इस प्रेमकहानी में भूत है - अंशय लाल



अंशय लाल
-अजय ब्रह्मात्‍मज
अनुष्‍का शर्मा की नई फिल्‍म फिल्‍लौरी के निर्देशक अंशय लाल हैं। अनुष्‍का इस फिल्‍म की अभिनेत्री होने के साथ निर्माता भी हैं। अपने भाई कर्णेश शर्मा के साथ उन्‍होंने क्‍लीन स्‍लेट प्रोडक्‍शन कंपनी आरंभ की है। नए विषयों और नई प्रतिभाओं को मौका देने के क्रम में ही इस बार उन्‍होंने अंशय लाल को चुना है।
दिल्‍ली के अंशय लाल ने मास मीडिया की पढ़ाई पूरी करने के बाद कुछ समय तक माडलिंग की। राइजिंग सन की कोपल नैथानी ने उनकी आरंभिक मदद की। कोपल ने ही प्‍यार के साइड इफेक्‍ट निर्देशित कर रहे साकेत चौधरी से मिलवाया। अंशय लाल ने वहां क्‍लैप देते थे। तीन सालों तक वहां काम करने और अनुभव बटारने के बाद सहायकों की टीम के साथ अंशय भी शिमित अमीन की चक दे की टीम में शामिल हो गए। यशराज की एंट्री के बाद नेटवर्क बढ़ता गया। फिर दोस्‍ताना और हाउसफुल में सहायक रहे। इतने समय के अनुभवों के बाद उन्‍होंने ब्रेक लिया और स्क्रिप्‍ट लिखी। तीन स्क्रिप्‍ट लिखी और तीनों पर फिल्‍में नहीं बन सकीं तो एक बार भाई के पास अमेरिका जाने का भी खयाल हुआ। इस बीच ऐसा संयोग बना कि फिल्‍लौरी की शुरूआत हुई और अब 24 मार्च को फिल्‍म रिलीज हो रही है।
फिल्‍लौरी के आयडिया के बारे में पूछने पर अंशय बताते हैं, 2009 की बात है। मेरे एक दोस्‍त की पेड़ से शादी हो रही थी। हम दोस्‍त उसका मजाक उड़ाते थे कि अगर पेड़ में भूत होगी तो तेरी शादी हो जाएगी उससे। यशराज के मनीष शर्मा के यहां मेरी मुलाकात अनुष्‍का के भाई कर्णेश शर्मा से हुई थी। उन्‍हें मैंने कभी यह आयडिया सुनाया था। यह कहानी उनके दिमाग में रह गई। फिर एक दिन उन्‍होंने कहा कि इस पर काम करो। अंशय अपनी दोस्‍त और फिल्‍लौरी की रायटर अन्विता का जिक्र करना नहीं भूलते। उन्‍होंने फिल्‍म लिखी। अनुष्‍का को भी फिल्‍म का आयडिया पसंद आया था। स्क्रिप्‍ट सुनने के बाद वह खुद काम करने के लिए भी राजी हो गईं।
फिल्‍म के लिए फिल्‍लौरी नाम का सुझाव अन्विता ने दिया था। अंशय याद करते हैं, फिल्‍म का नाम अभी फायनल नहीं हुआ था। लोकेशन के लिए हमलोग पंजाब के बरनाला और अमृतसर जिलों में रेकी कर रहे थे। उन्‍होंने कहा था फि सतलज के किनारे बसे फिल्‍लौर चले जाना। तस्‍वीरें ले आना। वहां से उनके बचपन की यादें जुड़ी थीं। धीरे-धीरे हम फिल्‍लौर से प्रेरित होकर फिल्‍लौरी पर टिक गए। फिल्‍लौर के लोगों को फिल्‍लौरी कहेंगे। यह कहानी का हिस्‍सा है।
