डायरेक्‍टर डायरी : सत्‍यजित भटकल (13 अप्रैल)

डायरेक्‍टर डायरी 4

13 अप्रैल 2011

कल थोड़ा आराम था। जोकोमोन के प्रोमोशन के लिए नहीं निकलना था,केवल एक-दो इंटरव्यू हुए टेलीफोन पर। सुबह-सवेरे अंधेरी में स्थित ईटीसी स्‍टूडियो पहुंचे। दर्शील के पास बताने के लिए बहुत कुछ था। टीवी शो कॉमेडी सर्कस की शूटिंग के किस्‍से...। उससे पूछा गया कि दूसरे सुपरहीरो और उसमें क्‍या अंतर है?

उसने चट से जवाब दिया, मैं अपने कॉस्‍ट्यूम के ऊपर से चड्ढी नहीं पहनता।

और अंदर? सवाल पूछा गया।

दर्शील की हंसी रूकने में एक मिनट लगा।

ईटीसी के बाद हमलोग जुहू के एक होटल गए। वहां इलेक्‍ट्रानिक मीडिया के सारे इंटरव्यू थे। बैंक्‍वेट रूम में कैमरामैन (सभी पुरुष) एंकर (लगभग सभी लड़कियां) भरे थे। मैं कोई शिकायत नहीं कर रहा हूं। लेकिन टीवी चैनल केवल खूबसूरत लड़कियों को ही क्‍यों चुनते हैं?

चैनलों ने परिचित सवाल पूछे चिल्‍ड्रेन फिल्‍म ही क्‍यों? सुपर‍हीरो की फिल्‍में भारत में नहीं चलतीं, फिर भी सुपर‍हीरो की की फिल्‍म ही क्‍यों? ज्‍यादातर सवाल फिल्‍म की सफलता की संभावनाओं को लेकर होते हैं। जवाब देते समय मैंने महसूस किया कि लिखते समय तो न तो मैंने और न मेरे सहयोगी लेखक लैंसी और स्‍वाति ने इसके बारे में सोचा था... सही या गलत... हम तो कंसेप्‍ट से उत्‍साहित थे। क्‍या होगा जब किसी व्‍यक्ति की कमजोरी ही उसकी ताकत बन जाए... और हम ने उसी पर काम किया। जोकोमोन का जो भी प्रतिसाद मिले, हम खुशी है कि हम अपने विचार पर कायम रहे।

प्रेस कांफ्रेंस में अनुपम खेर जोश में थे। उन्‍होंने जोकोमोन मास्‍क पहन लिया और दबाव डाला कि दर्शील, मंजरी और मैं भी पहन लूं। मैं चिंतित हूं... हमलोग अपनी फिल्‍म का मजाक बना रहे हैं क्‍या? हमलोग कहीं जोकोमोन का रहस्‍य तो नहीं मिटा रहे हैं? पर अनुपम को मना नहीं किया जा सकता। उन्‍हें 400 फिल्‍मों का अनुभव है।

मुझ पर भरोसा करो, वे कहते हैं। अगर आप विश्‍वास के साथ कुछ करेंगे तो दुनिया उसे मानेगी। मैं उनकी बात मान लेता हूं, लेकिन मेरी दुविधा बनी रहती है।

अगले दिन जोकोमोन के मास्‍क में सभी की छवियां चैनलों पर तैर रही हैं। दोस्‍तों फोन कर के बताते हैं कि उन्‍हें बहुत मजा आया।

मैं सीख रहा हूं।

Comments

Jay Ram JI said…
Kafi kuchh sikhneon ko mila. Aise hum dayri phadnon walon me se ek hai.

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