घर का द्वार खोल दिया है: अमिताभ बच्चन

इन दिनों अमिताभ बच्चन आक्रामक मुद्रा में हैं। ऐसा लगता है कि वे किसी भी आरोप, प्रश्न या आशंका पर चुप नहीं रहना चाहते।

आजकल आपकी ब्लॉगिंग की बहुत चर्चा है। यह माध्यम आपके संपर्क में कब आया?

-हाल ही में। यह बहुत अच्छा माध्यम है। हम अपने प्रशंसकों के साथ व्यक्तिगत संपर्क कर सकते हैं। यह मुझे बहुत अच्छा लगता है। जैसे आप और हम अभी आमने-सामने बैठकर बातें कर रहे हैं, उसी तरह हम प्रशंसकों के साथ बातें कर सकते हैं।
आपके ब्लॉग पर लोगों के कमेंट्स में पूछा जा रहा है कि बच्चन जी क्या हिंदी में ब्लॉगिंग नहीं कर सकते?

-हां, अवश्य करेंगे। यह टेक्नोलॉजी मेरे लिए नई है। मेरे कंप्यूटर में अभी वह सॉफ्टवेयर नहीं है जो हिंदी में कनवर्ट कर देता है। वह अभी बन रहा है। जैसे ही बन जाएगा, उसके बाद हम सीधे हिंदी में भी लिखेंगे।
एक सवाल हवा में है कि बच्चन जी ऐसा क्यों कर रहे हैं? क्यों वे ब्लॉग पर सभी के जवाब लिख रहे हैं? ऐसी स्थिति क्यों आ गई?

-क्यों परेशान हो रहे हैं? कैसी स्थिति आ गई है? ये मेरा जीवन है, उसे मैं अपने ढंग से व्यतीत करना चाह रहा हूं। मुझे अब एक जरिया प्राप्त हो गया है, जिससे मैं अपनी भावनाओं को जनता के लिए व्यक्त कर सकता हूं। उन्हें मैं व्यक्त कर रहा हूं। अगर अच्छा लगता है तो पढ़ें। नहीं अच्छा लगता है तो न पढ़ें।
ब्लॉग का माध्यम बहुत ही उचित है। इससे आप लिखने लगे हैं। शायद एक साथ बहुत कम बार ऐसा मौका मिला हो, जब लिखा हो आपने।

-कई इंटरव्यू हैं, उनको मैं स्वयं लिखता हूं। मैं बहुत कम इस तरह से बैठ कर बात करता हूं। मेरे पास समय का थोड़ा अभाव भी रहता है, इसलिए मैं प्रश्नों को मंगवा लेता हूं फिर उत्तर दे देता हूं। इसका रिकॉर्ड भी रखता हूं। जो बात मैंने कही अब उसको मैं ब्लॉग पर डाल देता हूं, ताकि लोगों को पता चले कि मैंने क्या कहा और किस तरह से पत्रकारों ने उसको छापा।
आप ब्लॉग लिख रहे हैं तो कुछ ऐसी चीजें भी सामने आएंगी जो अमूमन लोग आप से पूछ नहीं पाते हैं?

-यह तो मैंने कई बार कहा है कि यह मेरा अखबार है। एक बार खुल गया है तो इसमें अच्छी बातें आएंगी, बुरी बातें आएंगी, अश्लील बातें भी आएंगी, लोगों को खेद होगा, बहुत सी बातों पर रोष होगा, उन सब बातों का मैं उत्तर दूंगा। यदि उत्तर देने लायक हो तो। मैंने कोई मॉडरेटर बीच में नहीं डाला है। हालांकि वेबसाइट ऑनर का कहना है कि हमारे यहां ऐसा मॉडरेटर है, जो आप की अनचाही या नापसंद चीजों को डिलीट कर सकता है। मैंने कहा कि यह बात मत कीजिए। यदि मैंने अपने घर का द्वार खोल दिया है तो सब को आमंत्रण है, आएं। लिखें।
आपके ब्लॉग को पढ़ते हुए मैंने एक बात महसूस की कि आप अपने स्वर्गीय पिता हरिवंश राय बच्चन के बहुत करीब हैं।

-मन के अंदर कोई बात होगी और वह पिता जी से संबंधित होगी तो उसके बारे में लिखा ही जाएगा। वह हमारे प्रत्येक क्षण, प्रत्येक सांस में समाए हुए हैं तो उनकी बात तो निकलेगी ही।
आपके पिता ने एक बार कहा था कि कभी किसी समारोह में जाओ तो पहली पंक्ति में मत बैठना?

