इरफान की अनौपचारिक बातें



इरफान ने इस बातचीत में अपनी यात्रा के उल्‍लेख के साथ वह अंतर्दृष्टि भी दी है,जो किसी नए कलाकार के लिए मार्गदर्शक हो सकती है। चवन्‍नी पर इसे तीन किस्‍तों में प्रकाशित किया जाएगा। इरफान के बारे में आप की क्‍या राय है ? आप उन्‍हें कैसे देखते और समझते हैं ? अवश्‍य लिख्‍ें chavannichap@gmail.com
-अजय ब्रह्मात्मज
सीखते-सीखते यहां तक तो आ गया। मैंने जो प्रोफेशन चुना है,वह मेरे मकसद और लक्ष्य के करीब पहुंचने के लिए है। उसमें मदद मिले तो ठीक है। बाकी शोहरत,पैसा,नाम...य़ह सब बायप्रोडक्ट है। यह सब तो मिलना ही था। यह सब भी मिल गया। इनके बारे में सोच कर नहीं चला था। जयपुर से निकलते समय कहां पता था कि कहां पहुंचेंगे? अभी पहुंचे भी कहां हैं। सफर जारी है। मुझे याद आता है एक बार बेखयाली में मैंने मां से कुछ कह दिया था। थिएटर करता था तो मां ने परेशान होकर डांटा था ...य़ह सब काम आएगा क्या? मैंने अपनी सादगी में कह दिया था कि आप देखना कि इस काम के जरिए मैं क्या करूंगा? मेरे मुंह से निकल गया था और वह सन्न होकर मेरी बात सुनती रह गई थीं। उन्हें यकीन नहीं हुआ था। तब यह मेरा इरादा था। पता नहीं था कि कैसे होगा ...क्या होगा? हर मां तो ऐसे ही परेशान रहती है। उन्हें लगता है कि हम वक्त बर्बाद कर रहे हैं। उन्होंने जो दुनिया नहीं देखी है,उसमें जाने की बात से ही कांप जाती हैं। अपने देश में हर मां-बाप की चिंता रहती है कि बच्चे कैसे और कब कमाने लगेंगे? कब अपने पांव पर खड़े हो जाएंगे। यह बच्चों और मां-बाप दोनों के लिए कैद है। वे बच्चों से पहले डरने लगते हैं कि उनका क्या होगा? इस चक्कर में वे बच्चों को एक्सप्लोर करने का मौका नहीं देते। मेरे बेटे ने अभी कहा कि मुझे फिजिक्स के बदले एनवॉयरमेंट साइंस पढऩा है? मैंने पूछा ,क्यों बदलना चाहते हो? आगे जाकर क्या करोगे? उसका जवाब था,मुझे नहीं मालूम। उसने यह भी बताया कि बाकी बच्चों को मालूम है कि उन्हें क्या करना है? मुझे नहीं मालूम है। मैं उसे यह नहीं कह सकता कि तुम्हें पता होना चाहिए। मुझे नहीं पता था कि थिएटर करने से क्या होगा? उसे नहीं पता कि एनवॉयरमेंट साइंस पढऩे से क्या होगा? मुझे तो इतना ही लगता है कि आप जो भी करें,उसे रुचि से करें। बाकी जिंदगी तय करेगी। बिल्कुल नई दुनिया में प्रवेश कर सकेंगे। मेरा अपना शहर ही मेरे लिए छोटा पड़ गया था। हम अपने माहौल से बड़े हो जाते हैं। हमारे सपने शहर में नहीं समा पाते।
        अभी सिनेमा बदल गया है। करने लायक कुछ फिल्में मिल जाती हैं। अगर पिछली सदी के अंतिम दशक जैसा ही चलता रहता तो माहौल डरावना हो जाता। हमें कुछ और सोचना पड़ता। सिनेमा संक्रमण के दौर में है। निर्देशकों की नई पौध आ गई है। वे ताजा मनोरंजन ला रहे हैं। दर्शक भी उन्हें स्वीकार कर रहे हैं। उनसे हमारी दुकान चल रही है। अगर यह बदलाव नहीं होता तो हम अभी भी कैरेक्टर एक्टर कर रहे होते। प्रतिदिन के हिसाब से यानी दिहाड़ी पर काम कर रहे होते। ढेर सारे पुराने एक्टर दिहाड़ी पर काम करने लगे थे। कहने लगे थे ... भाई हमें दिन के हिसाब से दे दो। किसी कलाकार के लिए वह डरावनी स्थिति है। हमारी बिरादरी में कुछ लोगों को दिहाड़ी में ही किक मिलता है। मेरे  लिए अगर मैं खुद को एवं दर्शकों को सरप्राइज न करूं तो मजा नहीं आता। हमारा मुख्य उद्देश्य एंटरटेन करना है। उसके साथ आप कितनी चीजें लेयर में डाल दो। विदेशों में देखें क्रिस्टोफर नोलन एंटरटेनिंग फिल्में बनाते हैं,लेकिन उसके अंदर कैसा फलसफा डालते हैं। आप समझ सकते हैं कि दुनिया में क्या हो रहा है? दुनिया से उस फिल्म का कनेक्शन क्या है? सारी चीजें मिल रही होती हैं। उस तरह का एंटरटेनमेंट हमारे यहां नहीं है। मुझे उम्मीद है कि हो जाएगा। हम उस दिशा में बढ़ रहे हैं। अभी पूरी दुनिया का समागम तेजी से हो रहा है। लंचबॉक्स तो इसी समागम का उदाहरण है। उसकी लोकप्रियता की एक वजह है कि उसमें इतने देशों के तकनीशियन साथ आए। इतनी प्रतिभाओं ने साथ काम किया। डायरेक्टर रितेश बत्रा का विजन सही तरीके से बाहर आया।
