदा हैं। उनकी ईमानदारी साफ नजर आती है। ओम पुरी लंबे अनुभव और निरंतर कामयाबी के बाद अब थक से गए हैं। उनकी लापरवाही झलकने लगती है। श्रेयस तलपडे को मिमिक्री का

डायरेक्‍टर डायरी : सत्‍यजित भटकल (९ अप्रैल)

9 अप्रैल 2011 11am हम इंदौर आ गए हैं। ‘जोकोमन’ के प्रोमोशन के लिए मेरे साथ मंजरी और दर्शील इंदौर में हैं। हम सभी एमेरल्‍ड हाइट स्‍कूल आए हैं। बड़े शहर वाले गहरी सांस लेते हैं। ऐसा स्‍कूल नहीं देखा। 200 एकड़ की जमीन में फैला स्‍कूल, मैदान, स्‍वीमिंग पुल, क्रिकेट के मैदान, किले की डिजायन में बनी इमारते... बेचारी मुंबई... निर्धन मुंबई। 200 बच्‍चे आदर के साथ खड़े हैं। वाह... बच्‍चों को क्‍या हो गया है? हम उनके आधे भी अनुशासित नहीं थे। ‘जोकोमन’ के गीत पर स्‍कूल के बच्‍चे जोश के साथ नाचते हैं (मेरी लालची आंखों में ऐसे और भी दृश्‍य उभरते हैं) ... एक निर्देशक को और क्‍या चाहिए। दर्शील उनसे मिलता है। हाथ मिलाता है। तस्‍वीरें उतारी जाती हैं। मुझे दर्शील की नैसर्गिक और संतुलित सरलता अच्‍छी लगती है। वह दूसरों को प्रभावित करने की कोशिश नहीं करता। 3pm हमलोग लोकल रेडियो स्‍टेशन माय एफएम आए हैं। मंजरी का माइक गिर जाता है। रेडियो जौकी मजाक करता है, ‘मैम, माइक भी आप पर फिसल रहा है।’ मंजरी खुश है। एक्‍टर एक्‍टर ही रहेंगे। 6pm हम एक बड़े मॉल में आए हैं। भारी भीड़ जमा है। दर्शील के फैन की भीड़ है। एमस