-मत बैठने की बात नहीं कही थी। उन्होंने कहा था, जिस समारोह में जाओ, आखिरी पंक्ति में बैठो, क्योंकि वहां से हटाए जाओगे तो आगे ही जाओगे।
यह बात आपके जीवन में कितनी सच हो पाई?

-मैं तो हमेशा जाकर पीछे बैठता हूं।
आगे कभी नहीं बैठते हैं?

-कोई जबरदस्ती वहां बैठा दे तो मुझे बड़ा अजीब लगता है। आम तौर पर मैं तो चाहूंगा कि मैं पीछे रहूं।
उनकी दो बातें आप बार-बार उद्धृत करते हैं। 'मन का हो तो बहुत अच्छा न हो तो ज्यादा अच्छा' दूसरी 'जब तक जीवन है,तब तक संघर्ष है'। क्या अभी भी यही दोनों आधार बातें हैं?

-बिल्कुल, अंतिम सांस तक. जब तक जीवन रहेगा, तब तक संघर्ष रहेगा।
पिता जी की किताबों के अलावा ऐसी कौन सी किताबें हैं जो आपको प्रिय रही हैं या जिन्होंने आपको प्रभावित किया हो?

-ज्यादातर पिता जी के लेखन को ही पढ़ता आया हूं। उससे प्रभावित होता रहा हूं। स्कूल-कॉलेज के जमाने में, चाहे वह शेक्सपियर हो या अंग्रेजी लिटरेचर हो या प्रेमचंद हों चाहे सुमित्रा नंदन पंत हों या निराला हों, इन सबको हमने पढ़ा। ज्यादातर आत्मकथा को पढ़ने में आनंद आता है। बहुत से ऐसे प्रख्यात लोग हैं विश्व में जिनकी अपनी कहानी अपने ही शब्दों में पढ़ने से अत्यंत सुख प्राप्त होता है। बहुत कुछ सीखने को मिलता है। हालांकि मैं अभी भी यही कहूंगा कि बाबूजी के लेखन के सामने वह शून्य के बराबर हैं।
जीवनी में ऐसी कोई खास रुचि की वजह है?

-पता चलता है कि किस तरह एक महत्वपूर्ण इंसान जिसने समाज में अपना नाम कमाया हो, उसने अपना जीवन कैसे व्यतीत किया। उसके जीवन में क्या-क्या समस्याएं आई। क्या-क्या हर्ष के समय आए। सुख-दुख सब चीजों का वर्णन होता है। उसको पढ़ने में आनंद आता है।
आधिकारिक रूप से अपनी जीवनी लिखने की अनुमति अभी तक आपने किसी को दी है?

-नहीं। मैं ऐसा मानता हूं कि मेरे जीवन में ऐसा कुछ नहीं है, जिसके बारे में कुछ लिखा जा सकता है।
जया जी के बारे में कुछ बताएंगे? उनकी व्यस्तताएं क्या हैं आजकल?

-वे पार्लियामेंट में हैं और फिल्में भी करती हैं। अद्र्धागिनी के तौर पर हम सब का ध्यान रखती हैं और घर संभालती हैं।
विभिन्न मुद्दों पर आखिरी फैसला किसका होता है, आपका या जया जी का?
-हम सब मिल-जुल कर रहते हैं। हम सब परिवार हैं।

ऐसा कहा जाता है कि निर्णय लेने में आप थोड़ी देर लगाते हैं?

-हां, मैं निर्णय जल्दी नहीं ले पाता हूं। सोचता हूं ज्यादा।
निर्णय के परिणाम के बारे में सोचने लगते हों शायद?

-हां, कभी-कभी निर्णय नहीं ले पाता हूं।
ऐसी स्थितियों में कौन..?

-यह सब व्यक्तिगत बातें हैं, इसके ऊपर हम चर्चा नहीं करेंगे।
जैसे अभी परिवार के सभी सदस्य व्यस्त हैं। देश क्या, दुनिया के अलग-अलग कोने में रहते हैं। ऐसी स्थिति में पारिवारिक निर्णयों के लिए आधुनिक उपकरणों का सहारा लेना पड़ता होगा?

-क्यों नहीं कंप्यूटर है, फोन है, इंटरनेट है। बात कर लेते हैं। छवि देख लेते हैं, ऐसा लगता है कि आमने-सामने बैठकर बात कर रहे हैं। हम प्रति दिन ऐसे ही बात करते हैं।
वेबकैम के जरिए बात होती होगी?

-नहीं, स्पाइक के जरिए। स्पाइक एक सॉफ्टवेयर है, उसके थ्रू बात करते हैं।
-कितने टेक्नोसैवी हो गए हैं अभी आप, पहले घबराते थे?

