‘खूबसूरत’ में टोटल रोमांस है-सोनम कपूर


-अजय ब्रह्मात्मज
-‘खूबसूरत’ बनाने का आइडिया कहां से आया?
इन दिनों फैमिली फिल्में नहीं बन रही हैं। पहले की हिंदी फिल्में पूरे परिवार के साथ देखी जाती थीं। अब ऐसा नहीं होता। ऐसी फिल्में बहुत कम बन रही हैं। इन दिनों फिल्मों में किसी प्रकार का संदेश भी नहीं रहता। राजकुमार हीरानी की फिल्म वैसी कही जा सकती है। अभी कंगना रनोट की ‘क्वीन’ आई थी। ‘इंग्लिश विंग्लिश’ को भी इसी श्रेणी में डाल सकते हैं।
-कम्िरर्शयल फिल्मों के साथ कलात्मक फिल्में भी तो बन रही हैं?
मुझे लगता है कि इन दिनों मसाला फिल्मों के अलावा जो फिल्में बन रही हैं, वे डार्क और डिप्रेसिंग र्हैं। उनमें निगेटिव किरदार ही हीरो होते हैुं। एंटरटेनिंग फिल्मों के लिए मान लिया गया है कि उनमें दिमाग लगाने की जरूरत नहीं हैं। बीच की फिल्में नहीं बन रही हैं। इस फिल्म का ख्याल यहीं से आया।
-इस फिल्म का फैसला किस ने लिया? आप बहनों ने या पापा(अनिल कपूर) ने?
पापा इस फैसले में शामिल नहीं थे। उन्होंने टुटू शर्मा से फिल्म के अधिकार लिए । रिया और शशांक के साथ मिल कर मैंने यह फैसला लिया।
-क्या ‘खूबसूरत’ की रेखा की कोई झलक सोनम कपूर में दिखेगी?
हो ही नहीं सकता। मैं तो सोच भी नहीं सकती। हमलोगों ने कहानी बदल दी है। आइडिया वहीं से लिया है, लेकिन कहानी आज की है। हमें आज के दर्शकों का ख्याल रखना होगा। हमारी पीढ़ी के दर्शकों ने ‘खूबसूरत’ देखी ही नहीं है।
-फवाद खान इस फिल्म में कैसे आए?
रिया ने उन्हें चुना। ‘जिंदगी गुलजार है’ सीरियल से दर्शकों ने अभी उन्हें जाना, लेकिन इंडस्ट्री के लोग पहले से जानते थे। सच्ची,फवाद के लिए लोग पागल हैं। आजकल के अभिनेताओं में कोई भी पुरूष नहीं है। चालीस साल की उम्र तक वे लडक़े ही बने रहते हैं। उन्हें तमीज नहीं होती है। नजाकत या तहजीब नहीं है उनमें। फवाद की भाषा इतनी साफ है। मुझे लगता है कि जब पाकिस्तान के एक्टर इतनी साफ ंिहंदी बोल सकते हैं तो यहां के एक्टर क्यों नहीं बोल पाते?
-यह तो बड़ा सवाल कि हिंदी फिल्मों के एक्टर क्यों साफ हिंदी नहीं बोल पाते?
अभी तो बहुत सारे एक्टर खासकर अभिनेत्रियां ऐसी हैं, जो भारतीय नहीं हैं। मैंने तो फिल्मों में आने के पहले उर्दू सीखी। बारहवीं तक मैंने हिंदी पढ़ी है। मुझ से कोई हिंदी में बात ही नहीं करता तो मैं क्या करूं? भाषा तो अभ्यास और व्यवहार की चीज है। मेरे पिता के परिवार में सभी हिंदी में बातें करते हैं। उनकी हिंदी पर पंजाबी का असर है। हिंदी फिल्मों में हिंदुस्तानी चलती है। मुझे लगता है कि मेरा उच्चारण ठीक है। फवाद के साथ मेरी हिंदी-उर्दू अच्छी हो गई।
-पुरानी ‘खूबसूरत’ से यह फिल्म कितनी अलग है?
पहली ‘खूबसूरत’ रोमांटिक फिल्म नहीं थी। यह टोटल रोमांस है। मिडिल क्लास की लडक़ी है मिली। वह इस परिवार में बुलायी जाती है। यहां उसका प्रेम हो जाता है। उसे पता चलता है कि माहौल की वजह से ही राजा साहब बीमार हैं।  उनकी बीमारी मनोवैज्ञानिक है। वह घर का माहौल बदलती है।
