सिनेमालोक : मल्टीप्लेक्स की गुहार और धौंस


सिनेमालोक
मल्टीप्लेक्स की गुहार और धौंस
-अजय ब्रह्मात्मज
कोविड-19 का सबसे पहला असर सिनेमाघरों पर दिखा था. केरल और जम्मू के सिनेमाघरों के बंद होने के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी सिनेमाघरों को बंद करने के आदेश दे दिए थे. उसके बाद तो एक-एक कर सभी राज्यों ने सिनेमाघर बंद किए और फिर पूर्णबंदी की घोषणा हो गई. सिनेमाघर बंद हैं और नई फिल्में रिलीज नहीं हो सकतीं. इस बार ईद का मुबारक मौका भी फिल्म इंडस्ट्री को नहीं मिल पाएगा. सलमान खान और अक्षय कुमार की फिल्में ईद पर आने के लिए जूझ रही थीं. पूर्णबंदी के हालात में इन फिल्मों की रिलीज के कोई आसार नहीं हैं.
फिल्म इंडस्ट्री में घबराहट फैल रही है. पिछले कुछ समय से सुगबुगाहट जारी है. रिलीज के लिए तैयार फिल्मों के निर्माता ओटीटी प्लेटफॉर्म के अधिकारियों से बातें कर रहे हैं. कुछ फिल्मों के प्रसारण की समझदारी अंतिम चरण में है. इसकी भनक लगते ही मल्टीप्लेक्स के मालिक सक्रीय और सचेत हो गए हैं. उन्होंने संयुक्त विज्ञप्ति जारी की है. पहले तो वे गुहार कर रहे थे. फिल्म निर्माताओं से उनका आग्रह था कि वे धैर्य से काम लें और इंतजार करें. पूर्णबंदी समाप्त होने पर प्रशासकीय आदेश से सिनेमाघर जरूर खुलेंगे. फिर उनकी फिल्में रिलीज हो जाएंगी. उनकी गुहार में कोई ठोस आश्वासन नहीं था, क्योंकि किसी को नहीं मालूम कि पूर्णबंदी समाप्त होने के बाद भी क्या स्थिति रहेगी? संकेत मिल रहे हैं कि दबाव और जरूरत के मुताबिक पूर्णबंदी में थोड़ी-थोड़ी ढील दी जाएगी. इस ढील में सिनेमाघर अभी प्राथमिकता सूची में नहीं हैं.
गुहार के बाद मल्टीप्लेक्स के मालिक धमकी और चेतावनी के स्वर में आ रहे हैं. पिछले दिनों ऐसी खबरें आई थीं कि ओटीटी प्लेटफार्म पर जाने वाले निर्माताओं के लिए भविष्य में थियेटरों में आना आसान नहीं होगा... यानी जो निर्माता अभी ओटीटी प्लेटफार्म पर जाएंगे, उनकी फिल्मों को भविष्य में मल्टीप्लेक्स मालिक तंग कर सकते हैं. उन्हें स्क्रीन नहीं दे सकते हैं. पिछले कुछ सालों में मल्टीप्लेक्स मालिकों का व्यवहार में धौंस बढ़ती गई है. छोटे और मझोले निर्माताओं को वे तंग करते ही रहे हैं. बड़े और प्रतिष्ठित निर्माताओं से भी लाभ के बंटवारे पर उनका विवाद होता रहा है. पूर्णबंदी के बाद बढ़ रही निराशा में यह धौंस बदसूरत हो रही है. वे फिल्म स्टारों को आगाह करते हुए बता रहे हैं कि ओटीटी प्लेटफार्म पर जाना उनके लिए सही फैसला नहीं होगा. सवाल उठता है कि आखिर कब तक निर्माता अपनी फिल्मों को सेते रहेंगे? बड़े निर्माता तो फिर भी अपनी फिल्मों पर कुंडली मारकर बैठ सकते हैं. छोटे और मझोले निर्माताओं की आर्थिक मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं. वे और इंतजार नहीं कर सकते.
भारत में मल्टीप्लेक्स संस्कृति के विकास के समय से मल्टीप्लेक्स मालिकों ने सरकार से मिलने वाली छूटों का पूरा लाभ उठाया और दर्शकों का भरपूर शोषण किया. टिकट और स्नैक्स के दर की मनमानी बढ़ोतरी पर सवाल उठते रहे हैं. फिर भी मल्टीप्लेक्स मालिकों के रवैए में नरमी नहीं दिखी. इनके मालिकों ने कुछ इलाकों में ही थिएटर बनाए. खासकर मध्यवर्गीय और उच्च मध्यवर्गीय दर्शकों का ख्याल रखा. फिल्मों के चवन्नी छाप आम दर्शकों को हाशिए पर डाल दिया गया. उनके लिए सस्ते टिकट दर के सिनेमाघर नहीं खुले. मल्टीप्लेक्स मालिकों ने जोड़-तोड़ से अपने इलाकों के सिंगल स्क्रीन थिएटरों को किनारे किया. आसपास के थिएटर में जाने वाले दर्शकों को याद करें तो पाएंगे कि इनमें निम्न और निर्धन दर्शकों का प्रवेश अघोषित रूप से वर्जित हो चुका है. महानगरों और शहरों के आम दर्शक फिल्में देखने के लिए मुख्य रूप से मोबाइल ही इस्तेमाल करते हैं. वे वैध-अवैध तरीके से नई फिल्में जुटाते हैं. इधर पूर्णबंदी के दौर में विकल्प की तलाश में सामान्य दर्शक भी दूसरे प्लेटफार्म पर खिसक रहे हैं. ऐसे में मल्टीप्लेक्स गुहार लगाने के साथ दर्शकों को याद दिला रहे हैं कि फिल्म में सामूहिक दर्शन-प्रदर्शन की चीज है. इसका आनंद समूह में साथ देखने में ही आता है. आज उन्हें सिनेमा के सामूहिक आनंद की सुधि आई है, जबकि उन्होंने व्यवस्थित तरीके से मल्टीप्लेक्स को आम दर्शकों की पहुंच से लगातार दूर किया है.
यह देखना रोचक होगा कि पूर्णबंदी के बाद मल्टीप्लेक्स और दर्शकों का रिश्ता क्या रूप लेता है? एक बात तो तय है कि वैक्सीन आने तक दर्शक पूर्ण सुरक्षित महसूस नहीं करेंगे. सिनेमाघर खुलने पर भी उधर का रुख करने में वे हिचकेंगे.