-ज्यादा नहीं, किसी तरह अब संभाल लेते हैं।
मुझे याद है, एक इंटरव्यू आपके ऑफिस में किया था तो आपने कहा था कि आपकी नातिन जो है, वो ज्यादा जानती है।
-हां, वह ज्यादा जानती हैं।

कितने आध्यात्मिक या धार्मिक हैं आप?

-जितना होना चाहिए हमारी समझ में, उतना ही हम हैं। धर्म और अध्यात्म के बारे में मैं बात नहीं करना चाहूंगा। वह विचार बहुत व्यक्तिगत होते हैं, आपके माध्यम से सार्वजनिक हो जाएंगे। मैं नहीं चाहता हूं कि धर्म की बात पर सार्वजनिक रूप से चर्चा करूं।
कोई ऐसा शौक जिसको आप अब इस उम्र में पूरा करना चाहते हों?

-चाहता हूं कि कोई वाद्य यंत्र सीख पाऊं।
कोई ऐसी चीज जो रह गई हो आपके मन में, जो पूरी करनी बाकी हो?

-संगीत में शिक्षा। यह बाकी है अभी।
कौन सा संगीत?

-शास्त्रीय संगीत हो या कोई भी ऐसा संगीत हो। शास्त्रीय संगीत हो जाए तो बहुत अच्छा है। उसके बाद जितने और संगीत हैं, वो सीखेंगे।
पिता जी पर कुछ करने की योजनाएं, कोई फिल्म या बायोपिक जैसी फिल्म?

-बहुत सी चीजें हैं मन के अंदर। धीरे-धीरे हम उनको व्यक्त करेंगे।
कोई ऐसी योजना है, जिसमें कोई लाइब्रेरी या रिसर्च सेंटर या ऐसा कुछ?

-सोच-विचार चल रहा है और धीरे-धीरे समय से उसको हम अंकित करेंगे।
किसी विश्वविद्यालय के सहयोग से भी ऐसा हो सकता है?

-वह भी सब बताएंगे। विश्वविद्यालय के सहयोग से हो या व्यक्तिगत हो या कैसा हो, उसको बताएंगे। अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी।
अभी कोई योजना नहीं है?

-चल रही है, इसके बारे में हम अभी चर्चा नहीं कर सकते हैं!
खुद को आप कितना सामाजिक मानते हैं?

-जहां तक करना चाहिए, जितना मैं ठीक समझता हूं, उसे मैं करता हूं। हो सकता है कि मेरा जो रवैया है, वह कुछ लोगों को नापसंद हो।
..लेकिन आपके आचरण में कभी अहंकार तो दिखा नहीं? इसके बावजूद क्यों दुर्भावना पैदा हो जाती है बार-बार?

-जो पैदा करते हैं, उनसे पूछिए। मैं तो पैदा कर नहीं रहा हूं।
कुछ तो सोचा या समझा होगा आपने?

-जब है ही नहीं मेरे अंदर तो उसमें सोचने की क्या जरूरत है। क्यों समय बरबाद करें हम अपना।
इधर आप एक अलग किस्म से फिर से चर्चा में हैं। यह उत्तेजना अचानक तो नहीं होगी। इसके पीछे कुछ आधार होगा?

-मेरी समझ में नहीं आता कि पत्रकार जो हैं, मीडिया जो है, वो इतनी उत्सुक क्यों है? इस तरह के प्रश्न क्यों पूछती है? जब नहीं बोलते हैं तो बोलती है कि आप बोलते नहीं हैं। जब बोलते हैं तो कहते हैं कि आप क्यों बोल रहे हैं? इसीलिए कहीं न कहीं मुझे इसका निर्णय करना पड़ेगा कि मैं जब चाहूंगा बोलूंगा। मैं जब चाहूंगा, नहीं बोलूंगा।
टाइम्स ऑफ इंडिया के लेख में आपने असहमति की रक्षा की बात की है। क्या संदर्भ है उसका?

-पत्रकारों के लिए मैंने कहा था जो आपका लेखन है, उससे मैं सहमत हूं या असहमत हूं, यह मेरा अधिकार है। लेकिन आपका जो अधिकार है, लिखने का, उसके लिए मैं अपनी जान देने के लिए तैयार हूं।
अगर इस ढंग का भाव है तो फिर असहमति और मतभेद क्यों हो जाता है?

