सही बदलाव दर्शक ही लाएंगे: इरफान खान


-अजय ब्रह्मात्मज

पिछले दिनों फो‌र्ब्स पत्रिका ने भारत के छह सुपरिचित फिल्म स्टारों की सूची और छवि प्रकाशित की। उनमें से एक इरफान खान थे। हाल ही में ऑस्कर के रेड कार्पेट समारोह और बाद की पार्टी में उन्हें पहचानने वालों में हालीवुड के बड़े सितारे भी थे। इरफान इस पहचान और प्रतिष्ठा से खुश हैं। लंबे संघर्ष के बाद मिली प्रतिष्ठा ने उन्हें संयमित रहना सिखा दिया है। अपने ऑस्कर अनुभव और अन्य विषयों पर उन्होंने खास बातचीत की-


ऑस्कर के रेड कार्पेट पर चलने को किस रूप में महत्वपूर्ण मानते हैं?
ऑस्कर ने ऐसी प्रतिष्ठा अर्जित की है कि अकादमी के लिए नामांकित होना भी बड़ी उपलब्धि मानी जाती है। ऑस्कर के साथ सराहना और लोकप्रियता दोनों जुड़ी हुई है। हॉलीवुड की फिल्मों के साथ सराहना और लोकप्रियता दोनों जुड़ी हुई है। ऑस्कर से पुरस्कृत फिल्मों को आप खारिज नहीं कर सकते। अपने यहां फिल्मों की तरह अवार्ड विभाजित हैं। माना जाता है कि नेशनल अवार्ड सीरियस फिल्मों के लिए है तो पॉपुलर अवार्ड कमर्शियल फिल्मों के लिए । हालांकि इधर कुछ बदलाव नजर आ रहा है। उदाहरण के लिए मुंबई मेरी जान को पापुलर अवार्ड में जगह नहीं मिली है, जबकि पिछले साल की वह एक अच्छी फिल्म है। ऑस्कर पुरस्कारों के लिए फिल्में अपनी मेरिट पर नामांकित होती हैं। रेड कार्पेट पर चलते हुए यह एहसास गर्व देता है कि आप एक अच्छी फिल्म का हिस्सा हैं।


आपका अनुभव कैसा रहा?
फिल्मों के लिए इससे बड़ा समारोह नहीं है। पूरी दुनिया में लोग इसे देखते हैं। इसमें चमक-दमक और टैलेंट दोनों का मेल है। बहुत ही व्यवस्थित समारोह था। मुझे लगता है कि एक-एक सेकेंड का हिसाब लगा कर रखा गया था। सभी की जगहें सुनिश्चित थीं। रास्ता और सीटें भी सुरक्षित थीं। मुझे किसी भी प्रकार की गड़बड़ी नहीं दिखायी दी। मीडिया भी अनुशासित थी। वे अपनी जगह से एक कदम भी आगे-पीछे नहीं हुए। मेरे लिए यह इस हिसाब से खास रहा है कि जिनकी फिल्में देखकर मैंने अभिनय की बारीकियां सीखीं और जिन से प्रभावित रहा, उन्हें सामने देख रहा था। रॉबर्ट डिनेरो को देखने के बाद मेरी भी चिल्लाने की इच्छा हुई।


इस अनुभव से आप कितने उत्साहित हैं? आपके करिअर में फर्क पड़ेगा?
अभी कुछ भी कह पाना मुश्किल है। नेमसेक के समय जब मीरा नायर अपने साथ तब्बू को लेकर घूम रही थीं तो मुझे लगा कि मेरा काम उभर कर नहीं आया होगा। बाद में मुझे पुरस्कार मिले और तारीफें मिलीं तो लगा कि कुछ हो गया। फिल्में करते समय यह नहीं मालूम रहता कि दर्शकों की क्या प्रतिक्रिया होगी? मुझे लगता है कि कुछ और फिल्में मिलेंगी। मेरी कोशिश होगी कि बाहर और देश की फिल्मों के बीच संतुलन बना कर चलता रहूं। फिल्मों की एक्टिंग में आप प्लानिंग नहीं कर सकते, क्योंकि आपको नहीं मालूम कि दुनिया में कौन कहां आप के बारे में क्या प्लानिंग कर रहा है?


