सिनेमालोक : गेट बचा रहेगा आरके का


सिनेमालोक
गेट बचा रहेगा आरके का
-अजय ब्रह्मात्मज
दो साल पहले 16 सितंबर 2017 को आरके स्टूडियो में भयंकर आग लगी थी. इस घटना के बाद कपूर खानदान के वारिसों में तय किया कि वे इसे बेच देंगे. इसे संभालना, संरक्षित करना या चालू रखने की बात हमेशा के लिए समाप्त हो गई. आग लगने के दिन तक वहां शूटिंग चल रही थी. यह आग एक रियलिटी शो के शूटिंग फ्लोर पर लगी थी. देखते ही देखते आरके की यादें जलकर खाक हो गईं. कोई कुछ भी सफाई दे, लेकिन कपूर खानदान के वारिसों की लापरवाही को नहीं भुलाया जा सकता. स्मृति के तौर पर रखी आरके की फिल्मों से संबंधित तमाम सामग्रियां इस आगजनी में स्वाहा हो गईं. अगर ढंग से रखरखाव किया गया रहता और समय से बाकी इंतजाम कर दिया गया होता तो आग नहीं लगती. आरके स्टूडियो की यादों के साक्ष्य के रूप में मौजूद संरचना, इमारतें,स्मृति चिह्न और शूटिंग फ्लोर सब कुछ बचा रहता.
पिछले हफ्ते खबर आई कि आरके स्टूडियो खरीद चुकी गोदरेज प्रॉपर्टीज कंपनी ने तय किया है कि इस परिसर के अंदर में जो भी कंस्ट्रक्शन हो इसके बाहरी रूप में बदलाव् नहीं किया जाएगा. आरके स्टूडियो का गेट जस का तस बना रहेगा. कहा यह भी जा रहा है कि इस प्रावधान से इस परिसर के दर्शकों, पर्यटकों और रहिवासियों को आरके की याद दिलाता रहेगा. चेम्बूर से गुजर रहे राहगीर इसे अपनी सवारियों से ही देख सकेंगे. पूरा मामला कुछ यूं है कि आरके स्टूडियो की यादों को दरबान बना दिया जाएगा. प्रेम पत्र के लिफाफे में बिजली बिल रखने जैसा इंतजाम है यह. राज कपूर के बेटे रणधीर कपूर ने इस प्रावधान पर खुशी जाहिर की है. राज कपूर के बेटों की मजबूरी रही होगी, लेकिन भारत और महाराष्ट्र सरकार इस दिशा में पहल कर सकती थी. पूरे भूभाग को खरीदकर राज कपूर समेत हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के संग्रहालय के रूप में इसे विकसित किया जा सकता था. अभी पेडर रोड पर फिल्म्स डिवीजन के प्रांगण में भारतीय सिनेमा का राष्ट्रीय संग्रहालय खोला गया है. उसके लिए या एक मुनासिब और यादगार जगह होती’
याद करें तो राज कपूर ने 1948 में आरके स्टूडियो के स्थापना की थी. उस दौर में स्टूडियो सिस्टम का बोलबाला था. इरादों के पक्के राज कपूर ने पहली फिल्म का प्रोडक्शन अपने बैनर से ही किया. उनकी पहली फिल्म ‘आग’ ज्यादा नहीं चल पाई थी, लेकिन दूसरी फिल्म ‘बरसात’ की कामयाबी ने राज कपूर को हौसला दिया. ‘बरसात’ के एक रोमांटिक दृश्य को राज कपूर ने आरके फिल्म्स स्टूडियो का लोगो बना दिया. ‘बरसात’ के उस दृश्य में नरगिस मस्ती भरे अंदाज में राज कपूर की दाहिनी बांह में झूल रही हैं और आज कपूर के बाएं हाथ में वायलिन है. यह युगल दशकों से राज कपूर के प्रशंसकों को लुभाती रही है,
राज कपूर के निधन के बाद उनके तीनों बेटों ने मिलजुल कर स्टूडियो को संभाला. राज कपूर के मशहूर कॉटेज, नरगिस के मेकअप रूम और बाकी स्ट्रक्चर को समय के साथ नया रूप-रंग भी दिया गया. लंबे समय तक बेटे बताते रहे कि वे आरके फिल्म्स के लिए फिल्मों का निर्माण और निर्देशन करेंगे. बेटों ने आरंभिक प्रयासों के बाद कुछ नहीं किया. फिर राज कपूर के पोते रणबीर कपूर मशहूर हुए तो उनसे यह सवाल पूछा जाने लगा कि क्या वे आरके के लिए फिल्मों का निर्माण और निर्देशन करेंगे? रणबीर कपूर ने हमेशा हां कहा, लेकिन कोई निश्चित तारीख या योजना नहीं बताई. मजेदार तथ्य है कि यह सवाल कभी करिश्मा कपूर या करीना कपूर से नहीं पूछा गया. आखिर उत्तराधिकारी तो पुरुष ही होता है? 
आरके स्टूडियो का पटाक्षेप होने के बाद मुंबई में उस दौर के तीन स्टूडियो बच गए हैं. महबूब स्टूडियो, फिल्मिस्तान और फिल्मालय. फिल्मालय का एक हिस्सा मॉल और कुछ हिस्सा अपार्टमेंट में तब्दील हो चुका है. फिल्मिस्तान में बदलाव हुआ है. महबूब स्टूडियो पर भी दबाव है. सूचना और प्रसारण मंत्रालय को निजी पहल से इन स्टूडियो के रखरखाव और संरक्षण की व्यवस्था करनी चाहिए. हम एक-एक कर अपनी फिल्म विरासत को नष्ट करते जा रहे हैं. दरअसल, भारतीय समाज और सरकार के पास फिल्मी विरासत के संरक्षण और संभाल की कोई स्कीम ही नहीं है.



Comments

Ashwani Singh said…
सरकार के साथ साथ इस बम्बई शहर के भी बड़े नामचीन लोगों को इन विरासत को संजोने के लिए कैम्पेन चलाना चाहिए।

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