-होता है, क्योंकि आपका अधिकार अलग है, मेरा अधिकार अलग है। मेरा विचार अलग है या आपकी सोच अलग है। प्रजातंत्र का नागरिक होने के नाते यह मेरा अधिकार है।आप जो कहें उससे मैं हर बार तो सहमत नहीं हो सकता हूं, न ही हर बार आप मेरी बात से सहमत हो सकते हैं।
कोई गाइड लाइन तय की जा सकती है क्या? मीडिया और स्टार के बीच क्या रिलेशन हो? किस हद तक हो?

नहीं, बिल्कुल नहीं। कभी होनी भी नहीं चाहिए।
क्या अभिनय अनुभवों को ही फिर से जीना है?

-ऐसा मैं नहीं मानता हूं। लेकिन यदि हमारे पास कोई अनुभव हो किसी एक वाकये का तो उसे अभिनय में लाना कोई बुरी बात नहीं है।
क्या आपने अभिनय की कोई औपचारिक ट्रेनिंग ली थी?

-जी नहीं।
एक्टर आजकल ट्रेंड होकर आते हैं। अभिनय के लिए प्रशिक्षण को कितना जरूरी मानते हैं आप?

-मैं यह नहीं कहता हूं कि यह जरूरी है, लेकिन मैं कहता हूं कि यह अच्छी बात है।
हिंदी फिल्मों का अभिनेता होने के लिए क्या गुणवत्ता होनी चाहिए?

-सबसे पहले भाषा सीखें। आजकल की जो नई पीढ़ी है, मुझे लगता है कि उनके उच्चारण में काफी गलतियां हैं। अभिषेक से लेकर जितने भी हैं, उन सबको सबसे पहले मैं यही कहता हूं कि भाषा सीखो।
आपके प्रोडक्शन हाउस में क्या चल रहा है?

-प्रोडक्शन चल रहा है। फिल्में चल रही हैं। ज्वाइंट प्रोडक्शन हैं। यूटीवी के साथ हैं। रिलायंस के साथ हैं और धीरे-धीरे आगे बढ़ेंगे।
अभिषेक कितना ध्यान रख रहे हैं एबीकॉर्प का या पारिवारिक जिम्मेदारियों का?

-पूरा, परिवार के सभी लोग हमारी कंपनी के साथ जुड़े हुए हैं। अपनी राय देते हैं। हमारे बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स पर हैं। वो सब सोच-विचार डालते हैं उसमें।
आप कैसी फिल्म करेंगे? यह फैसला अभी आप करते हैं या सब लोग मिलकर?

-हमारे पास निमंत्रण आता है तो हम उस पर डिस्कस करते हैं, सब के सामने। कुछ की राय अच्छी होती है, कुछ की नहीं। हम लोग एक कॉमन राय लेकर आगे बढ़ जाते हैं। कई बार ऐसा भी होता है कि हम राय नहीं लेते हैं।
सबसे पहले कौन सा प्रोजेक्ट फ्लोर पर आने वाला है?

-अभी 'शूबाइट' है सुजीत सरकार की यूटीवी के साथ। फिर कुछ और फिल्में आएंगी।
आप बार-बार कहते हैं कि अब फिल्म मेरे कंधे पर नहीं रहती है, इसलिए फिल्म करना बहुत आसान है मेरे लिए?

-आसान नहीं है, फिल्म करना कभी भी आसान काम नहीं है। फिल्म का पूरी तरह से श्रेय, जो हमारे कंधों पर पहले होता था, वह अब बंट गया है। बोझ थोड़ा कम हो गया है। हल्का हो गया है। हमारे साथ और लोग रहते हैं फिल्म में।
आपको लगता है कि आप अब अकेले कोई फिल्म लेकर कर आगे नहीं जा सकते?

-अब बहुत सी चीजें जोड़नी पड़ती हैं साथ में। सहकलाकारों को लेना पड़ता है। जो मुझ से ज्यादा प्रचलित कलाकार हैं, उनको लिया जाता है। मार्केटिंग के लिए फिल्म को बेचने के लिए। फिल्म को एक बड़ी रूप-रेखा देने के लिए सब करना पड़ता है।
लेकिन आप तो मानेंगे कि आपकी वजह से हिंदी फिल्मों का जो कहानी लिखने का तरीका था, वह बदला। पहले किसी भी बुजुर्ग कलाकार को, जिन्हें कैरेक्टर आर्टिस्ट कह दिया जाता था, केंद्र में रख कर फिल्में नहीं लिखी जाती थी?

