शुक्रवार, 28 सितंबर, 2007

इस हफ्ते श्रीराम राघवन की 'जॉनी गद्दार' और मनीष तिवारी की 'दिल दोस्ती एट्सेट्रा' फिल्में रिलीज हो रही हैं. श्रीराम राघवन की पिछली फिल्म 'एक हसीना थी' चवन्नी ने देखी थी. उस फिल्म से ही लगा था कि श्रीराम राघवन में पॉपुलर सिनेमा और थ्रिलर की अच्छी समझ है. अ।पको याद होगा कि अपने छोटे नवाब के एटीट्यूड में भी इसी फिल्म से बदलाव अ।या था, जिसकी परिणति 'ओमकारा' के लंगड़ा त्यागी में हुई. एक्टर को एक्टिंग से परिचित कराने का काम समर्थ डायरेक्टर करते रहे हैं. हृषीकेष मुखर्जी, गुलजार, महेश भट्ट जैसे फिल्मकारों ने समय-समय पर एक्टरों को नयी छवि दी और उन्हें खिलने के नए अ।याम दिए. धर्मेंद्र, राजेश खन्ना, संजय दत्त, जीतेन्द्र, हेमामालिनी, डिंपल कपाड़िया अ।दि एक्टरों की फिल्मों से डायरेक्टर के योगदान के इस पहलू को चवन्नी ने समझा.
बहरहाल, श्रीराम राघवन की 'जॉनी गद्दार' थ्रिलर फिल्म है. एक ऐसा थ्रिलर , जिसमें दर्शकों को मालूम है कि गद्दार कौन है? लेकिन दर्शक भी उसकी अगली हरकत से चौंकते हैं. कहते हैं, श्रीराम राघवन ने बेहद चुस्त फिल्म बनायी है. चवन्नी को अजय ब्रह्मात्मज की समीक्षा का इंतजार है.
दूसरी फिल्म 'दिल दोस्ती एट्सेट्रा' के निर्देशक मनीष तिवारी हैं. मनीष तिवारी पटना से चले और फिर दिल्ली से विदेश होते हुए मुंबई पहुंचे. अध्ययन, शोध और सामाजिक बदलाव में विशेष रुचि रखाने वाले मनीष तिवारी को मुंबई में प्रकाश झा की संगत या यों कहें की कंपनी मिल गयी. प्रकाश झा उनकी फिल्म के निर्माता हैं. 'दिल दोस्ती एट्सेट्रा' वास्तव में देश में मौजूद विभिन्न सोव और विचाराधाराओ की टकराहट की फिल्म है. चवन्नी चाहेगा कि मनीष तिवारी की अपनी बातें यहां पेश करे. उन्होंने इस फिल्म के संबंध में अपने विचार 'पैशन फॉर सिनेमा' पर प्रगट किए हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय की पृष्ठभूमि पर बनी 'दिल दोस्ती एट्सेट्रा' एक स्तर पर राजनीतिक फिल्म है. चवन्नी ऐसे फिल्मकारों क। समर्थक है, जो समाज और राजनीति से अपनी फिल्मों में दो-चार होते हैं. हमारे दृष्टिकोण में फर्क हो सकता है, लेकिन दृष्टि समाज पर होनी चाहिए.
26 सितंबर को देव अ।नंद की पुस्तक 'रोमांसिंग विद लाइफ' दिल्ली में मनमोहन सिंह ने विमोचित की. अगले दिन 27 सितंबर को मुंबई में फिर से विमोचन हुअ।. इस बार विमोचक अमिताभ बच्चन थे और इस विमोचन समारोह में अनेक फिल्मी हस्तियां अ।ई थीं. चवन्नी भी उनकी मौजूदगी में रोमांचित हुअ।, लेकिन उसे एक ही सवाल सालता रहा कि देव अ।नंद तो हिंदी फिल्मों के स्टार हैं, फिर उन्होंने अपनी अ।त्मकथा अंग्रेजी में क्यों लिखी? क्या कोई चीनी एक्टर अपनी अ।त्मकथा अंग्रेजी में लिखेगा? या कोई अमेरिकी एक्टर हिंदी में अपनी अ।त्मकथा प्रकाशित करेगा ? चवन्नी को ऐसे सवाल परेशान करते हैं.

Comments

Anonymous said…
प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि अमिताभ को किताब के विमोचन के लिये बुलाया गया.. मगर देव साहब ने उनको बोलने का मौका बिलकुल ही नहीं दिया.. ना मंच से, ना ही पत्रकारों से.. क्या ये अच्छा नहीं होता कि अमिताभ, देव साहब के बारे में कुछ कहते..

आप वहां थे.. क्या आपने इस बात पे गौर नहीं किया?

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