DDLJ ने ख्वाब देखना सिखाया...

-पूजा उपाध्‍याय

दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे, पहली फिल्म थी जिसका शोर्ट हमने ज्यादा बोला...तो ये फिल्म हमारे लिए हमेशा DDLJ रही. ये उन दिनों की बात है जब फिल्में रिलीज़ होने के काफी वक़्त बाद छोटे शहरों में आती थी. और आने के काफी दिन बाद देखने का प्रोग्राम बनता था.

इस फिल्म के बारे में काफी दिनों से चर्चा थी, तो दो और जान पहचान के लोगों के साथ फिल्म देखने गए थे हम सब लोग. उस वक़्त उम्र बहुत कम थी, और प्यार मुहब्बत के वाइरस से हम दूर ही थे. पर फिल्म का आखिरी सीन, जब सिमरन का पिता सच में उसे जाने देता है अपने प्रेमी के पास, मन में गहरे बैठ गयी थी. वो गाय के गले में बंधी घंटी भी बहुत पसंद आई थी...और पहली बार ट्रेन छूटना अच्छा हो सकता है ऐसा कुछ सोचा था...इसके गाने मुझे पागलों की तरह पसंद आये थे...घंटों घंटों सुनती रहती थी, और डांट खाती रहती थी इस कारण, आखिर एक ही गाने को सारे घर वाले कितनी बार सुनना पसंद करेंगे.

आज फ्लै में देखती हूँ तो सोचती हूँ की क्या था इस फिल्म में जो एक पूरा जेनरेशन इसके पीछे दीवाना था...कई और बार देखी ये फिल्म और बार बार वो आखिरी सीन जैसे मन पर छपता चला गया और गहरी छाप छोड़ता गया. अगर देखा जाए तो ये पहली फिल्म थी जिसे देख कर एक ऐसे पिता की छवि उभरी जो हमारे पिता से मेल खाती थी...हमारे ख्वाबों से मेल खाती थी. हमारे तरफ एक लड़की हज़ार बंदिशों में पली होती है, उसे ये बात पूरी तरह मालूम होती है की पिता कभी भी अपनी मर्जी से किसी लड़के से शादी नहीं करने देंगे. कुछ भी हो जाए नहीं मानेंगे.

ये पहली फिल्म थी जिसने हर लड़की की आँखों में एक सपना दे दिया, की देर से ही सही, पापा मान जायेंगे...समझेंगे कि प्यार कितना जरूरी है जिंदगी के लिए...कि एक लड़की की भी जिंदगी होती है...एक उम्मीद की भले ही सारे वक़्त मना करें, आखिर में मान जायेंगे. मुझे मालूम नहीं इस ख्वाब ने कितनी लड़कियों की जिंदगी बिगाड़ी...पर ये पहली फिल्म थी जिसने आँखों को एक ख्वाब दिया...प्यार को किसी अंजाम तक ले जाने का ख्वाब.

वाकई ऐसी ही तो होती है लड़की की जिंदगी...मेरे ख्वाबों में जो आये, इस गीत में जैसे खुद को खिलखिलाता गुनगुनाता पाया था मैंने, अनगिन रंग बिरंगे सपनों के तार बुनते हुए, बारिश में अलमस्त भीगते हुए एक अनजाने राजकुमार का ख्वाब शायद नन्ही आँखों में बस गया था. और जब सिमरन को हर तरफ एक ही धुन सुनाई पड़ती है, मुझे भी अपना प्यार याद आता था, और जैसे वो उस धुन से भागने के लिए खेतों में दौड़ती चली जाती है और अपने प्यार तक पहुँचती है...हमने भी कई रोज घर के सामने वाली सड़क पर अपने राजकुमार का इन्तेज़ार किया था...ये और बात है उस वक़्त हमें भी नहीं मालूम था कि हमारा राजकुमार दिखता कैसा है :)

ये फिल्म नहीं थी...एक ख्वाब था, हर लड़की की आँखों में बसने वाला ख्वाब...एक अनजाने रास्ते पर एक अजनबी के साथ चल देने पर हो जाने वाले प्यार का इंतज़ार. अभी परसों फिर से टीवी पर देखी अपने राजकुमार के साथ...जिसके हाथों में मेरे पापा ने भी आखिर में मेरा हाथ दे दिया...तो लगता है कि वाकई, कभी कभी ख्वाब सच भी हो जाते हैं.

फिल्म के अंत में एक पंक्ति आती है..."Come fall in love" और इस एक पंक्ति पे कुर्बान हम इश्क में गिरफ्तार हो गए...कहना गलत न होगा की इस फिल्म ने हमें प्यार करना सिखाया.

फुटनोट: परसों ही हमें पता चला की इस फिल्म को देख कर हमारे पतिदेव को काजोल से प्यार हो गया था...पहला प्यार. उफ्फ्फ थोडी जलन हो रही है काजोल से :) पर आखिर में दिलवाले दुल्हनिया ले गए...और भगवान का शुक्र है वो दुल्हन मैं थी. :)

डीडीएलजे पर तीसरा लेख

Comments

मेरी तरह आपकी भी प्यार की फैंटेसी और डीडीएलजे की कहानी एक-दूसरे के बीच जाकर गड्डमड्ड हो गयी और दोबारा से खूबसूरत लगने लग गयी जिंदगी। बहुत सुंदर लेकिन थीसिस पढ़ने की आदत पड़ गयी है सो कम लिखा हुआ पढ़ने पर मन कचोट जाता है। अब कोई क्या समझाए कि प्यार की थीसिस पढ़ी नहीं जाती बच्चू..गढी जाती है..
Puja ji ki jubani DDLJ ke baare mein padhna achchha laga
चलो...अंत भला, सो सब भला...और ये अंत भी था ज़ुदाई का, प्रेमकथा की नई पारी की शुरुआत का...दुआ कि आपका राजकुमार...हरदम आपके बारे में ही सोचता रहे, भूल के भी काजोल उनके ख्वाबों में ना आए.

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