-बिल्कुल गलत धारणा है आपकी। दादा मुनि अशोक कुमार जी, बलराज साहनी, मोती लाल के लिए फिल्में लिखी जाती थी। वह सब सक्षम कलाकार रहे, उनके जैसा कभी हुआ नहीं कलाकार फिर से।
शायद मैं आपके जवाब से मतभेद रखूं। मेरा मानना है कि केबीसी के बाद वाले फेज में जिस ढंग से फिल्में लिखी गई अमिताभ बच्चन को लेकर, वैसा हिंदी फिल्मों के इतिहास में कभी नहीं हुआ।
-ऐसा आप मानना चाहते हैं, मैं नहीं मानता हूं।
तर्क देंगे?

-है ही नहीं कोई, कितनी फिल्में मैं कर रहा हूं। 'अलादीन' मैं कर रहा हूं, इसमें रितेश देशमुख, संजय दत्त हैं। इससे पहले भी कितनी फिल्में हुई हैं, 'सरकार राज' में अभिषेक हैं, ऐश्वर्या हैं। प्रमुख भूमिका मेरी नहीं है।
चलिए तर्क-वितर्क नहीं करते हैं। सिर्फ फिल्म के नाम ही देखें, तो भूतनाथ के बारे में क्या कहेंगे?

-कोई जरूरी नहींहै कि जिसके नाम पर है, वही महत्वपूर्ण हो फिल्म में।
फिल्मों की बात करें तो ऐसी कौन सी फिल्म है, जिन्हें आप संजोकर रखना चाहते हैं? अगर मैं गिफ्ट के तौर पर तीन-चार फिल्म आपकी मांगूं तो?

-डेढ़ सौ फिल्मों में से तीन-चार फिल्मों को निकालना बड़ा मुश्किल काम है। मैं चाहूंगा कि आप सभी फिल्में रखें अपने दिल के अंदर। मैं तो ऐसा मानता हूं सभी फिल्में मेरे लिए आकर्षक है और मेरा जो भी छोटा-बहुत योगदान रहा है उनमें, उसकी मैं सराहना करता हूं।

Comments

Unknown said…
Yeh baat-cheet padh kar behad maza aaya....
Amitabh janta ka sabse zyaada pyaar paane wale kalakar hai, aur unki saafdili is interview mein phir jhalak rahi hai!
मजेदार। कमाल की प्रस्तुति। साधुवाद।
Anonymous said…
Bachchan saab ka intv kafi achcha laga, kafi nok-jhonk ki aapne unke saath...
बहुत खूब!अमिताभ जी को हिंदी ब्लागिंग सिखा दीजिये।
Anonymous said…
aapne jo amitabh bacchan ka interview liya tha..padha..amitabh ka anduruni chehara thoda sa dikha...usake jawab mein...
Udan Tashtari said…
बड़ा विस्तृत साक्षात्कार पर सधा हुआ.बहुत बढ़िया. पढ़कर अच्छा लगा.

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आप हिन्दी में लिखते हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं, इस निवेदन के साथ कि नये लोगों को जोड़ें, पुरानों को प्रोत्साहित करें-यही हिन्दी चिट्ठाजगत की सच्ची सेवा है.

एक नया हिन्दी चिट्ठा किसी नये व्यक्ति से भी शुरु करवायें और हिन्दी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें.

यह एक अभियान है. इस संदेश को अधिकाधिक प्रसार देकर आप भी इस अभियान का हिस्सा बनें.

शुभकामनाऐं.

समीर लाल
(उड़न तश्तरी)
Ravi Shekhar said…
मज़ेदार है अमिताभ बच्चन का interview अजय !
ज्यादातर सवालों के जवाब टाल गए जनाब .....
उत्तर से ज्यादा अच्छे हैं सवाल...
Anonymous said…
After going thorugh this Interview I realise that Amitabh feels a kind of unsecurity.during last few months he was in political(social)problm thts why he is now expresing him self with the blog.!
unke jawab batate hi ki wo sawalon ke aage kamjor pad gaye hi!!!
Srijan Shilpi said…
बहुत अच्छी रही बातचीत।

अमिताभ जी अपने ब्लॉग पर सैकड़ों की संख्या में आने वाले कमेंट्स पढ़ते भी हैं... ?
Swapnil said…
mazaa aayaa padh kar ...
bowling bahut achchi thi, batsman bhi achcha tha magar sirf technically achchha... yani har ball ko safely play kar raha tha... crease par tika rahega der tak magar match jeet jaye ye nahi ho paega kyonki run nahi bante hein tukur tukur play karne se... kahiye aap amitabh hein, zara chaukka chhakka laga kar dikhaiye!
Amitabh Bachchan ko itna gussa kyun ata hai? Naraz....lage.

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