        आप देखिएगा अभी अनेक एक्टर आएंगे। लोग मेरा नाम लेते रहते हैं,लेकिन जल्दी ही तादाद बढ़ेगी। हमारे एक्टर हालीवुड में भी काम करेंगे। मेनस्ट्रीम हालीवुड की फिल्मों में भी हमारी मांग बढ़ेगी। अफसोस है कि हिंदी का कमर्शियल सिनेमा अभी तक इन प्रतिभाओं को जगह नहीं दे पा रहा है। उनका इस्तेमाल नहीं कर पा रहा है। हिंदी सिनेमा एकपरतीय,लाउड और मेलोड्रामैटिक बना हुआ है। सभी लकीर के फकीर बने हुए हैं। अच्छी बात है कि कम ही सही लेकिन दूसरी तरह का सिनेमा भी बन रहा है। उन्हें दर्शक पसंद कर रहे हैं। वे सफल भी हो रही हैं। हां,अभी वैसी फिल्मों की सफलता का प्रतिशत बहुत कम है। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में हम एक्टर कम ही खप पाते हैं। सब कुछ पॉपुलर स्टार पर आश्रित और केंद्रित है।
        मेरे करिअर को देखें तो वॉरियर मुझे तोहफे के रूप में मिला था। सालों की तपस्या का फल था। उन दिनों मैं सीरियल कर रहा था। एकरसता से ऊब चुका था। कुछ फिल्में की थीं,लेकिन उनमें नोटिस नहीं हो पाया था। टीवी और फिल्मों को लेकर मेरा असंतोष खौल रहा था। पक रहा था। बेचैनी थी। मुझे लगता है कि कुछ नया होने के पहले की बेचैनी थी। वॉरियर मेरे रास्ते में आ गई। सच कहूं तो वह फिल्म मुझे परोस कर दी गई थी। मैं ऑडिशन के लिए जाने को तैयार नहीं था। तिग्मांशु धूलिया ने फोर्स किया। उसने कहा कि तू जाकर खाली मिल ले। मैं गया। कमरे में घुसा और कुछ हो गया। एहसास हुआ कि यह कुछ स्पेशल है। निर्देशक आसिफ कपाडिय़ा के साथ अपनी पसंद की फिल्मों की बातें चल रही थीं। इस बातचीत में ही तारतम्य बैठ गया। उसने मुझे फिल्म का एक सीन पढऩे के लिए दिया। वह मुझे झकझोर गया। फिर प्रोड्यूसर से बात हुई। मैंने इतना ही कहा था कि इस फिल्म में कुछ मैजिक है। वह क्यों निकला मेरे मुंह से मुझे पता नहीं। उसके बाद भी कुछ नहीं हुआ। बताया गया था कि फिल्म कान फिल्म समारोह में जाएगी। कुछ अन्य गतिविधियां भी होनी थीं। यह 2001 की बात होगी। उसका कोई ठोस नतीजा नहीं दिखा।
        इस बीच हिंदी फिल्मों में मेरी स्थिति कुछ ठीक हो गई थी। हासिल आ गई थी। कुछ और फिल्में मिल गई थीं। फिर मीरा नायर की नेमसेक आई। वह फिल्म मुझे मिली। बिल्कुल अलग किरदार था। मुझे प्रौढ़ बंगाली का किरदार निभाना था। मैंने वह चांस लिया। मुझे पहले अंदाजा नहीं था कि मेरा किरदार प्रधान हो जाएगा। मुझे लगता था कि वह काल पेन की फिल्म है। उन्होंने गोगोल का किरदार निभाया था। मीरा ने कुछ इस तरीके से एडिट किया कि मैं मेन लीड हो गया। नेमसेक फेस्टिवल में घूम रही थी। तब्बू फिल्म के साथ जा रही थीं। मुझे नहीं बुलाया जाता था। मैंने खीझ कर मीरा को एक पत्र भी लिखा कि मुझे पता ही नहीं चल रहा कि मैं क्या कर रहा हूं? उन्हीं दिन न्यू यॉर्क में एक शो हुआ। आदित्य भट्टाचार्य ने वहां फिल्म देखी। मैंने उन्हें फोन करके पूछा कि क्या लग रहा है? आदित्य ने बताया कि फिल्म खत्म होने पर एक ही कैरेक्टर याद रह जाता है और वह तुम्हारा कैरेक्टर है। मैंने कहा कि यह तो मैजिक हो गया। फिर उसके बाद कुछ अवार्ड भी मिले। इस फिल्म के बाद फिर से सब कुछ ठहर गया।
क्रमश: 

Comments

Picture Pandey said…
बॉलीवुड को मनोरंजन प्रधान माना जाता है परन्तु दक्षिण भारत की फिल्मे बेहतर मनोरंजक और भारतीय होती है . बॉलीवुड हॉलीवुड की कॉपी करना चाहता है पर अपने हीरो हीरोइन की बदौलत. एक्टर को भाव कौन देता है. धीरे धीरे आता ये बदलाव ही कुछ उम्मीद देता है
nidhi said…
behad intezar agli kdi ka...

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