चवन्नी का किस्सा

अच्छा है अं।प पढ रहे हैं.बस यही गुजारिश है कि मेरे नाम को चवन्नी छाप उच्चारित न करें. मैं चवन्नी चैप हूं. चवन्नी छाप समूहवाचक संज्ञा है. कभी दरशकों के ख।स समूह को चवन्नी छ।प कह। ज।त। थ।.अ।ज के करण जौहर जैसे निरदेशक चवन्नी छाप को नहीं जानते. हां , विधु विनोद चोपड। ज।नते हैं,लेकिन अब वे चवन्नी छ।प दरशकों के लिए फिल्में नहीं बनाते.सिरफ विधु विनोद चोपड। ही क्यों...इन दिनों किसी भी निरदेशक को चवन्नी छ।प दरशकों की परवाह नहीं है.वैसे भी ब।ज।र में जब चवन्नी ही नहीं चलती ताे चवन्नी छ।प दरशकों की चिंता कोई क्यों करे ...मुंबई में केवल बेस्ट के बसों में चवन्नी चलती है.कंडक्टर मुंबई के बस यात्रियों को चवन्नी वापस करते हैं और बस यात्री फिर से कंडक्टर को किराए के रूप में चवन्नी थम। देते हैं.

आज के हमारे परिचित पाठक चवन्नी मे बारे में ठीक से नहीं जानते.चलिए हम अपने अतीत के बारे में बता दें.चवन्नी का चलन तब ज्यादा थ।,जब रुपए में सोलह अ।ने हुअ। करते थे और चार पैसों का एक अ।न। होता थ।.तब रुपए में केवल चौंसठ पैसे ही होते थे.देश अ।ज।द हुआ तो बाजार की सुविधा और एकरूपता के लिए रुपए के सौ पैसे किए गए तो चवन्नी की कीमत बढ़कर पच्चीस पैसे हो गई.महंगाई की मार और मुद्रा के अवमूल्यन ने पैसों को बोलच।ल से भी बाहर कर दिया.सरकारी हुक्म से नय। पैस। चलने लग।.फिर किसी को लगा कि पैस। तो पैस। होता है...उसके न।त में नय। य। पुराना क्या...तो फिर से पैस। चलन में अ। गय।,लेकिन चवन्नी और अठन्नी ब।जार में 25 पैसे और 50 पैसों में तब्दील हो गई.
रही चवन्नी छ।प दरशकों की ब।त तो सिनेमाघरों में परदे के सबसे नजदीक बैठने व।ले दरशकों के दीरघ। का टिकट चवन्नी में मिला करत। थ।.म।न। ज।त। थ। कि इस दीरघ। में बैठे दरशक सिनेमा के अ।म दरशक होते हैं और चूंकि वे सभी चवन्नी का टिकट लेते है,इसलिए उन्हें चवन्नी छ।प संज्ञ। दे दी गई.इसी समूह से निकला व्यक्ति है चवन्नी चैप...अ।प इसे चवन्नी चैप ही पुक।रें.

Comments

changnni chap kya hota hai isase vaha sabhi vaakif hote hain jinhone chavanni ledhi hai.
SHASHI SINGH said…
ये पढ़कर चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थिरक गई जिसे हमारे भोजपुरी में चवनिया मुस्कान कहते हैं :)
Ankit Mathur said…
सर अपने आप को खुशगवार समझता हूं
कि मैने कई बार पिता जी से चवन्नी
लेने के लिये जाने क्या क्या नही किया है।
उनकी सिगरेट के पैकेट से बचे पैसों मे से मै अकसर चवन्नी बचा लिया करता था।
चवन्नी की पतंग और मांझे के लिये कई दफ़ा तो
झूठ का भी सहारा लेना पडता था।
चलिये आपने बता दिया।
I will keep in mind that you
are a Chavanni Chap, and not Chhap.
Regards
अंकित माथुर ...
Unknown said…
chavanni ki mahima aprampaar. chavanni ka itihaas padh kar purane dino ki yaad taza ho aaye. us waqt ekanni, doanni aur paanch paise bhi chala karte the. aaj chavanni chodiye athanni aur rupaia bhi nahi chalta. bbate zaroor hoti hain. kabhi kabhi chavanni chaap ki to kabhi aap jaise chavanni chap ki.
achcha hai likhte rahen.
Anonymous said…
हम तो आज तक चवन्नी छाप समझ कर हंसते रहे और ख़ुश होते रहे। यार ये चवन्नी चैप अच्छा फ़्यूज़न है। तुम्हारे लेख पढ़ कर अच्छा लगता है।

तेजेन्द्र
VIMAL VERMA said…
क्या बात है ... अजयजी चवन्नीछाप से आपने बढिया अलटी पलटी कर दिया.चलिये आपके इस चवन्नी चैप को सलाम करता हूं..आपने चवन्नियां दर्शकों अच्छी सुध ली है..

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