क्या स्लमडॉग मिलियनेयर को आठ पुरस्कार मिलने से भारतीय और विशेषकर हिंदी फिल्मों के प्रति कोई जिज्ञासा बढ़ी है?
बहुत जिज्ञासा बढ़ी है। फिल्मों के साथ ही भारत के प्रति उत्साह बना है। स्लमडॉग मिलियनेयर के बिजनेस ने बहुत सारे बांध तोड़ दिए हैं। लोग हिंदुस्तानी प्रतिभाओं से काम लेना चाहते हैं। हिंदुस्तानी कहानियां सुनाना चाहते हैं। भारत में आकर शूटिंग करना चाहते हैं। ऐसा लगता है कि कई सारे सहयोग और अनुबंध होंगे। मुझे नहीं मालूम कि हमारी इंडस्ट्री और सिस्टम इसके लिए तैयार हैं कि नहीं। मुझे कई भारतीय मिले। उनमें से कुछ ने कहा कि उन्हें गर्व का एहसास हो रहा है। ऑस्कर पुरस्कार के मायने हैं। लोग इस वजह से रहमान, रसूल और भारतीय फिल्मों के प्रति गर्व महसूस कर रहे हैं।


ऐसा कहा जा रहा है कि इससे युवा फिल्मकारों को बल मिला है कि मंहगे और बिकाऊ स्टारों के बिना भी वे फिल्में बना सकते हैं।
ऐसा हो जाए तो बहुत अच्छा होगा। होना तो यही चाहिए कि फिल्म की कहानी महत्वपूर्ण हो। इस तरह के बदलाव डायरेक्टर के साथ ही एक्टर और टेक्नीशियन के लिए भी फायदेमंद साबित होंगे।


यह विवाद कितना उचित है कि स्लमडाग मिलियनेयर भारतीय फिल्म नहीं है, इसलिए हमें खुश होने की जरूरत नहीं है?
कहना मुश्किल है कि यह भारत की फिल्म है या ब्रिटेन की या अमेरिका की, गौर करें तो कंटेंट और क्रिएटिव टीम भारत की है। डायरेक्टर ब्रिटेन का है और इसकी मार्केटिंग अमेरिकी कंपनी ने की है। अगर फाक्स सर्चलाइट ने इसका वितरण नहीं किया होता तो फिल्म का पता भी नहीं चलता। डैनी बाएल तो डीवीडी रिलीज के लिए तैयार हो गए थे। इस फिल्म से पता चला कि डिस्ट्रीब्यूटर का कितना बड़ा रोल हो सकता है। जो लोग अभी तक विवाद कर रहे हैं, मैं उनसे इतना ही कहना चाहूंगा कि इस फिल्म के जरिए भारतीयों को भी पहचान मिली है। कम से कम उनका सम्मान करें।


इरफान का अगला कदम क्या होगा?
लोग कहते हैं कि मुझे देर से कामयाबी मिली। मैं कहता हूं कि सही समय पर मिली है। इस उम्र में मैं छोटी-बड़ी कामयाबी की वजह से अपने विश्वास से नहीं हिल सकता। एक स्तर पर कामयाबी की बहुत बड़ी भूमिका नहीं होती। मेरी कोशिश यही रहेगी कि मैं दर्शकों को एंटरटेन करने के साथ कोई बात भी कह सकूं। नए डायरेक्टर एंटरटेनमेंट को रिडिफाइन कर रहे हैं। इस माहौल में मैं बड़ा रोल निभाना चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि लाग मेरा उपयोग करें। मुझे संडे या क्रेजी 4 करने में भी दिक्कत नहीं है। मैं वैसी फिल्मों की पहुंच जानता हूं।


आप की अगली फिल्म पान सिंह तोमर है। कब शुरू हो रही है?
बस, मैं उसकी शूटिंग के लिए धौलपुर जा रहा हूं। सुना है कि वहां जबरदस्त गर्मी है। बहुत ही चैलेंजिंग रोल है। सीमित बजट में फिल्म बन रही है। ढेर सारे नए कलाकार हैं। रियल कहानी है, इसलिए मजेदार है।


आप किन युवा निर्देशकों का नाम लेंगे, जो मौका मिले तो इंटरनेशनल स्तर की फिल्में बना सकते हैं?
अनुराग बसु, अनुराग कश्यप, दिबाकर बनर्जी, शिमित अमीन, श्रीराम राघवन, तिग्मांसु धूलिया, निशिकांत कामथ आदि कितने नाम हैं। इन सभी को मौका और बजट मिले तो ये कमाल कर सकते हैं। भारतीय संदर्भ में मुझे लगता है कि दर्शक धीरे-धीरे बदल रहे हैं। सही बदलाव दर्शक ही लाएंगे। वे ऐसी फिल्में पसंद करेंगे तभी वैसी फिल्में बनेंगी।

Comments

To Ajay ji..

After many days I have come across such an interesting interview.

I admire Irfan Khan's work including many others. He has arrived a hight now.

PAN SINGH TOMAR sounds interesting.

Irfan is right, Dhaulpur is a hot place and it is going to get worse.

It was nice to meeting you in the Hindi journalism class of IIMC.

I hope you liked meeting us too.

thanks...
Anonymous said…
its good..........we are now making films on diffrent topics.....
need bpo jobs without a single rupee!!!!!!!! a genuine job from home.

Work from home

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