दरअसल : चित्रगुप्‍त की जन्‍म शताब्‍दी



दरअसल....
चित्रगुप्‍त की जन्‍म शताब्‍दी
-अजय ब्रह्मात्‍मज
2017 हुनरमंद संगीतकार चित्रगुप्‍त का जन्‍म शताब्‍दी वर्ष है। इंटरनेट पर उपलब्‍ध सूचनाओं के मुताबिक उन्‍होंने 140 से अधिक फिल्‍मों में संगीत दिया। बिहार के गोपालगंज जिले के कमरैनी गांव के निवासी चित्रगुप्‍त का परिवार अध्‍ययन और ज्ञान के क्षेत्र में अधिक रुचि रखता था। चित्रगुप्‍त के बड़े भाई जगमोहन आजाद चाहते थी। उनका परिवार स्‍वतंत्रता आंदोलन से भी जुड़ा था। कहते हैं चित्रगुप्‍त पटना के गांधी मैदान की सभाओं में हारमोनियम पर देशभक्ति के गीत गाया करते थे। बड़े भाई के निर्देश और देखरेख में चित्रगुप्‍त ने उच्‍च शिक्षा हासिल की। उन्‍होंने डबल एमए किया और कुछ समय तक पटना में अध्‍यापन किया। फिर भी उनका मन संगीत और खास कर फिल्‍मों के संगीत से जुड़ रहा। आखिरकार वे अपने दोस्‍त मदन सिन्‍हा के साथ मुंबई आ गए। उनके बेटों आनंद-मिलिंद के अनुसार चित्रगुप्‍त ने कुछ समय तक एसएन त्रिपाठी के सहायक के रूप में काम किया। उन्‍होंने पूरी उदारता से चित्रगुप्‍त को निखरने के मौके के साथ नाम भी दिया। आनंद-मिलिंद के अनुसार बतौर संगीतकार चित्रगुप्‍त की पहली फिल्‍म तूफान क्‍वीन थी। इंटरनेट पर फाइटिंग हीरो का उल्‍लेख मिलता है। यों दोनों ही फिल्‍मेंब 1946 में आई थीं।
एसएन त्रिपाटी के संरक्षण से निकलते पर चित्रगुप्‍त ने आरंभ में स्‍टंड और एक्‍शन फिल्‍मों में संगीत दिया। संगीतकार एसडी बर्मन ने उनका परिचय दक्षिण के एवीएम से करवा दिया। इस प्रोडक्‍शन के लिए उन्‍होंने अनेक धार्मिक और सामाजिक फिल्‍मों में संगीत दिया। दिग्‍गज संगीतकारों के बीच मुख्‍यधारा की फिल्‍मों में जगह बनाने में उन्‍हें देर लगी। हाशिए पर मिले कुछ मौकों में ही उन्‍होंने अपना हुनर जाहिर किया। उनके गीत पॉपुलर हुए। समीक्षकों और संगीतप्रेमियों ने उनकी तारीफ भी की। हालांकि 1946 से चित्रगुप्‍त को स्‍वतंत्र फिल्‍में मिलने लगी थीं,ले‍किन उन्‍हें सिंदबाद द सेलर से ख्‍याति मिली। इस फिल्‍म में उन्‍होंने अंजुम ज्‍यपुरी और श्‍याम हिंदी के लिखे गीतों को शमशाद बेगम,मोहम्‍मद रफी और किशोर कुमार से गवाया था। इसी फिल्‍म के एक गीत धरती आजाद है में चित्रगुप्‍त ने मोहम्‍म्‍द रफी के साथ आवाज भी दी थी।
16 नवंबर 1917 को बिहार में जन्‍मे चित्रगुप्‍त का निधन मुंबई में 14 जनवरी 1991 को उनके बेटों की फिल्‍म कयामत से कयामत तक आ चुकी थी। उन्‍होंने अपने पापा के नाम और परंपरा को थाम लिया था। चित्रगुप्‍त के करिअर में 1962 में आई भोजपुरी की पहली फिल्‍म गंगा मैया तोहे पियरी चढ़इबो का खास महत्‍व है। इस फिल्‍म के बाद उन्‍होंने अनेक भोजपुरी फिल्‍मों में संगीत दिया। इस उल्‍लेखनीय शिफ्ट से उनके संगीत में भी बदलाव आया। 1962 के बाद की उन्‍की हिंदी फिल्‍मों के संगीत में भी भोजपुरी या यूं कहें कि पुरबिया धुनों और वाद्यों की गूंज सुनाई पड़ती है। चित्रगुप्‍त के संगीत में हिंदुस्‍तान की धरती की भरपूर सुगंध है। हिंदीभाषी इलाके से आने की वजह से उनके निर्देशन में लोकप्रिय गायकों की आवाज में शब्‍दों की शुद्धता के साथ लहजे और उच्‍चारण पर भी जोर दिखता है। वे गीतकारों की भी मदद करते थे। अंतरों में शब्‍दों को ठीक करने से लेकर भावों के अनुकूल शब्‍दों के चयन तक में उनका योगदान रहता था। आज का दौर रहता तो उन्‍हें कई गीतों में गीतकार का भी क्रेडिट मिल जाता।
उम्‍मीद है कि उनकी जन्‍म शताब्‍दी के वर्ष में उनके महत्‍व और योगदान को रेखांकित किया जाएगा। कम से कम बिहार सरकार और वहां की सरकारी व गैरसरकारी फिल्‍म और सांस्‍कृतिक संस्‍थाएं ध्‍यान देंगी। 
बाक्‍स आफिस
दर्शक बढ़े हरामखोर के

समीति बजट से कम लागत में बनी श्‍लोक शर्मा की हरामखोर ने पहले वीकएंड में 1 करोड़ से अधिक का कलेक्‍शन किया। फिल्‍म कारोबार में ऐसी छोटी फिल्‍मों के मुनाफे पर ध्‍यान नहीं जाता। इस लिहाज से हरामखोर कामयाब फिल्‍म है। शुक्रवार को इसका कलेक्‍शन 23.70 लाख था,जो रविवार को बढ़ कर 41.90 लाख हो गया। वहीं शाद अली की फिल्‍म ओक जानू की यह बढ़त मामूली रही। शुक्रवार को ओक जानू का कलेक्‍शन 4.08 करोड़ था,जो शनिवार को 4.90 और रविवार को 4.82 करोड़ हुआ। ओके जानू का वीकएंड कलेक्‍शन 13.80 करोड़ रहा। हां,इस बीच दंगल ने 370 करोड़ का भी आंकड़ा पार कर लिया।
 


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