-अनिल कपूर प्रोडक्शन की कमान आप दोनों बेटियों के हाथों में है क्या?
प्रोडक्शन रिया संभालती है। मैं तो एक्टर हूं। मुझे सैलरी मिलती है। मैंने कह दिया था कि क्रिएटिव प्रोड्यूसर बनाओगी तो मैं एक्टर नहीं रह पाऊंगी। अगर फिल्म में काम करवाना है तो प्रोडक्शन की जिम्मेदारी मत दो। वैसे भी पूरी फिल्म मेरे कंधे पर है। ऐसा लगता है कि आसान काम होगा, लेकिन सच कहूं तो कामेडी करना बहुत मुश्किल काम है। हमेशा हाई एनर्जी रखनी पड़ती है। आंसू बहाना आसान है। हंसते रहना तो बहुत मुश्किल है।
-दिल्ली के मेरे युवा मित्र ने आग्रह किया है कि सोनम अपनी हंसी नहीं फिसलने दें। यह आप की खासियत है?
बिल्कुल ख्याल रखूंगी। आप दिल्ली के दोस्त से पूछना कि मेरा दिल्ली के लहजे का उच्चारण कैसा लगा? सही था न? आप मुझे बताना। हंसना तो मेरा स्वभाव है। लोगों के बीच रहने पर मैं हंसती ही रहती हूं। कई बार दोस्त मना करते हैं कि इतना मत खिलखिलाया करो।
-आप शोज और फंक्शन में एक्टिव नहीं दिखती? क्या बात है?
मैं शोज नहीं करती और न ही शादियां अटेंड करती हूं। मुझे भी पैसे कमाने हैं। कोई बताए कि कैसे कमाऊं? यहां पर अच्छे कंसेप्ट के साथ शोज नहीं करते।
-फिल्म के निर्देशक शशांक के बारे में क्या कहेंगी?
वे दिखने में गंभीर हैं, लेकिन बहुत फन लविंग हैं। मुझे पता था कि वे इस फिल्म को अच्छी तरह पेश करेंगे। मेरा एक ही आग्रह था कि इसे बंगाली फिल्म मत बना देना और न आर्ट फिल्म की तरह डार्क कर देना। उनकी वजह से फिल्म समृद्ध हो गई है।
-और कौन सी फिल्में कर रही हैं?
‘डॉली की डोली’ कर रही हूं। इसे उमाशंकर सिंह ने लिखा है। फिल्म के निर्देशक अभिषेक डोगरा हैं। मेरे साथ राजकुमार राव, वरुण शर्मा,पुलकित सम्राट और जीशान हैं। मेरे फेवरिट जीशान हैं। सलमान खान के संग ‘प्रेम रतन धन पायो’ कर रही हूं। सूरज बडज़ात्या के निर्देशन में फिल्म काम करना स्वंय में एक बड़ी उपलब्धि है।
-सुना था कि अनिल जी की वजह से यह फिल्म आप को मिली?
अगर मेरा पापा ऐसा कर सकते तो मेरे पास ऐसी अनेक फिल्में होतीं। सिफारिश से ऐसी फिल्में मिल सकती हैं क्या? सूरज जी ने तो पापा के साथ कभी भी काम नहीं किया। उनकी औपचारिक मुलाकातें भी हैं। मेरा चुनाव अक्टूबर 2013 में ही हो गया था। उसके बाद अलग-अलग हीरोइनों के लिए जाने की खबरें आती रहीं। मैं उन सब खबरों को पढ़ कर हंसती रहती थी। सूरज जी ने किसी प्रकार की घोषणा नहीं की थी। वे स्वयं बताना चाहते थे। फिल्म देखने के बाद आप को पता चलेगा कि मैं इस रोल के लिए क्यों चुनी गई?
आप के एक प्रशंसक का सवाल है कि वहीदा रहमान की कौन सी फिल्म आप को पसंद है?
मेरी फेवरिट फिल्म ‘गाइड’ है। उस फिल्म मेें वह खूबसूरत और प्रभावशाली लगी हैं।

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न्यूज़ द्वारा ब्लॉगर सम्मान से सम्मानित करने पर आपको हार्दिक बधाई!

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