दरअसल : फिल्‍मों पर 28 प्रतिशत जीएसटी



दरअसल...
फिल्‍मों पर 28 प्रतिशत जीएसटी
-अजय ब्रह्मात्‍मज
बाहुबली और दंगल की अद्वितीय कामयाबी और 1000 करोड़ से अधिक के कलेक्‍शन के बावजूद भारतीय सिनेमा की आर्थिक सच्‍चाई छिपी हुई नहीं है। बमुश्किल 10 प्रतिशत फिल्‍में मुनाफे में रहती हैं। बाकी फिल्‍मों के लिए अपनी लागत निकाल पाना भी मुश्किल होता है। फिल्‍में अगर नहीं चलती हैं तो उससे जुड़े दूसरे व्‍यापारों को भी नुकसान उठाना पड़ता है। अगर कोई फिल्‍म चल जाती है तो अ के पास के खोमचे वाले की भी बिक्री और आमदनी बढ़ जाती है। फिल्‍मों पर आजादी के पहले से टैक्‍स लग रहे हैं। विभिन्‍न सरकारें अपनी सोच के हिसाब से कर सुधार करती हैं। लंबे समय से फिल्‍म बिरादरी और दर्शकों की मांग रही है कि फिल्‍मों के टिकट पर कर नहीं लगना चाहिए। फिल्‍म व्‍यवसाय को बढ़ाने के लिए यह जरूरी है।
सबसे पहले अंगेजों ने मनोरंजन कर आरंभ किया। फिल्‍मों के प्रदर्शन पर कर लादने के पीछे उनका दोहरा उद्देश्‍य था। उन्‍हें लगता था कि फिल्‍में देखने के लिए दर्शक जमा होते हैं। वहां उनके समूह को ग्रेजों के खिलाफ उकसाया जा सकता है। भीड़ कम करने की गरज से उन्‍होंने फिल्‍मों के प्रदर्शन पर कर लगाए। आजादी के बाद देश की सरकारदने उन्‍हीं करों के प्रावधान का अनुपालन किया। उन्‍होंने कर सुधार किए तो भी दर्शकों पर भार बना रहा। अभी राज्‍य सरकारें अपनी मर्जी और जरूरत के हिसाब से मनोरंजन कर वसूलती हैं। यह कर कहीं 20 प्रतिशत तो कहीं 110 प्रतिशत तक है। फिल्‍म व्‍यवसाय से संबंधित व्‍यक्तियों को लग रहा था कि जीएसटी लागू होन पर राहत मिलेगी।
पिछले दिनों जीएसटी की घोषणा के बाद पता चला कि फिल्‍मों पर यह 28 प्रतिशत होगा। फिल्‍म बिरादरी को इस घोषणा से भारी झटका लगा। जीएसटी की प्रारंभिक बैठकों में फिल्‍म बिरादरी के प्रतिनिधियों ने 5 प्रतिशत जीएसटी की सिफारिश की थी। फिल्‍म बिरादरी की समझ में आ गया है कि सरकार ने उनकी सिफारिशों को ताक पर रख दिया। उन्‍होंने अपनी नई नीति के तहत 28 प्रतिशत जीएसटी लाद दिया। साथ ही फिल्‍मों को जुएबाजी,सट्टेबाजी और घुड़दौड़ की श्रेणी में रख दिया। अभी विभिन्‍न श्रेणियों में 5 प्रतिशत से लेकर 28 प्रतिशत तक जीएसटी का प्रावधान है। फिल्‍म बिरादरी के विरोध और प्रतिरोध के बाद संभावना व्‍यक्‍त की जा रही है कि 3 जून की बैठक में इसमें फेरबदल हो। फेरबदल नहीं हुआ तो फिल्‍म व्‍यवसाय पर कर का भार बढ़ेगा। पहले से ही चरमरायी फिल्‍मों की अर्थ व्‍यवस्‍था टूट सकती है।
तर्क दिया जा रहा है कि अभी मनोरंजन कर में एकरूपता नहीं है। कुछ राज्‍यों में मनोरंजन कर 28 प्रतिशत से ज्‍यादा है। उन प्रदेशों के दर्शकों को राहत मिलगी। गौर करने की जरूरत है कि ज्‍यादातर राज्‍यों में मनोरजन कर 20 से 30 प्रतिशत के बीच है। इन राज्‍यों में टिकटों की कीमत बढ़ जाएगी। इसके साथ ही स्‍थानीय निकाय और सरकारी एजेंसियां कर लगा सकती हैं। वह कर जीएसटी के 28 प्रतिशत के अतिरिक्‍त होगा। ऐसी सूरत में फिल्‍म व्‍यवसाय पर अंदरूनी चोट आएगी। विशेषज्ञ बता रहे हैं कि क्षेत्रीय फिल्‍मों को अधिक नुकसान झेलना पड़ेगा। उन्‍हें दूसरे विकल्‍पों के बारे में सोचना होगा।
दरअसल,वर्तमान सरकार फिल्‍मों के सेंसर से लेकर कर तक के बारे में स्‍पष्‍ट नहीं है। एक ढ़लमुल नीति चल रही है। हो रही मुश्किलों के प्रति सरकार बेपरवाह है। फिल्‍म सेंसर में तो फिल्‍मों में रामभजन नाम रखने तक पर आपत्ति हो रही है। दूसी तरफ करों का बोझ...गरीबी में आटा गीला हो रहा है फिल्‍म इंडस्‍ट्री का। जरूरत है कि भारत के बड़े ब्रांड के तौर पर उभर रहे भारतीय फिल्‍मों के प्रति सरकार उदार रवैया अनपाए और हर तरह की सुविधाएं मुहैया कराए। फिल्‍में सॉफ्ट प्रोडक्‍ट हैं,जो अ‍ार्थिक हित साधने के साथ ही वैचारिक,सामाजिक और राजनयिक भूमिकाएं भी अदा करती हैं। हर मोर्चे पर फिल्‍मों और फिल्‍मी सितारों का इस्‍तेमाल कर रहा समाज इस धारणा से बाहर निकले कि फिल्‍मों में अकूत पैसा है।

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