बना रखा है बैलेंस - रिचा चड्ढा



-अजय ब्रह्मात्‍मज
रिचा चड्ढा लगातार वरायटी रोल कर रही हैं। पिछले साल ‘मसान’ ने उन्हें अंतरराष्‍ट्रीय ख्‍याति दी। अब वे ‘सरबजीत’ लेकर आ रही हैं। वे इसमें नायक सरबजीत की बीवी की भूमिका में हैं। इसके बाद इसी महीने उनकी ‘कैबरे’ भी आएगी।

-दोनों फिल्मों में कितने दिनों का अंतर है?
जी एक हफ्ते के। पहले सरबजीत आएगी। वैसे देखा जाए तो पहले कैबरे आने वाली थी। लेकिन फिल्म का काम शुरू नहीं किया गया था। फिर रिलीज डेट आगे कर दी गई है?

 -कैसे देख रही हैं सरबजीत को। नायक की भूमिका में ऱणदीप हुड्डा ने तो सारा खेल अपनी तरफ कर लिया है?
हम जिसे देखते हैं हम उन्हीं की बात करते रहते हैं। असल में जबकि जो बैकड्रॉप में होते हैं, वे वस्तु विशेष के बैक बोन होते हैं। दुर्भाग्य यह है कि उनकी बातें कम होती है। यह किसी भी फील्ड में हो सकता है।
 
वैसे आप के किरदार का नाम क्या है? साथ ही इस किरदार को कैसे देखती हैं आप?
उसका नाम सुखदीप है कैरेक्टर क्रिएशन के लिए मैं सुखदीप को ज्यादा तंग नहीं करना चाहती थी। यह 2011- 12 के आस-पास की घटना है। अभी भी उस महिला का दर्द ताजा ही है। वह खुल कर इस पर बात नहीं कर सकती है। हम शूटिंग से पहले उससे मिल नहीं पाए। मैंने खुद से उस किरदार के सेंस को बना लिया था। अमूमन जैसी गाव की महिलाएं होती हैं। प्रैक्टिकलअक्सर घर के काम में व्यस्त यह जरूरी नहीं है कि उसे बाकी के काम आते हो सुख्‍दीप वैसी ही है। हां मैं जब पंजाब में शूटिंग करने गई तो सुखदीप मुझ से मिलने आ। वह बीच सड़क पर मुझे पकड़ कर रोने लगी। मैंने उन्हें थोड़ी देर पकड कर रखा है। मैं समझ गई कि उसके लिए अब भी ज्यादा कुछ बदला नहीं है।

-और सरबजीत की बहन दलबीर किस सोच-अ्प्रोच की लगीं।   
दलबीर पढ़ी-लिखी हैं। उन्हें पत्र लिखना और कागजी कामों की जानकारी थी। लोगों के पास जाना उसके लिए आसान था। बहन तो प्रसिद्ध हो गई है। वह थोड़ी लाउड भी हैं। सुखदीप शांत और रियल महिला हैं। फिल्म में एक पाइंट के बाद पती चला जाता है तो उसकी ताकत खत्म हो जाती है। यह ताकत लौट कर नहीं आती है। इतने सालों में वह सरबजीत से एक ही बार मिल पाई थी।

-यानी सुखदीप पाकिस्तान सरबजीत से मिलने गई थी?
जी, लाहौर गई थी। उनकी प्रेम कहानी बहुत प्यारी है। सरबजीत उनको जेल में से पत्र लिखा करता था। उनसे कहता कि तैयार होकर रहना। लाली लगाकर रहना बहुत लंबे पत्र हैं। कभी वक्त मिले तो इन पत्रों को सार्वजनिक करन चाहिए। उसमें लिखा था कि छोटी बेटी का नाम यह रखना। तब मैं शायद रह नहीं पाऊंगा। जब वह अपने गांव गया था तो छोटी बेटी कुछ डेढ महीने की थी। ऐसी कई चीजें लिखी जैसे तुम जिस चांद को देखती हो उसे मैं भी देखता हूं। 

-ओह, यानी बिल्कुल फिल्मी प्यार।
जी एक दम प्यारा व प्योर फिल्म में हम ने इसे डालने की कोशिश की है। जैसे मियां-बीवी का साथ में मिलकर भैों को नहलाना। मुझे ह बहुत अच्छा लगा। मुझे वह महिला बहुत मजबूत लगी। त्रासदी होने से पहले तो वह एकदम तीखीमजाकिया मिजाज की थीं। घर में जैसा परिवार होता है। बड़ा सा परिवार। उस तरह से मैंने किरदार को बनाया है। सरबजीत की भूमिका में ऱणदीप का काम बहुत अच्छा है। वे किरदार में घुस गए हैं। उम्मीद है कि वह ज्यादा किरदार में घुस ना जाएं। पागल है वो।