Comments

आपने स्थिति का सही आंकलन किया है। वैसे मेरा मानना है कि इस धौंस का असर बड़े सितारों पर कम ही होगा क्योंकि वो सोने की मुर्गी हैं। मल्टीप्लेक्स मालिकों उनको तो ज्यादा कुछ नहीं करेंगे क्योकि वो लॉकडाउन के बाद भी पैसा कमाएंगे। हाँ, ऐसे सितारे जो इतना पैसा नहीं बना पाते उन्हें जरूर परेशान कर सकते हैं। वैसे मुझे भी यह मल्टीप्लेक्स कल्चर पसंद नहीं रहा है और इसी कारण मैंने हॉल में फिल्म देखना काफी पहले छोड़ दिया था। वहाँ फिल्म देखना बहुत महंगा पड़ता है। अगर मल्टीप्लेक्स वाले समूह में फिल्म देखने की बात करते हैं तो उन्हें पता होना चाहिए के आजकल बड़ी टीवी और होम थिएटर ने यह काम घर में करना भी मुमकिन कर दिया है। दोस्त लोग इकट्ठा होते हैं और अपनी बड़ी स्क्रीन पर फिल्म या सीरीज देखते हैं। यह अनुभव थिएटर से बेहतर होता है क्योंकि इधर ऐसे तत्व नहीं होते जिनके वजह से थिएटर में सिनेमा देखना अक्सर परेशानी भरा होता है। बाकी आगे होगा क्या यह देखना तो बनता है।
बहुत सटीक स्थिति का आकलन. स्थिति सामान्य होने पर भी लोग सिनेमाघर जाने से बचेंगे. ऐसे में मल्टीप्लेक्स के मालिकों को नए विकल्प ढूँढने होंगे, ताकि आम लोग भी सिनेमा हॉल जा सकें और सुरक्षित तरीके से देख सकें.

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