ऑस्कर के लिए मारामारी


ऑस्कर के लिए परेशान हैं सभी.चवन्नी की समझ में नहीं आ रहा है कि विदेशी पुरस्कार के लिए एेसी मारामारी क्यों चल रहीं है?याद करें तो ऑस्कर पुरस्कारों की विदेशी भाषा श्रेणी की नामांकन सूची में लगान के पहुंचने के बाद सभी भारतीय फिल्मकारों को लगने लगा है कि उनकी फिल्म इस प्रतियोगिता के लिण अवश्य भेजी जानी चाहिए.अस साल एकलव्य भेजी जा रही है या यों कहें कि भेजी जा चुकी है,लेकिन धर्म की निर्देशक भावना तलवार को लगता है िक एकलव्य के निर्माता निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा ने अपने प्रभाव से अपनी फिल्म को चुनवा लिया.फिल्म इंडस्ट्री तो क्या हर क्षेत्र में इस तरीके के मैनीपुलेशन चलते हैं.
आइए,आाप को किस्सा सुनाते हैं.ऑस्कर के नियमों के मुताबिक हर देश से एक फिल्म िवदेशी भाषा श्रेणी के पुरस्कार के लिए भेजी जा सकती हैणयमं तो हर साल एक फिल्म जाती है,लेकिन लगान के नामांकन सूची में पहुंचने के बाद फिल्म इंडस्ट्री और आम लोग इस पुरस्कार के प्रति जागरूक हुए.भारत से फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया ही ऑस्कर के लिए भेजी जाने वाली फिल्म का चुनाव करती है.इस कार्य के लिए एक ज्यूरी बनायी जाती है.इस ज्यूरी में फिलहाल मुंबई के ज्यादा सदस्य हैं.इस वजह से हर साल हिंदी फिल्म का पलड़ा भारी रहता है.दक्षिण भारत की प्रमुख चार भाषाओं मलयालम,तेलुगु,जमिल और कन्नड़ को सही प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाता.बंगाली,उड़िया,असमिया और अन्य भाषाओं के निर्देशकों को मालूम ही नहीं हो पाता कि कब चयन प्रक्रिया अारंभ हुई?एक समस्या यह भी है कि िनर्दशक चाहता है,लेकिन निर्माता यत्किंचित कारणों से रुचि नहीं लेता.अब जैसे कि लोग और अनुराग कश्यप चाहते थे कि उनकी फिल्म ब्लैक फ्रायडे जाती,लेकिन निर्माता की लापरवाही से फिल्म जमा ही नहीं की गयी.
विवाद के ठोस कारण हैं.एक तो ज्यूरी के गठन और उनके चयन में पारदर्शिता नहीं है.सभी को लगता है कि चयन की प्रक्रिया पारदर्शी होने के साथ ही सही ढंग से सूचित की गयी हो.एक विचार यह भी आ रहा है कि हर साल राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त श्रेष्ठ फिल्म को ही ऑस्कर के लिए भेजा जाए.
इस साल की फिल्मों का तो आलम यह है कि एकलव्य और धार्मर् को दर्शकों ने नकार दिया था.दोनों दुहाई दे रहे हैं कि उनकी फिल्मों की विदेशामं में खूब सराहना हुई थी और हो रही है.आाप बताएं...आप क्या सोचते हैं?

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