दरअसल : शॉर्ट फिल्‍मों के बढ़ते प्‍लेटफार्म

-अजय ब्रह्मात्‍मज

पिछले दिनों यशराज फिल्‍म्‍स के बैनर तले वाई फिल्‍म्‍स ने छह शॉर्ट फिल्‍मों के एक पैकेज की जानकारी दी। इसके तहत प्रेम से संबंधित छह शॉर्ट फिल्‍में पेश की जाएंगी,जिनमें सुपरिचित कलाकार काम करेंगे। हालांकि इनके लेखन और निर्देशन से कुछ नई प्रतिभाएं जुड़ी हैं,लेकिल यशराज फिल्‍म्‍स के बैनर की वजह से यह पैकेजिंग आकर्षक हो गई। पैकेजिंग को आकर्षक बनाने के लिए हर शॉर्ट फिल्‍म के साथ एक म्‍यूजिक वीडियो भी जोड़ा गया। अच्‍छा प्रचार हुआ। सभी पत्र-पत्रिकाओं ने इस पर ध्‍यान और कवरेज दिया। यशराज फिल्‍म्‍स की वजह से यह रिलीज चर्चा में रही। अगर इन शॉर्ट फिल्‍मों के कंटेंट की बात करें तो वह बहुत संतोषजनक रहा। प्रचार के अनुरूप इसके दर्शक नहीं बने।
अगर थोड़ा अलग ढंग से विचार करें तो यशाराज फिल्‍म्‍स की यह  पहल कुछ नए संकेत दे रही है। माकेटिंग और बिजनेस के क्षेत्र में देखा गया है कि छोटी कोशिशों की चर्चा और कामयाबी को बड़ी कंपनियां हथिया लेती हैं। उन्‍हें बड़े स्‍तर पर बाजार में भेजती हैं और ट्रैडिशनल ग्राहकों को कंफ्यूज करने के साथ ही कुछ नण्‍ ग्राहक तैयार करती हैं। अंतिक प्रभाव में ऐसी कोशिशें किसी शगूफे या घटना से अधिक महत्‍व नहीं रखतीं। बड़े शहरों और महानगरों में फाइव स्‍टार होटल साल में एक-दो बार स्‍ट्रीट फूड के फेस्टिवल करती हैं। उनका इरादा अपने नियमित ग्राहकों को स्‍ट्रीट फूड का स्‍वाद और माहौल देना होता है। कभी ऐसे फेस्टिवल में स्‍ट्रीट फूड चखने का मौका मिला हो तो आप ने पाया होगा कि उनका स्‍वाद गलियों,चौराहों और बाजारों के स्‍वाद का मुकाबला नहीं कर पाता। कुछ ऐसा ही यशराज फिल्‍म्‍स की शॅर्ट फिल्‍मों के साथ हुआ। कलाकारों और मेकिंग की आकर्षक पैकेजिंग के बावजूद यह प्रयास दर्शकों को लुभाने में सफल नहीं रहा। अभी यह समाप्‍त नहीं हुआ है,लेकिन इसके लोकप्रिय होने की संभावना नहीं दिख रही है।
दरअसल,शॉर्ट फिल्‍में लघु पत्रिकाओं की तरह युवा और नई प्रतिभाओं का सामूहिक प्रयास होती हैं। शॉट्र फिल्‍मों की वर्त्‍तमान लोकप्रियता के पहले युवा निर्देशकों को टीवी ऐसा प्‍लेटफॉर्म दे रहा था। अभी के ज्‍यादातर पॉपुर निर्देशक इसी रास्‍ते से आए हैं। पिछले दशे के अंत से शॉर्ट फिल्‍मों के अनेक प्‍लेटफॉर्म वजूद में आए हैं। यू ट्यूब और अन्‍य वीडियों प्‍लेटफॉर्म इसमें भारी मददगार हो रहे हैं। अभी तो शॉर्ट फिल्‍मों के फेस्टिवल भी आयोतजत हो रहे हैं। कतिपय लोकप्रिय कलाकार अपने खाली समय का उपयोग ऐसी फिल्‍मों में करते हैं और खुद को मांजते हैं। युवा निर्देशकों के लिए यह कारगर जरिया है। वे अपनी प्रतिभा,योग्‍यता और क्षमता का परिचय ऐसी छोटी फिल्‍मों से देते हैं। और फिर फीचर फिल्‍म का मौका पाते हें। पिछले साल उभरे निर्देशक नीरज घेवन का उदाहरण सामने हैं। अभी तो कारपोरेट के अधिकारी,स्‍टूडियों और स्‍थापित कलाकार भी युवा निर्देशकों को शॉर्ट फिल्‍मों के माध्‍यम से अपना नमूना पेश करने की हिदायत देते हैं।
यकीनन,शॉर्ट फिल्‍मों के प्‍लेटफार्म बढ़ गए हैं। कम लागत और निवेश से शॉर्ट फिल्‍में तैयार होती हैं। सही पेशगी हो जाए तो उनकी चर्चा होती है। माना जाता है कि ऐसे निर्देशक फीचर फिल्‍में भी कर सकते हैं। यह कुछ-कुछ उपन्‍यास लिखने के पहले की वैसी तैयारी है,जब लेखक कहानियों में हाथ आजमाता है। अगर उसे सराहना और तारीफ मिलती है तो बड़े फलक पर कुछ लिखता है। फिल्‍मों की क्रिएटिव दुनिया में मौका पाना और खुद के लिए जगह बना लेना आसयान नहीं होता। शॉर्ट फिल्‍मों की लोकप्रियता से एक और फायदा होगा कि छोटे शरों और कस्‍बों की कहानियां भी ग्‍लोबल स्‍तर पर देखी जा सकेंगी। उनमें से जो बेहतर होंगी,वे बाद में फीचर फिल्‍म का भी रूप ले सकती हैं। हां,बीच-बीच में बड़े खिलाड़ी युवा प्रतिभाओं के इस खेल में भंडोल पैदा करने आते रहेंगे।

Comments

bhushanpal said…
बहुत खूब, सर

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