गैंग्स ऑफ  वासेपुर के बाद दूसरा ऐसा रोल है, जहां आप फिर से मां की भूमिका में हैं।
जीयहां तो थोड़ा बेहतर है। लेकिन वहां ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ में तो नवाज मेरे बेटे बने थे। असल में जबकि वह मेरी उम्र से कितने बड़े हैं। मुझे इसमें भी मजा आया। इसमें मैं पंजाबी महिला का किरदार निभा रहा हूं। साथ ही मुझे पंजाब को एक्सप्लोर करने में मजा आया।

- पंजाब को किस तरह लिया आप ने ?
आमतौर पर तो पंजाब में सेट कहानी बॉर्डर और बंटवारे को लेकर होती है। यह पंजाब के लिए जो मायने रखते हैं, वह देश के किसी शहर के लिए मायने नहीं रखता। कश्मीर का कनफिल्क्ट अलग है। पंजाब में हम जाएं तो लगेगा कि हम जमीन के टुकड़े के लिए लड़ रहे हैं। एक जमीन है। कुछ के खेत इस तरफ है तो कइयों के उस तरफ बीच में लाइन है। आर्मी वाले खड़े हैं, पर दोनों तरफ सरसो के ही खेत लहरा रहे हैं। सब-कुछ एक जैसा ही है।

-क्योंकि मौसम के हिसाब से फसल होती है। वह तो एक जैसी ही होगी।
जी बिल्कुल। कई लोग तो ‘नो मेन्स लैं में भी खेती करते हैं। उन लोगों को अपनी आइडी कार्ड यानी पहचान पत्र दिखा कर बॉर्डर पार करना पड़ता है। विभाजन मेरे हिसाब से बहुत बड़ी साजिश थी। अभी भी देखें दुनिया साजिशों के जंजाल से घिरी हुई है। आप ने सद्दाम हुसैन को हटाकर ऐसे हालात पैदा कर दिए हैं कि उसका खामियाजा पूरी दुनिया भुगत रही है।  आतंकवाद उसका भी नतीजा है। सका सामना दुनिया कर रही है। भारत और पाकिस्तान का क्या है। यह दोनों जिदंगी भर लड़ते रहेंगे। यह बौि‍द्धक विमर्श के लिए तो पेचीदा विषय है। इसे करीब से समझने के लिए भी मैं इस फिल्‍्म से जुड़ी। मेरे ख्‍्याल से अपनी जिंदगी में कुछ यादगार फिल्में भी करनी चाहिए। ताकि दस या बीस साल बाद भी वह फिल्म देखने योग्य हो।

- सुखदीप जरा सायलेंट सा किरदार लग रहा है।
मैंने उसके साइलें का ग्राफ बनाया है। पहले यह किरदार साइलेंट नहीं है। बाद में हो जाती है। इसमें भी अपना मजा है। पूरे समय दलबीर अपनी छाती ठोक कर बात करती है। क्योंकि वह रियल लाइफ में वैसी है। ऐश्वर्या ने ओवर एक्टिंग नहीं की है। वे वैसी ही है। आप को समय मिले तो दलबीर को गुगल करना। अब पीआर वाले और नेता उनके दोस्त हो गए हैं। उन लोगों को सरबजीत की मौत के बाद देखा जाएं तो बहुत फायदा हुआ। उनके परिवार को पब्लिकसिटी मिली। राजनीतिक पार्टियों से समर्थन मिला। उनका घर बन गया। मगर परिवार में दर्द तो है। बहन को भी दर्द है। कहानी का क्रियान्वयन सब तारीख के हिसाब से सुनियोजित थी15 अगस्त को यह होता है। 26 जनवरी को ह होता है। आप को फिल्म में सकी झलक मिलेगी। बहुत बढि़या फिल्म बनी है। हां यह मसान जैसी नहीं हैयह कमर्शियल स्पेस में है। जैसे राजकुमार संतोषी की फिल्में होती थी। र्डर’ जैसी, जहां राष्‍ट्रवाद भी है। वह साथ ही कमर्शियल भी है। जैसे भाग मिल्खा भाग‘सरबजीत’ मुझे इस तरह के जोन की लगत है।
 
ऐसी फिल्मों में सेकेंडरी रोल लेने में दिक्कत नहीं होती है, क्योंकि अभी रिचा इंडस्ट्री में प्रभाव बना रही हैं।
जी मैं आ बिल्कुल गई हूं, पर अभी भी रोल अच्छा नहीं मिल रहा है। सरबजीत में मेरा कोई छोटा रोल नहीं है। या ऐसा किरदार नहीं है जो कि अनदेखा रह जा एक लव स्टोरी है इसमें। अच्छी सी लव स्टोरी थी। मुझे लगा कि यह रखना चाहिए। कुल मिलाकर मुझे लगा कि यह किरदार किया जा सकता है। इस वजह से मैंने किया। वहीं मैं बैलेंस भी कर रही हूं।जल्द कैबरे भी आ जाएगी। यह दूसरी छोटी फिल्म है। इसमे मैं आगे हूं। ऐसी तीन –चार फिल्में होगी तो एकध ऐसी फिल्म करने में कोई दिक्कत नहीं है। मैं केवल यही करूंगी तो दिक्कत हो जाएगी।

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