फिल्‍लौरी में दो पीरियड हैं। एक पीरियड में अनुष्‍का शर्मा और दिलजीत दोसांझ की कहानी है। दूसरे पीरियड में सूरज शर्मा आते हैं। लगभग 100 सालों का अंतर है। अंशय इस बात से ही खुश्‍ा थे कि इस जमाने में रहते हुए उस जमाने की प्रेम कहानी के बारे में सोचने और शूट करने का मौका मिलेगा। अंशय आगे कहते हैं, आम तौर पर भूत की कहानी हॉरर मान ली जाती है। हमारी फिल्‍म की भूत फ्रेंडली है। उसे क्रिएट करने में वीएफएक्‍स की काफी मदद ली गई है। रेड चिलीज के हरि और केतन ने उसे डिजाइन किया है। उनके रिसर्च से हमें सहायता मिली। अनुष्‍का हमेशा सुनहरे कपड़ों में दिखती हैं। उसकी खास वजह है। कथ्‍य के साथ टेक्‍नीक के लिहाज से भी यह फिल्‍म देखने लायक होगी। विशाल सिन्‍हा फिल्‍म के डीओपी हैं। पुराने समय और नए समय का रंग अलग रखने के साथ संतुलन भी रखा गया।
अंशय स्‍वीकार करते हैं कि वीएफएक्‍स के उपयोग के लिहाज से स्क्रिप्‍ट में कई चीजें जोड़ी गईं। वे बताते हैं,वीएफएक्‍स के जरिए हर कल्‍पना को मुमकिन किया जा सकता है।‍ शशि(अनुष्‍का शर्मा) का चरित्र गढ़ने में वीएफएक्‍स टीम के सुझाव से काफी लाभ हुआ। वीएफएक्‍स लेखक की कल्‍पना को विस्‍तार और उड़ान देता है। इस फिल्‍म की ज्‍यादातर शूटिंग ग्रीन स्‍क्रीन पर हुई है।
फिल्‍म की शुरूआत से ही अनुष्‍का शर्मा जुड़ी रहीं,इसलिए उन्‍हें हां करने में देरी नहीं हुई। उन्‍हें फिल्‍म और अपना रोल पसंद था। अंशय पूरी संतुष्टि के साथ कहते हैं,प्रोड्यूसर के ऑन बोर्ड आ जाने से बहुत आसानी हो गई। इस फिल्‍म में दोनों भाई-बहन की पूरी हिस्‍सेदारी रही। अनुष्‍का अभी की चर्चित अभिनेत्री हैं। उनके राजी होने से हमारी जिम्‍मेदारी बढ़ गई। अन्‍य कलाकारों के पूछने पर वे बताते हैं, सूरज शर्मा की फिल्‍म लाइफ ऑफ पाई मैंने देखी थीं। उनका टीवी शो होमलैंड भी देखा था। कर्णेश ने उनका नाम सुझाया। उनसे दिल्‍ली में मुलाकात हुई तो उन्‍हें हमारी फिल्‍म पसंद आई। उनके साथ मेहरीन हैं। दिलजीत दोसांझ की फिल्‍म पंजाब 1984 मुझे बहुत अच्‍छी लगी थी। फिर उड़ता पंजाब आई। अनुष्‍का को उनकी पंजाबी फिल्‍म जट एंड जूलियट फनी और अच्‍छी लगी थी। दिलजीत भी राजी हो गए। उन्‍होंने फिल्‍म की यूनिट के साथ लुक पर मेहनत की।
पंजाब में शुटिंग की दिककते रहीं। समृद्धि आने के बाद पंजाब के गांव बदल गए हैं। फिल्‍लौरी के लिए हमें पुराने किस्‍म का गांव चाहिए था। अंशय बतोत हैं, हमें दानगढ़ ऐसा गांव मिला,जो अभी तक लुक में पुराना है। इस पंचायत के लोगों ने दिल खोल कर मदद की। हम शहरियों को ऐसे व्‍यवहार की आदत नहीं। वहां हर घर के दरवाजे हमारे लिए खुले रहते थे। वे खाने-पीने की चीजें ले आते थे। शूटिंग में किसी प्रकार की अड़चन नहीं हुई

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