शुक्रवार ७ सितंबर

चवन्नी ने तय किया है कि आज से हर शुक्रवार को वह मुम्बई की फिल्म इंडस्ट्री में चल रही चर्चाओं और बदलती हवा के रुख़ की जानकारी आप को देगा.कल देर रात चवन्नी 'धमाल' के प्रीमियर से लौटा.मुम्बई के अंधेरी उपनगर के पश्चिमी इलाक़े में कई मल्टीप्लेक्स आ गए हैं.वहीँ फिल्मों के प्रीमियर हुआ करते हैं.वैसे प्रीमियर तो अब नाम भर ही रह गया है.ना वो पहले जैसा ताम-झाम बच गया है और ना लाव -लश्कर राग गया है.प्रीमियर पैसे बचाने का साधन बन गया है।खैर,कल रात 'धमाल' के प्रीमियर में संजय दत्त आये थे.एक तरह से कहें तो उनके जमानत पर छूटने की खुशी में ही इस प्रीमियर का आयोजन हुआ था.अगर आप को याद हो तो उनकी गिरफ्तारी के समय कई कार्यक्रम रद्द कर दिए गए थे.संजय दत्त आये थे.उन्होने काली बंडी पहन रखी थी.आप ने देखा होगा कि वह झूम कर चलते हैं.कल रात उनकी चाल में पुराना जोश नही था.कानून,जेल और सजा से लोग टूट जाते हैं.संजय के साथ जो हुआ और हो रह है उस पर फिर कभी.'धमाल' चवन्नी के ख़्याल से पहली हिंदी फिल्म है,जिस में कोई हीरोइन नही है.इसके पोस्टर पर भी मर्द ही मर्द हैं.है ना अजूबी बात.लेकिन इसका मतलब यह ना लगाएं कि इस में कोई मर्दाना बात है.चार बेवकूफ हैं और उनकी बेवकूफियां हंसाती हैं.इन्द्र कुमार ने कुछ भी नया नही किया है.संजय दत्त परदे पर भी थके-थके दिखते हैं.यह मौका है ...वे थोडा आराम करें और अपने कैरियर के बारे में भी सोचें.संजय अपने पिता से भी साधारण ऐक्टर हैं.हां,इस फिल्म में अरसद वारसी और रितेश देशमुख ठीक लगे हैं.हंसी आती है.कुछ चुटकुले और हंसी-मजाक के पल हैं.लेकिन हो सकता है फिल्म देख कर सिनेमाघर से बहार आते-आते आप सब भूल जाये.आजकल यही होता है।राम गोपाल वर्मा कि हिम्मत देखिए.अभी '...आग' के खिलाफ भड़का लोगों का ग़ुस्सा ठंडा भी नही हुआ था कि वे 'डार्लिंग' कहने चले आये.भूत की यह कहानी डराती नही है.चवन्नी को तो रामू कि सोच पर हंसी आ रही है.क्या सोच कर उनहोंने ऐसी उलजलूल फिल्म बनायीं.रामू कि साधारण फिल्मों कि लिस्ट बढती जा रही है।इस हफ्ते कि संवेदनशील फिल्म 'अपना आसमान' है.आप इसे जरूर देखें और अगर आपके आसपास कोई एह बच्चा हो तो उसे समझने कि कोशिश करें.'अपना आसमान' मनोरंजक फिल्म नही है,लेकिन यह बोर नही करेगी.इरफान और शोभना के अभिनय के लिए भी इसे देख सकते हैं.इस फिल्म के कुछ दृश्य मर्मान्तक हैं.इसके अलावा यह फिल्म आप कि समझदारी में इजाफा करती है.

Comments

Anonymous said…
make it a regular thing.it will help your readers in taking decision of watching any film.your views are generally useful and i like your common audience approach
अच्छी जानकारी है।
गुरू देवानंद की चाय में क्या(क्या-क्या नहीं) हुआ?
ठीक है. स्थगन की बत्ती देर से जली.
Unknown said…
देव साहेब 11 सितंबर को मिल रहे हैं.अफसोस उस दिन चवन्नी मुंबई में नहीं रहेग.

Popular posts from this blog

तो शुरू करें

फिल्म समीक्षा: 3 इडियट

फिल्‍म समीक्षा : आई एम कलाम